सम्पादकीय

अर्थव्यवस्था: जीडीपी आंकड़े को क्यों मोदी सरकार की बाजीगरी बता रहे हैं पी चिदंबरम, जानिए

Gulabi
5 Sep 2021 6:03 AM GMT
अर्थव्यवस्था: जीडीपी आंकड़े को क्यों मोदी सरकार की बाजीगरी बता रहे हैं पी चिदंबरम, जानिए
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केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 31 अगस्त, 2021 को राष्ट्रीय आय से संबंधित अपने अनुमानों की घोषणा की

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 31 अगस्त, 2021 को राष्ट्रीय आय से संबंधित अपने अनुमानों की घोषणा की। जीडीपी का आंकड़ा 20.1 फीसदी के साथ निस्संदेह प्रभावी है। यह उम्मीद की जा रही थी कि 'हम लोग' आंकड़ों और सरकार की फिरकी में बहक जाएंगे। मीडिया और कुछ लोगों (भक्तों को छोड़कर) की मेहरबानी से हम लोग आंकड़ों से संभ्रमित नहीं हुए और जल्द ही सच्चाई का एहसास हो गया। सच यह है कि 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर (20.1 फीसदी) एक सांख्यिकी भ्रम है, क्योंकि 2020-21 की पहली तिमाही का 'आधार' अप्रत्याशित रूप से (-)24.4 फीसदी के साथ अत्यंत कम था। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. गीता गोपीनाथ महीने भर पहले इसे गणितीय वृद्धि बता चुकी हैं।

लोग क्या हासिल कर सकते हैं
इसके बावजूद हमें 20.1 फीसदी की वृद्धि का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह दिखाती है कि कोई देश और उसके लोग संवेदनहीन और खयाल न रखने वाली सरकार के बावजूद क्या हासिल कर सकते हैं। पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2021) के शुरुआती हफ्तों में जब कोविड-19 की दूसरी लहर आई थी, राज्य सरकारों ने अर्थव्यवस्था को बंद किए बिना संकट से निपटने का प्रबंध किया था। श्री मोदी की सरकार का योगदान बस यह था कि वह ऑक्सीजन की आपूर्ति और आवंटन के मामले में बुरी तरह नाकाम साबित हुई थी : कई हफ्तों तक ऑक्सीजन की भारी कमी के कारण बड़ी संख्या में मौतें हुईं (यह माना जाता है कि रिकॉर्ड में हर ग्यारह में सिर्फ एक मौत ही दर्ज की गई)।
20.1 फीसदी की विकास दर लोगों के 'निजी अंतिम उपभोग व्यय' के कारण संभव हो सकी। लोगों ने अपना धन सामान और सेवाओं पर खर्च किया। पहली तिमाही में यह 17,83,611 करोड़ रुपये था, जबकि पिछले साल पहली तिमाही में जब देश में वायरस की पहली लहर ने हमला किया था, यह 14,94,524 करोड़ रुपये था।
सही मानक
इसके अलावा एक अन्य अंतिम उपभोग खर्च भी है। यह सरकार का खर्च है। कल्पना कीजिए कि यदि सरकारी व्यय 'निजी अंतिम उपभोग व्यय' के साथ चलता, तो परिणाम क्या होता। सरकारी व्यय पिछले वर्ष की पहली तिमाही में 4,42,618 करोड़ रुपये से घटकर इस वर्ष 4,21,471 करोड़ रुपये रह गया। इसका मतलब यह हुआ कि पहली तिमाही में सरकार का योगदान नकारात्मक था। सरकार ने निर्यात को बढ़ाने के लिए भी कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए, जो कि विकास के चार इंजिनों में से एक है। सकल निर्यात में भी पिछले साल की पहली तिमाही के 34,071 करोड़ रुपये में गिरावट आई और यह इस साल (-) 62,084 करोड़ रुपये रह गया। 20.1 फीसदी की विकास दर हालांकि गणितीय है, फिर भी यह लोगों की मेहरबानी से हासिल हुई है, इसमें सरकार का कोई योगदान नहीं है।
सरकार खर्च करने का साहस दिखाने में नाकाम रही, और यदि धन की कमी थी, तब उसने कर्ज लेकर खर्च करने का साहस नहीं दिखाया। उसे पिरामिड के निचले हिस्से के 20 या 25 फीसदी परिवारों को धन हस्तांतरित करना चाहिए था; इस धन से 'निजी अंतिम उपभोग व्यय' में वृद्धि होती। सरकार का बढ़ा हुआ व्यय और बढ़े हुए निजी उपभोग व्यय मिलकर विकास दर को 25 फीसदी के पार ले जाते और तब पिछले साल के (-) 24.4 फीसदी के आंकड़े से ऊपर उठने का अवसर मिलता।
2021-22 की पहली तिमाही के आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था की कुछ गंभीर कमजोरियों को भी उजागर किया है। सही मानक 2020-21 (महामारी वर्ष) नहीं, बल्कि 2019-20 (पूर्व महामारी वर्ष) है। उस वर्ष का वार्षिक उत्पादन निस्संदेह मध्यम था, लेकिन फिर भी ऊपर की ओर था। क्या हम उस स्थिति में फिर पहुंच गए हैं? जवाब है, नहीं। जरा टेबल में दिए गए आंकड़ों पर गौर करें।

उद्योग 2018-19 2019-20 2021-22

1.उद्योग, वानिकी और मछली पालन 4,27,177 4,49,390 4,86,292

2. खनन और उत्खनन 88,634 82,914 81,444

3. विनिर्माण 5,61,875 5,67,516 5,43,821

4. निर्माण 2,49,913 2,60,099 2,21,256

5. व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और सेवाएं 6,09,330 6,64,311 4.63,525
(करोड़ रुपये में)

अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्र अभी 2019-20 के उत्पादन के स्तर तक नहीं पहुंच सके हैं। बदतर यह है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन का स्तर उससे पहले वाले साल यानी 2018-19 के उत्पादन के स्तर से कम है। शानदार प्रदर्शन करने वाला एकमात्र क्षेत्र है, 'कृषि'।

ये आंकड़े एक अन्य निष्कर्ष को रेखांकित करते हैं, जिसे पर्यवेक्षकों, सर्वेक्षणों और सीएमआईई की रिपोर्ट्स ने भी रेखांकित किया है, लेकिन सरकार जिसे दृढ़ता से खारिज कर देती है, वह है नौकरियों का नुकसान। अर्थव्यवस्था की निरंतर गिरावट (खराब प्रबंधन) के कारण 2019-20 में लाखों नौकरियां खत्म हो गईं। 2020-21 में महामारी के कारण और नौकरियां खत्म हो गईं। ये नौकरियां 2021-22 में भी वापस नहीं आईं। याद रखें कि बड़ी संख्या में रोजगार अनौपचापिक क्षेत्र और एमएसएमई में होता है, और एससीओ के अनुमान में वर्तमान में अनौपचारिक क्षेत्र या एमएसएमई का प्रदर्शन शामिल नहीं होता।

अनभिज्ञ और भयभीत
वी-आकार की रिकवरी के रूप में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कमजोर बचाव किया है। असली सवाल यह है कि हम जीडीपी के महामारी से पूर्व के स्तर को कब प्राप्त करेंगे, जिसे 2019-20 में दर्ज किया गया था? सरकार बहाली की गति तेज कर सकती है, लेकिन जैसा कि अक्सर मैं कहता हूं, वह अनभिज्ञ और भयभीत है। मुझे एक खुशामदी अखबार का एक सितंबर का संपादकीय देखकर सुखद आश्चर्य हुआ था, जिसका शीर्षक था, खर्च, सरकार, कर्ज और खर्च। मैं इस सुझाव का समर्थन करता हूं। तेज आर्थिक बहाली का यही रास्ता है।

क्रेडिट बाय अमर उजाला
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