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- अर्थव्यवस्था की डगर
Written by जनसत्ता; जयंती लाल भंडारी के लेख (22 अगस्त) में रुपए के मुकाबले डालर की मूल्य वृद्धि का विश्लेषण पढ़ा। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महाबली डालर का प्रभाव लगभग सभी देशों में देखने को मिलता है। दुनिया में 85 प्रतिशत कारोबार डालर में होता है, 39 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय ऋण डालर में दिए जाते हैं, 65 प्रतिशत डालर का उपयोग अमेरिका से बाहर किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि 2014 से लेकर अब तक भारतीय रुपए के मूल्य में डालर के मुकाबले पच्चीस फीसद कमी आई है। अगर ताइवान तथा चीन में युद्ध छिड़ गया, तो भारत के विदेशी व्यापार पर ज्यादा विपरीत प्रभाव पड़ेगा, जिससे डालर के मूल्य में रुपए के मुकाबले और भी वृद्धि हो सकती है। हम विदेशों से तेल, गैस, दवाइयों के लिए कच्चा माल, रसायन, कोयला आदि आयात करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 2022-23 के अप्रैल से जुलाई तक के चार महीनों में हमारा व्यापार घाटा सौ अरब डालर रहा।
रुपए के मुकाबले में डालर के मूल्य में वृद्धि होने से घरेलू कीमतों में वृद्धि होती है। एक अनुमान के अनुसार 2022 में थोक मूल्य में लगभग 15.8 प्रतिशत तथा खुदरा मूल्यों में लगभग 7.8 प्रतिशत वृद्धि हुई। आरबीआइ ने कीमतों में वृद्धि रोकने के लिए रेपो रेट बढ़ा कर बाजार में मुद्रा के प्रवाह को कम करने की नीति बनाई है। मगर इस नीति का विपरीत प्रभाव भी हो सकता है। इससे निवेश तथा मांग में कमी होने के कारण कुल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
भारत को रुपए के मुकाबले डालर के मूल्य में वृद्धि के संकट का जो सामना करना पड़ रहा है उसका एक कारण यह भी है कि अमेरिका ने ब्याज की दरों में वृद्धि कर दी है, जिसकी वजह से निवेशक भारत समेत अन्य देशों से अपनी पूंजी निकाल कर अमेरिका के बैंकों में जमा करवा रहे हैं। इस समय भारत के पास 573 अरब डालर का कोष है, जिसमें से कुछ राशि निकाल कर बाजार में डालर की पूर्ति बढ़ा कर उसके मूल्य को और बढ़ने से रोका जा सकता है। भारत को चाहिए कि संसार के जो देश डालर के संकट से गुजर रहे हैं उनके साथ वह डालर के बदले रुपए में व्यापार करना शुरू कर दे।
इस समय भारत में रुपए के मुकाबले जो डालर का मूल्य बढ़ रहा है, उस समस्या का समाधान करने का तरीका यही है कि भारत अपने निर्यातों को बढ़ाए तथा आयातों को नियंत्रित करे और व्यापार घाटा कम करे। इसके अलावा प्रवासी भारतीयों को विदेशी मुद्रा भारत में भेजने के लिए प्रेरित करे। इस समय सरकार ने विदेशी मुद्रा बांड की नीति में कुछ ढील दी है, इससे भी भारत में डालर की आपूर्ति बढ़ सकती है। मगर हमें यथाशीघ्र डालर की मांग पर नियंत्रण करने तथा पूर्ति को बढ़ाने के उपाय अपना कर रुपए की कीमत में कमी को रोकना चाहिए। इससे एक तो देश में कीमतों मैं वृद्धि नहीं होगी और दूसरे देश का पैसा विदेशों में जाने से रुक जाएगा।
दिल्ली में जंतर मंतर पर किसान फिर महापंचायत लगाने को मजबूर हुए। पिछले साल एक वर्ष से अधिक चले किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार और किसानों के संयुक्त मोर्चा के बीच समझौते हुए थे। मगर दुख की बात है कि जिन बिंदुओं को लेकर समझौते हुए थे, उनको सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। किसान ठगा महसूस कर रहे हैं। वे सरकार की ठंडी चाल, बेरुखी और वादाखिलाफी से नाराज हैं। सरकार को इस दिशा में जल्द से जल्द समझौते के जो भी बिंदु हैं, उन पर सर्वसम्मति से सर्वमान्य हल निकालना चाहिए। इस मामले में सरकार की अपनी जुबान और विश्वसनीयता का सवाल भी है!