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बैंकों को सेहतमंद रखने के लिए भी केंद्रीय बैंक ऐसा कर सकता है।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक ने मई, 2022 के बाद रेपो दर में 2.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है, जिससे यह 6.25 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। वहीं केंद्रीय बैंक द्वारा उठाए गए समीचीन कदमों की वजह से नवंबर महीने में उपभोक्ता मूल्य पर आधारित खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) घटकर 5.88 प्रतिशत रह गई। ग्यारह महीनों में खुदरा महंगाई का यह सबसे निचला स्तर है, साथ ही, यह रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा 6.00 प्रतिशत से नीचे है। नवंबर महीने से पहले अक्तूबर महीने में खुदरा महंगाई दर 6.77 प्रतिशत, सितंबर महीने में 7.41 प्रतिशत, अगस्त महीने में 7.00 प्रतिशत और जुलाई महीने में 6.71 प्रतिशत रही थी। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर भी नवंबर महीने में घटकर 5.85 प्रतिशत रह गई, जो 21 महीनों का सबसे निचला स्तर है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल मई महीने में यह 15.88 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।
खुदरा और थोक महंगाई में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज होने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नए वर्ष में महंगाई को लेकर रिजर्व बैंक नरम रुख अपना सकता है, क्योंकि थोक महंगाई में कमी आने से खुदरा महंगाई के कम होने की संभावना बढ़ जाती है। थोक महंगाई में कमी तभी आती है, जब इनपुट लागत या कच्चे माल की कीमत में कमी आती है। नवंबर महीने में कच्चे माल की लागत में कमी देखी गई है और इससे थोक और खुदरा महंगाई, दोनों कम हो सकती है। सब्जियों की कीमत में भी कमी आई है। हालांकि, अनाज की कीमत में अभी भी तेजी बरकरार है, जो आंशिक रूप से चिंता की बात है। चूंकि, महंगाई से सीधे तौर पर आमजन, कारोबारी और विकास दर प्रभावित होते हैं, इसलिए, इस पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक विगत साल निरंतर रेपो दर में इजाफा कर रहा था। इसलिए माना जा रहा है कि महंगाई के तेवर में थोड़ी नरमी आने के बाद केंद्रीय बैंक अब मौद्रिक नीति के मामले में नरम रुख अपना सकता है।
रेपो दर में हालिया वृद्धि से बैंकों की पूंजी लागत बढ़ गई है, जिसकी भरपाई के लिए उन्होंने ऋण दर में बढ़े हुए रेपो दर के अनुपात में वृद्धि की है, ताकि उनके मुनाफे में वृद्धि हो और वे बढ़ी हुई जमा लागत की भरपाई मुनाफे से कर सकें। अभी रेपो दर में उल्लेखनीय वृद्धि होने की वजह से बैंक छोटे निवेशकों से जमा लेने की तरफ ध्यान दे रहे हैं। इसी वजह से बैंक अपने सामर्थ्य के अनुसार जमा दर में इजाफा कर रहे हैं, ताकि उनका जमा आधार व्यापक हो और वे जरूरतमंदों, कारोबारियों और आमजन की उधारी जरूरतों को पूरा कर सकें। बैंक आकर्षक ब्याज दर पर बांड के जरिये भी पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में 10 वर्षीय इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड के पहले निर्गम के जरिये 10,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
अलबत्ता विगत 12 महीनों में 12 सरकारी बैंकों में से महज चार ने जमा में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की, जबकि एक को छोड़कर अन्य बैंकों की उधारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। निजी बैंकों में भी ऐसे ही हालात हैं। सभी सूचीबद्ध निजी बैंकों में से केवल दो बैंकों ने ऋण के मुकाबले जमा में अधिक वृद्धि दर्ज की। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, 18 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष (आउटस्टैंडिंग) ऋण 133.29 लाख करोड़ रुपये था, जबकि पिछले साल 19 नवंबर को समाप्त हुए पखवाड़े में यह 113.96 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह, एक साल के अंदर ऋण वितरण में 16.96 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। महंगी ऋण दर की वजह से सूक्ष्म, लघु, मझोले, और बड़े उद्योग के प्रमोटर ऋण लेने से परहेज कर रहे हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ने लगी हैं।
पड़ताल से साफ है कि वर्ष 2023 में रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि करने से परहेज कर सकता है, क्योंकि खुदरा और थोक महंगाई में नवंबर महीने में उल्लेखनीय कमी आई है और आगामी महीनों में भी इसके नियंत्रण में रहने के आसार हैं। विकास दर की गति को बढ़ाने, अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने और बैंकों को सेहतमंद रखने के लिए भी केंद्रीय बैंक ऐसा कर सकता है।
सोर्स: अमर उजाला
Neha Dani
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