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हमें बुनियादी तौर पर आधुनिक बैंकिंग ढांचे की जरूरत है, जो ऐसे धोखों को रोकने में कारगर हो।
भारत में खुदरा निवेशकों ने पिछले तीन हफ्तों में 15 लाख करोड़ रुपये एक झटके में गंवा दिए। इस नुकसान की वजह कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, सुस्त अर्थव्यवस्था और यूक्रेन संकट है। इनमें कई निवेशकों ने पहली बार बाजार में उत्साह के साथ निवेश किया था, पर उन्हें निराशा हाथ लगी। हमारे देश के कई युवा निवेशक अपनी बचत को म्यूचुअल फंड और इक्विटी में लगाते हैं, जबकि अन्य आकर्षक बचत योजनाओं का रुख करते हैं, जिसमें धोखाधड़ी की आशंका रहती है। इस दौरान सूचीबद्ध शीर्ष कॉरपोरेट ने भी अपनी चमक गंवाई है।
नई कंपनियां आईपीओ के जरिये खुदरा निवेशकों को मोटी कमाई का प्रस्ताव देती हैं, पर ऐसी कंपनियां अब सार्वजनिक निर्गम के अधिक मूल्य निर्धारण के लिए कुख्यात हैं। इसमें पेटीएम का मामला तो खासा चर्चित रहा। इसके शेयर की कीमत लगातार गिर रही है, जो आईपीओ मूल्य से काफी कम है। इस बीच, बाजार को लेकर दिखे उत्साह ने कॉरपोरेट गवर्नेंस की चुनौतियों को छिपाया है। एनएसई में देखी गई अनियमितताओं ने एक गहरी संस्थागत सड़ांध को उजागर किया है।
इस बीच सेबी अपने पहले के रुख से पलट गई है, जिसमें शीर्ष 500 सूचीबद्ध कंपनियों को अध्यक्ष और एमडी की भूमिका को अलग करने की बात कही गई थी। यह नियामकीय कब्जे का नया संकेत है। देश की शीर्ष 500 कंपनियों में से 300 प्रमोटर-संचालित हैं। ऐसे में ये कंपनियां दोनों भूमिकाएं साथ निभाना जारी रखती हैं, जिससे बोर्ड की जिम्मेदारियों और रोजमर्रा के दायित्वों के बीच हितों का टकराव स्वाभाविक होता है। ताजा एबीजे शिपयार्ड घोटाले में 28 बैंकों के 22,842 करोड़ रुपये का डूबना दिखाता है कि एनपीए का संकट गहराता जा रहा है।
सूचीबद्ध कंपनियों से इस्तीफा देने वाले स्वतंत्र निदेशकों की बढ़ी संख्या दिखाती है कि कई कंपनियां धोखाधड़ी में लिप्त हैं। हमारे पास निवेशक संरक्षण के लिए विनियमन के दायरे और वास्तविक फंडिंग सीमित हैं। एनएसई के पास 594 करोड़ रुपये का निवेशक सुरक्षा कोष था, जबकि बीएसई के पास मार्च, 2020 तक यह कोष 784 करोड़ रुपये का था। जाहिर है, निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के साथ सेबी को अपने कॉरपोरेट प्रशासन मानदंडों की समीक्षा करने की सख्त जरूरत है। इस दौरान नई निवेश योजनाओं में भी कई निवेशकों के पैसे डूबे हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक, पांच लाख भारतीयों ने मल्टीलेवल मार्केटिंग योजनाओं में मई और जून, 2021 के महज दो महीने में 150 करोड़ रुपये गंवा दिए। ये धोखाधड़ी पावरबैंक और ऐजप्लान जैसे ऐप के जरिये हुई। निवेशकों के साथ झांसे का यह खेल अपने तंत्र और विस्तार में कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इससे लग सकता है कि बीते दिसंबर में गूगल प्लेस्टोर से ऐसे 400 अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले ऐप हटाए गए थे। इसी महीने यह भी पता चला कि लाखों निवेशकों ने चिटफंड धोखाधड़ी मामले में (एग्री गोल्ड फार्म एस्टेट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ) 6,800 करोड़ रुपये गंवा दिए।
इस बीच क्रिप्टो-मुद्रा, जो अपने-आप में एक विशाल अनियमित क्षेत्र है, ने नई चुनौती पेश की है। बिटकनेक्ट के संस्थापक सतीश कुंभाणी 2.4 अरब डॉलर की वैश्विक पोंजी योजना व्यवस्थित करने और न्यूयॉर्क में आरोपी ठहराए जाने के बाद भारत से भाग गए। अगस्त, 2017 में नोएडा में 15,000 करोड़ रुपये का बाइक बॉट घोटाला हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश के निवासी संजय भाटी ने एक साधारण योजना के माध्यम से दो लाख से अधिक निवेशकों को 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का धोखा दिया।
इसके तहत एक साधारण बाइक के लिए 62,100 रुपये के निवेश के लिए लोगों को उकसाया गया था और बदले में उन्हें सालाना 1.17 लाख रुपये का मुनाफा देने का वादा किया गया था। कहने को तो देश में निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए नियामकीय ढांचा है, पर यह निष्प्रभावी है। मौजूदा सूरतेहाल में निवेशक जागरूकता में सुधार करने और चिटफंड योजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक संस्थागत प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। ऐसी प्रणाली आदर्श रूप से योजना को पहले से सत्यापित करेगी और भुगतान एकत्र करने के लिए मध्यस्थ मंच के रूप में काम करेगी।
हमें आम भारतीयों को यह समझाने के लिए भी एक तंत्र की आवश्यकता है कि कोई योजना उनके लिए युक्तिसंगत है या नहीं। आधार, यूपीआई और जीएसटी के बीच एकीकरण ऐसी प्रणाली को पुख्ता करने में मदद कर सकता है। जो निवेशक बैंक खातों में पैसा जमा रखते हैं, उनके लिए भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। धोखाधड़ी के मामलों में वहां भी वृद्धि हुई है। आरबीआई का आंकड़ा बताता है कि देश में अप्रैल, 2021 से सितंबर, 2021 के बीच 36,342 करोड़ रुपये की 4,071 बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं। इनमें इंटरनेट और कार्ड से जुड़े लेनदेन के मामले 34.6 फीसदी थे।
इसके समाधान के लिए पीएसयू बैंकों को महत्वपूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने और सख्त केवाईसी मानदंडों को अनिवार्य करने की जरूरत है। हमें व्यावसायिक हितों वाले लोगों पर बैंकों (सहकारिता सहित) के बोर्ड में शामिल होने पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए। ऐसे लोग, जिन्होंने सेवानिवृत्ति के लिए सरकार पर भरोसा रखा है, वे भी असुरक्षा महसूस कर रहे हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) खातों से अवैध धन निकासी के मामले पिछले एक साल से खासे बढ़े हैं। इस बाबत आई रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे ईपीएफओ कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेज और मोबाइल नंबरों के जरिये बंद कंपनियों से कथित तौर पर पैसे निकाले हैं।
खुद सीबीआई ने ऐसे मामलों में 18.97 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में ईपीएफओ के 18 अधिकारियों को पकड़ा है। जाहिर है, ईपीएफओ के कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता और कर्मचारियों के हित और सुरक्षा के लिए इसे नए सिरे से सुदृढ़ करने की जरूरत है। गबन और धोखे के ऐसे तमाम मामलों को देखते हुए खुदरा निवेशकों की हिफाजत के लिए ठोस पहल जरूरी है। निवेशकों की जागरूकता और उनकी सुरक्षा के लिए संस्थागत उपायों का दायरा और तंत्र फिलहाल खासा कमजोर है। साथ ही खुदरा निवेशकों के निवेश के लिए कम जोखिम वाले विकल्पों को और बढ़ाना होगा। हमें बुनियादी तौर पर आधुनिक बैंकिंग ढांचे की जरूरत है, जो ऐसे धोखों को रोकने में कारगर हो।
सोर्स: अमर उजाला
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