सम्पादकीय

अर्थव्यवस्था: छोटी बचत पर ब्याज दर बढ़ाने की जरूरत

Neha Dani
9 July 2022 1:44 AM GMT
अर्थव्यवस्था: छोटी बचत पर ब्याज दर बढ़ाने की जरूरत
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वहीं इनका बड़ा निवेश अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद है। क्या सरकार इस पर गौर करेगी?

यकीनन इस समय देश में छोटी बचत करने वाले करोड़ों लोग छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाली कम ब्याज दर के कारण बढ़ती महंगाई की चुनौती का सामना कर रहे हैं। यह उम्मीद की जा रही थी कि जिस तरह पिछले दो-तीन महीनों में स्थायी जमा (एफडी) के साथ-साथ अन्य ब्याज दरों में वृद्धि हो चुकी है, उसी तरह जुलाई से सितंबर 2022 के लिए छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों में बढ़ोतरी की जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। जब तक महंगाई का दौर बना रहे, तब तक छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में कुछ वृद्धि कर दी जाए, तो एक बड़े वर्ग को राहत मिल सकती है।




गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने से कीमतों में तेज वृद्धि से पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी महंगाई तेजी से बढ़ रही है। मई, 2022 में थोक महंगाई दर 15.88 फीसदी और खुदरा महंगाई दर 7.04 फीसदी के चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। ऐसे में रिजर्व बैंक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अब तक 0.90 फीसदी रेपो दर बढ़ा चुका है, बैंक एफडी पर 0.50 फीसदी से अधिक ब्याज दर बढ़ा चुके हैं, बॉन्ड पर यील्ड भी बढ़ता जा रहा है, ऋण महंगे हो रहे हैं, ऋण पर ज्यादा किस्त और ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ रहा है और कर्ज के भुगतान की किस्त चूक में भी बढ़ोतरी हो रही है।


उल्लेखनीय है कि पिछले दो वर्षों से छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यदि हम छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाली मौजूदा ब्याज दरों को देखें, तो पाते हैं कि इस समय बचत खाता पर चार फीसदी, एक से तीन साल की एफडी पर 5.5 फीसदी, पांच साल की एफडी पर 6.7 फीसदी, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना पर 7.4 फीसदी, एमआईएस पर 6.6 फीसदी, एनएससी पर 6.8 फीसदी, पीपीएफ पर 7.1 फीसदी, किसान विकास पत्र पर 6.9 फीसदी, सुकन्या समृद्धि योजना पर 7.6 फीसदी ब्याज दर देय है। यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर 8.1 फीसदी ब्याज दर की अनुमति दी है। यह चार दशक से अधिक समय में सबसे कम ब्याज दर है। इसका करीब पांच करोड़ ईपीएफ सदस्यों पर असर पड़ा है।

निस्संदेह पिछले दो वर्षों में कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों से लेकर अब तक देश में आम आदमी, नौकरीपेशा वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर कम रहने की है। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर हेतु लिए गए सबसे जरूरी हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कन्ज्यूमर लोन आदि को चुकाने के लिए अधिक ब्याज व किस्तों की राशि में वृद्धि से लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

वस्तुत: देश में बचत की प्रवृत्ति के लाभ न केवल कम आय वर्ग के परिवारों के लिए हैं, वरन पूरे समाज व अर्थव्यवस्था के लिए भी हैं। अब भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक सुरक्षा (सोशल प्रोटेक्शन) की छतरी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों पर देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन निर्भर होता हैं, जो अपनी छोटी बचतों के जरिये जिंदगी के कई महत्वपूर्ण काम निपटाने की व्यवस्था सोचे हुए हैं। मसलन, बिटिया की शादी, सामाजिक रीति-रिवाजों की पूर्ति, बच्चों की पढ़ाई और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन। छोटी बचत योजनाएं रिटायर हो चुके और जमा पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग पीढ़ी का सहारा बनती हैं।

करीब 14 वर्ष पूर्व 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने का एक प्रमुख कारण भारतीयों की संतोषप्रद घरेलू बचत की स्थिति को माना गया था। फिर 2020 में महाआपदा कोविड-19 से जंग में भारत के लोगों की घरेलू बचत विश्वसनीय हथियार के रूप में दिखाई दी। नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट (एनएसआई) द्वारा भारत में निवेश की प्रवृत्ति से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां देश के लोगों के लिए छोटी बचत योजनाएं लाभप्रद हैं, वहीं इनका बड़ा निवेश अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद है। क्या सरकार इस पर गौर करेगी?

सोर्स: अमर उजाला

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