सम्पादकीय

अर्थव्यवस्था : विकास दर और महंगाई के चक्रव्यूह में, रिजर्व बैंक की नीतियों के असर

Gulabi Jagat
12 April 2022 1:08 PM GMT
अर्थव्यवस्था : विकास दर और महंगाई के चक्रव्यूह में, रिजर्व बैंक की नीतियों के असर
x
रिजर्व बैंक को आशंका है कि मुद्रास्फीति और ज्यादा बढ़ेगी, उसने अपने पूर्वानुमान को 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया है
शंकर अय्यर।
नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट लुकास ने एक बार कहा था कि, 'बंकर में रहते हुए हर कोई कीन्सियन होता है।' यहां कीन्सियन का मतलब कल्याणकारी नीतियों से है। जो अर्थव्यवस्थाएं वायरस के कारण कीन्सियन बन गई थीं, वे अब खरबों डॉलर की तरलता और युद्ध से बिगड़ती-बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं, लिहाजा बंकर से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही हैं। शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौजूदा संदर्भ के लिए एक नीति तैयार करने की कोशिश की। आम तौर पर केंद्रीय बैंक और इसके शीर्ष अधिकारी भ्रम दूर करने के लिए कुछेक सौ शब्द ही खर्च करते हैं। लेकिन एक घंटे में 3,500 शब्दों के बयान के बाद भी उम्मीदों और धारणाओं की धुंध पसरी हुई है।
भारतीयों और बड़े पैमाने पर निवेशकों को यह सूचित किया गया कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने लचीलापन जारी रखते हुए मुद्रास्फीति को लक्ष्य के भीतर सुनिश्चित करने के लिए लचीलेपन की वापसी पर ध्यान केंद्रित किया है, हालांकि आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित किया जाएगा। यह वैसे ही है, जैसे पहले आग भड़काई जाए और फिर बुझाई जाए। जो लोग केंद्रीय बैंक की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति रखते हैं, उनके लिए भी यह नीतिगत रुख 'हां', 'नहीं', 'शायद' जैसी अवधारणा का उत्कृष्ट उदाहरण है।
रिजर्व बैंक को आशंका है कि मुद्रास्फीति और ज्यादा बढ़ेगी, उसने अपने पूर्वानुमान को 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया है। इसका भी कोई आश्वासन नहीं है कि विकास दर के पिछले पूर्वानुमान कायम रहेंगे-रिजर्व बैंक ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान को 7.8 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है। उसका कहना है कि 'विकास और मुद्रास्फीति का कोई भी अनुमान जोखिम से भरा होता है', जो नीति को 'शायद' के क्षेत्र में छोड़कर झटके और समीक्षा के लिए छोड़ देता है। रिजर्व बैंक के इस आक्रामक रुख को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। यह सच है कि दस साल के बॉन्ड पर मुनाफा 20 बेसिस पॉइंट्स घटकर 7.13 फीसदी रह गया है, लेकिन नीति को आक्रामक बताने से विशेषज्ञों को परेशानी हो सकती है।
निश्चित रूप से रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति और गवर्नर ने प्राथमिकताओं के क्रम को पुनः संयोजित किया है। 'मूल्य स्थिरता, निरंतर विकास व वित्तीय स्थिरता के हमारे लक्ष्य परस्पर मजबूत हैं और हम इसी दृष्टिकोण से निर्देशित होना जारी रखेंगे।' लेकिन मुद्रास्फीति की दर इससे आगे बढ़ने पर क्या किया जाएगा या कम से कम उसे रोकने के लिए क्या उपाय हैं, इस बारे में नीति में कुछ नहीं कहा गया है। जिन प्रतिस्पर्धी बाध्यताओं के टकराव से अर्थव्यवस्था जूझ रही है, उसे समझने के लिए रिजर्व बैंक के बयान में दिए गए आंकड़ों पर विचार कीजिए।
अपने बयान में, गवर्नर ने इस तथ्य को रेखांकित करने के लिए एनएसओ के आंकड़ों का हवाला दिया कि निजी खपत और निश्चित निवेश अब भी सुस्त है, जो कि घरेलू मांग का मुख्य वाहक है, इनमें महामारी पूर्व स्तरों से क्रमशः केवल 1.2 प्रतिशत और 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रारंभिक सुधार की स्थिरता को मुद्रास्फीति से निरंतर खतरा है। मौद्रिक नीति समिति ने कहा, 'फरवरी की बैठक के बाद से भू-राजनीतिक तनावों का बढ़ना, वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों का बढ़ना, आपूर्ति शृंखला में लंबे समय तक व्यवधान, व्यापार और पूंजी प्रवाह में अव्यवस्था, विभिन्न तरह की मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएं और वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव की आशंका बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ा रही हैं और घरेलू विकास के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा कर रही हैं।'
आर्थिक वृद्धि को मुद्रास्फीति से खतरा सुस्थापित है। अक्तूबर, 1979 में, विकास और मुद्रास्फीति के प्रबंधन पर एक मौलिक वार्ता में, पूर्व अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष पॉल वोल्कर ने कहा था, 'यदि मुद्रास्फीति हाथ से निकल जाती है, तो स्पष्ट है कि यह अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास, उत्पादकता, निवेश के माहौल और अंततः रोजगार के लिए सबसे बड़ा खतरा होगी।' मुद्रास्फीति कमजोर लोगों को सबसे नुकसान पहुंचाती है और खपत, निवेश तथा विकास में व्यवधान पैदा करती है। मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद की बातचीत में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने जोर देकर कहा कि एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वास्तविक ब्याज दरें सकारात्मक रहें और मुद्रास्फीति को फिर से ठीक करने में संतुलन कायम करे।
अंतर और चुनौती को समझने के लिए मौजूदा रेपो रेट और मुद्रास्फीति के रुझान को देखना चाहिए। 5.7 फीसदी के अनुमानित औसत को मानते हुए इस अंतर को पाटने के लिए दरों में छह बार बढ़ोतरी की आवश्यकता होगी। रिजर्व बैंक ने फरवरी में असंतुलन को ठीक करने की कोशिश की थी, जो फिर से असंतुलित हो गई है। सवाल है कि केंद्रीय बैंक किसका इंतजार कर रहा है। इस स्तंभकार ने पहले भी बताया है कि लाखों बचतकर्ता लंबे समय से नकारात्मक ब्याज दर का खामियाजा भुगत रहे हैं। पिछले बारह महीनों में से छह महीने उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति लगभग छह प्रतिशत के आसपास रही। मुद्रास्फीति के सात प्रतिशत के करीब पहुंचने की आशंका वास्तविक है और मौद्रिक नीति समिति की विश्वसनीयता को खतरे में डालती है।
कुल मिलाकर, नीति के लिए संदर्भ महत्वपूर्ण है। विकसित अर्थव्यवस्थाएं ब्याज दरें बढ़ाने और बैलेंस शीट घटाने में लगी हुई हैं। फिलहाल आम सहमति यह है कि अगले महीने, और शायद जून में फिर से, अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में 50 आधार अंक (0.50 प्रतिशत) की वृद्धि करेगा। यह अनुमान है कि 2022 के अंत तक, अमेरिका में दरों में सात बढ़ोतरी होगी। यकीनन, भारत के विदेशी भंडार का स्तर और विदेशी मुद्रा के आधार पर उधार बफर के रूप में कार्य करेंगे। फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि बढ़ती दरों और बैलेंस शीट के सिकुड़ने से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में प्रवाह, इक्विटी और ऋण प्रभावित होंगे। मुद्रास्फीति के मामले में वक्र यानी लक्ष्य के पीछे रहने से लागत बढ़ती है और उसके सामाजिक एवं राजनीतिक निहितार्थ होते हैं। क्या भारत यह बर्दाश्त कर सकता है?
Next Story