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लेकिन उसके आगे सब ठीक होने की उम्मीद है, इसलिए भरोसा रखकर निवेश करते रहना चाहिए।
हाल ही में अमेरिकी वित्तमंत्री और अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व की पूर्व अध्यक्ष, जैनेट येलेन ने स्वीकार किया कि वह पिछले साल मुद्रास्फीति की प्रकृति को समझ नहीं पाई थीं। अधिकांश अमेरिकी केंद्रीय बैंकरों की तरह उन्होंने भी महसूस किया कि मुद्रास्फीति 2021 में चरम पर होगी और फिर 2022 में नीचे आना शुरू हो जाएगी। केंद्रीय बैंकरों के फैसले को गलत साबित करने में तीन बड़े कारकों का योगदान है।
पहला, वर्ष 2022 की शुरुआत में ओमिक्रॉन वैरिएंट में उछाल ने पहले से ही बाधित आपूर्ति शृंखलाओं की स्थिति को और बिगाड़ दिया, जिससे चीजों की कमी और कीमतों में बढ़ोतरी हुई। दूसरा, चीन में कोविड मरीजों की संख्या बढ़ी, जिसके चलते उसने 'शून्य कोविड नीति' के तहत अपनी लगभग 40 करोड़ की आबादी को घरों में कैद कर दिया, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला में गंभीर व्यवधान पैदा हुआ और मुद्रास्फीति में और वृद्धि हुई।
तीसरा, 24 फरवरी से रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध ने भी आग में घी डालने का काम किया। इससे गेहूं, खाद्य तेल, धातु, उर्वरक और सबसे महत्वपूर्ण तेल और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बाधित हुई। पश्चिमी देशों ने जवाबी कार्रवाई में रूस पर प्रतिबंध लगाए, जिससे तेल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच गईं। पिछले पांच महीनों में महंगाई में और तेजी से बढ़ोतरी हुई। और जोखिम यह है कि यह वैश्विक प्रकृति हो गई है, जिससे खाद्यान्न, ऊर्वरक और ऊर्जा-हर चीज की कीमतें बढ़ गई हैं।
अमेरिकी फेड ने अपनी आसान मुद्रा नीति को समाप्त कर अपना रुख सख्त कर लिया। उसने मार्च और मई में अपनी फेड फंड दर में वृद्धि की और जून और जुलाई में और भी बढ़ोतरी की घोषणा की। ऐसा करके उसने डॉलर की तरलता को मजबूत किया। नतीजतन इस वर्ष प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में अब तक 6.8 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस पृष्ठभूमि में, भारतीय रिजर्व बैंक ने विगत चार मई को एक आपातकालीन मौद्रिक नीति बैठक की।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो दर को चार फीसदी से बढ़ाकर 4.4 फीसदी कर दिया और सीआरआर में 0.5 फीसदी की वृद्धि कर मुद्रा बाजारों से अतिरिक्त तरलता को दूर करना चाहा। इस सीआरआर वृद्धि ने 88,000 करोड़ रुपये की तरलता कम कर दी और आरबीआई की सख्त मौद्रिक नीति का संकेत दिया। विगत आठ जून को रेपो दर में 50 बेसिस पॉइंट की वृद्धि करने पर यह दर 4.9 फीसदी हो गई। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 में 7.2 फीसदी विकास दर का अनुमान रखा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि रिजर्व बैंक ने अप्रैल, 2022 की अपनी अनुमानित 5.7 मुद्रास्फीति दर को बढ़ाकर वित्त वर्ष 2023 के लिए 6.7 फीसदी कर दिया है। सीआरआर दर के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है, क्योंकि यह मई की कार्रवाई के बाद पहले ही घट गई है। अर्थव्यवस्था और बाजारों के लिए इसके मुख्य निहितार्थ क्या हैं? पहला, रिजर्व बैंक ने संकेत दिया है कि वह कोविड काल में दिए गए राहत को वापस ले लेगा।
गौरतलब है कि मार्च 2020 में, आरबीआई ने दरों में 75 बीपीएस की कटौती की और मई 2020 में उसने 40 बीपीएस की कटौती की। चार मई, 2022 को इसने दरें बढ़ाकर मई 2020 की 40 आधार अंकों की कटौती को वापस ले लिया। अब जून में इसने मार्च 2020 के 75 बीपीएस कटौती में से 50 बीपीएस वापस ले लिया है। इसलिए, हम आरबीआई की नीति को सामान्य करने के लिए 25 बीपीएस की न्यूनतम वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं, ताकि अगस्त में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में समायोजन हो सके।
दूसरा, आरबीआई ने आखिरी बार 2019 में दरों में कटौती शुरू की थी, जब रेपो दर 6.25 फीसदी थी। इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि आरबीआई रेपो दर को मार्च/अप्रैल, 2023 में 6.25 फीसदी के स्तर तक पहुंचने तक बढ़ाता रहेगा। तीसरा, सरकार भी कीमतों पर नियंत्रण के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसने कीमतों को कम करने के लिए लगभग 26 अरब डॉलर के राजकोषीय राहत पैकेज की घोषणा की।
इसके अलावा, नागरिकों व किसानों पर महंगाई का असर कम करने के लिए खाद्यान्न एवं उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि की गई है। चौथा, वैश्विक स्तर पर खाद्य, ईंधन और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने के कारण मुद्रास्फीति और बढ़ेगी। इसलिए अनुमान है कि रिजर्व बैंक अगस्त की बैठक में वित्त वर्ष 2023 के लिए मुद्रास्फीति की अनुमानित दर को बढ़ाकर 7.3 से 7.5 फीसदी कर देगा। इससे रिजर्व बैंक पर तेजी से मुद्रास्फीति को अपनी उम्मीद के अनुसार नियंत्रण में लाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का दबाब बनेगा।
पांचवां, अगस्त में रिजर्व बैंक 40 या 50 बेसिस पॉइंट दर और बढ़ाएगा और फिर हर बैठक में रेपो दर 6.25 फीसदी होने तक 25 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी करेगा। छठा, तरलता को भी कम करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकार का उधार कार्यक्रम आगे बढ़े। ऐसा करने के लिए रिजर्व बैंक को बेहतर संतुलन बनाना होगा। अक्तूबर तक सीआरआर में 50 बीपीएस की हम एक और वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे लगभग 90,000 करोड़ रुपये की तरलता कम हो जाएगी।
इन सभी सख्ती का मतलब होगा कुल मांग में कमी, सभी प्रकार के ऋणों के लिए उच्च उधारी लागत, धीमी आर्थिक गतिविधि और बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि। शेयर बाजार, जो पिछले दो वर्षों से आसान मौद्रिक नीति का लाभ उठाता रहा है, सख्त मौद्रिक नीति से बुरी तरह प्रभावित होगा। अच्छी बात यह है कि इस दर बढ़ोतरी चक्र के पूरा होने के बाद अच्छे दिन आएंगे। जैसे ही मुद्रास्फीति बढ़ना बंद होगी और अगले साल स्थिर होगी, हम देखेंगे कि जोखिम उठाने की क्षमता वापस आ जाएगी।
जहां तक रुपये की बात है, तो रिजर्व बैंक इसका मूल्यह्रास नहीं होने देगा। अब तक आरबीआई ने कुशलता से रुपये का बचाव किया है और आगे भी करेगा। 601 अरब डॉलर का हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बहुत बड़ा है और आरबीआई को बहुत सहारा देता है। अगले आठ-नौ महीने कठिन रहने वाले हैं, क्योंकि वैश्विक केंद्रीय बैंक दर बढ़ाएंगे और तरलता को कम करेंगे। लेकिन उसके आगे सब ठीक होने की उम्मीद है, इसलिए भरोसा रखकर निवेश करते रहना चाहिए।
सोर्स: अमर उजाला
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