सम्पादकीय

अर्थशास्त्र: अच्छा संकेत है कर राजस्व में वृद्धि

Neha Dani
28 March 2022 1:53 AM GMT
अर्थशास्त्र: अच्छा संकेत है कर राजस्व में वृद्धि
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मुद्रास्फीति के कारण परेशान मध्यवर्ग के लिए राहत भरी होगी।

हाल ही में पेश किए गए बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संशोधित कुल कर राजस्व के बढ़कर 25.16 लाख करोड़ होने का एलान किया, जबकि शुरुआती आकलन में कुल कर राजस्व 22.17 लाख करोड़ रहने की बात कही गई थी। दरअसल इन पंक्तियों के लेखकों ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस के नौ दिसंबर, 2021 के अंक में ही अन्प्रेसिडेंटिड टैक्स रेवेन्यू ऑग्युर्स वेल ऑर इंडिया (भारत के लिए शुभ है अभूतपूर्व कर राजस्व) शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में इस बारे में बता दिया था।

हमने पारंपरिक तरीके से गणना कर यह आकलन किया था कि वित्त वर्ष 2021-22 में कुल कर राजस्व 25.1 लाख करोड़ हो सकता है, बल्कि इसके और बढ़कर 26.2 लाख करोड़ होने की भी संभावना है। कुल कर राजस्व के बढ़कर 25.16 लाख करोड़ होने का श्रेय मुख्य तौर पर कॉरपोरेशन टैक्स, आयकर और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) में बढ़ोतरी को जाता है। सरकार ने विगत जनवरी में वास्तविक टैक्स संग्रह का आंकड़ा जारी किया था, जो 20.98 लाख करोड़ रुपये था। इसमें अगर फरवरी और मार्च के टैक्स संग्रह को जोड़ दें, जो 5.27 लाख करोड़ रुपये हैं, तो पारंपरिक आकलन के अनुसार भी मौजूदा वित्त वर्ष में कुल कर राजस्व 26.25 लाख करोड़ रुपये होते हैं-यह सरकार के संशोधित आंकड़े से करीब एक लाख करोड़ ज्यादा है। हमारे मुताबिक, कर राजस्व में वृद्धि का कारण है कॉरपोरेशन टैक्स का 6.35 लाख करोड़ से बढ़कर 6.69 लाख करोड़ होना और जीएसटी के 6.75 लाख करोड़ से बढ़कर 7.08 लाख करोड़ होना।
यह देखना दिलचस्प है कि सरकार ने एक बार फिर पारंपरिक तरीके से कर आंकड़ों की गणना की। वित्त वर्ष 2022-23 में अनुमानित कुल कर राजस्व 27.57 लाख करोड़ रहने की उम्मीद है। कुल कर राजस्व में कमी की वजह यह है कि विगत दिसंबर में ईंधन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी की गई थी। अगर मौजूदा वित्त वर्ष के अंत में कुल कर राजस्व बढ़कर 26.25 लाख करोड़ होने का अनुमान है, तो सरकारी आकलन के मुताबिक, आगामी वित्त वर्ष में कुल कर राजस्व में इसमें मात्र 1.32 लाख करोड़ वृद्धि होने की ही संभावना है, जो मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में महज पांच प्रतिशत ही अधिक होगी। लेकिन वास्तविक तौर पर देखें, तो आगामी वित्त वर्ष में कुल कर राजस्व संग्रह में वास्तविक वृद्धि 9.6 प्रतिशत होनी है। ऐसे में, कोई सहज तौर पर अनुमान लगा सकता है कि आगामी वर्ष कुल कर राजस्व में सरकार द्वारा अनुमानित वृद्धि से भी एक-डेढ़ लाख करोड़ रुपये की अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।
अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि दर 17.4 प्रतिशत होने की उम्मीद है, हालांकि हालिया अनुमानों ने इस संभावना को कमोबेश धुंधला दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के आर्थिक असर का आकलन होना शेष है। विगत फरवरी तक आर्थिक वृद्धि सामान्य ही दिख रही थी, क्योंकि निर्यात के साथ-साथ आयात में भी बढ़ोतरी हुई, और ई-वे बिल में भी वृद्धि देखी गई। इसी कारण मौजूदा वित्त वर्ष में वास्तविक कर राजस्व सरकार के संशोधित अनुमान से अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
विगत जनवरी तक लाभांश और मुनाफे का आंकड़ा सरकार के संशोधित आकलन 1.47 लाख करोड़ से कम 1.41 लाख करोड़ था। संशोधित आकलन के 96 फीसदी की उगाही विगत जनवरी तक हो चुकी थी। चूंकि कई सार्वजनिक उद्यमों ने अंतरिम लाभांश की घोषणा की है, ऐसे में, हम इसमें मार्च तक 20,000 करोड़ की वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे लाभांश और मुनाफे का आंकड़ा बढ़कर 1.61 लाख करोड़ हो सकता है।
विनिवेश के मोर्चे पर ही थोड़ी हताशा है। सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य घटाकर 78,000 करोड़ कर दिया था, इसके बावजूद विगत जनवरी तक सिर्फ 12,036 करोड़ रुपये का ही वास्तविक विनिवेश हो पाया। अगर मार्च के अंत तक और विनिवेश नहीं हुआ, तो विनिवेश लक्ष्य में 65,000 करोड़ की कमी आएगी। हालांकि लाभांश के मद में 20,000 करोड़ की वृद्धि से इसकी थोड़ी-बहुत भरपाई हो सकती है। मौजूदा वित्त वर्ष में कुल खर्च 37.70 लाख करोड़ होने का अनुमान है। जबकि जनवरी तक खर्च का आंकड़ा 28.09 लाख करोड़ था। संशोधित अनुमान के अनुसार, अतिरिक्त पूंजीगत व्यय 1.60 लाख करोड़ रुपये होना है और ब्याज के भुगतान में दो लाख करोड़ रुपये खर्च होने हंै। जनवरी तक हुए वास्तविक खर्च और संशोधित खर्च अनुमान को देखें, तो 9.61 लाख करोड़ रुपये खर्च होने हैं। वित्तीय घाटा का आंकड़ा 15.91 लाख करोड़ रुपये है, जबकि जनवरी तक वास्तविक वित्तीय घाटा 9.37 लाख करोड़ था। अगर लक्ष्य वही है, तो फरवरी और मार्च में 6.54 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेने की जरूरत है, जिसका बड़ा हिस्सा छोटी बचतों से आ सकता है। कर संग्रह के मोर्चे पर सचमुच उम्मीद है। बेशक रूस-यूक्रेन युद्ध से अनिश्चय की जो स्थिति पैदा हुई है, उससे कॉरपोरेट मुनाफा प्रभावित होगा। जबकि कच्चे तेल के मूल्य बढ़ने का विभिन्न उद्योग क्षेत्रों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और उसका खामियाजा अंततः उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा।
कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह का तुलनात्मक आंकड़ा देखें, तो फरवरी-मार्च, 2019 में यह 2.09 लाख करोड़ (पूरे साल का 31.5 फीसदी), फरवरी-मार्च, 2020 में 1.64 लाख करोड़ (पूरे साल का 29.4 फीसदी) और फरवरी-मार्च, 2021 में 1.22 लाख करोड़ (पूरे वर्ष का 26.8 प्रतिशत) था। अगर कोई मौजूदा वित्त वर्ष में कॉरपोरेशन टैक्स में अनुमानित 6.69 लाख करोड़ की प्राप्ति पर गौर करे, तो इसमें 1.22 लाख करोड़ की वृद्धि पूरे साल का केवल 18.2 प्रतिशत ही है। यह देखते हुए, कि दिसंबर, 2021 में 1.67 लाख करोड़ कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह दिसंबर, 2020 के 1.27 लाख करोड़ से बहुत अधिक है, ऐसे में, यह बिल्कुल संभव है कि इस महीने कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह अनुमान से अधिक हो। कर संग्रह में वृद्धि सरकार को व्यक्तिगत आयकर ढांचे को बदलने और उसे सरल बनाने का मौका प्रदान करेगी। बगैर किसी कटौती के प्रावधान के मौजूदा सात ढांचे की प्रणाली बेहद जटिल है। कटौती के प्रावधान के बगैर तीन ढांचों वाली व्यक्तिगत आयकर प्रणाली महामारी और मुद्रास्फीति के कारण परेशान मध्यवर्ग के लिए राहत भरी होगी।

सोर्स: अमर उजाला

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