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इस साल इकनॉमिक्स में दिया गया नोबेल पुरस्कार जितना महत्वपूर्ण अर्थशास्त्रीय विमर्शों के लिहाज से है, उतना ही उपयोगी आम लोगों की सामान्य दिनचर्या में आसानी से पैठ बनाती मान्यताओं, यहां तक कि पूर्वाग्रहों की सत्यता खंगालने की दृष्टि से भी है। यह समझना जरूरी है कि समय के साथ जनजीवन का हिस्सा बन जाने वाली मान्यताएं या पूर्वाग्रह भी सत्य से पूरी तरह वंचित नहीं होते। अगर समाज के किसी हिस्से में यह मान्यता जड़ जमा चुकी है कि घर से निकलते समय जिंदा मछली या नीलकंठ पक्षी दिख जाए तो दिन अच्छा होता है तो बहुत संभव है कि इसके पीछे कुछ ऐसे संयोग होंगे जिनमें मछली या नीलकंठ पर नजर पड़ने के बाद कुछ लोगों के काम सधते हुए देखे गए होंगे। दिक्कत यह है कि आम लोगों के पास इस तरह के संयोगों की वैज्ञानिक पड़ताल करने या कथित कारण और उसके बताए जा रहे परिणाम के बीच अनिवार्य रिश्ते को देखने, पहचानने, समझने और उसकी वैज्ञानिक तौर पर पुष्टि या खंडन करने लायक समझ, फुरसत और क्षमता नहीं होती। मगर वैज्ञानिकों के लिए यह हमेशा से एक चुनौती रही है।