सम्पादकीय

सुधर रहे हैं आर्थिक-सामाजिक हालात, ऐसे मिल रहे संकेत

Gulabi
7 Nov 2020 2:32 PM GMT
सुधर रहे हैं आर्थिक-सामाजिक हालात, ऐसे मिल रहे संकेत
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद नकारात्मक

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) नकारात्मक रहेगा। देखा जाए, तो इस बयान में विरोधाभास नहीं है, क्योंकि रिजर्व बैंक की मौद्रिक समिति के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी दर ऋणात्मक 9.5 प्रतिशत रह सकती है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी के नकारात्मक रहने के बाद सितंबर और दिसंबर तिमाहियों में भी जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान है।

दूसरी तिमाही में यह 9.8 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत नकारात्मक रह सकती है। हालांकि चौथी तिमाही से आर्थिक हालात में सुधार आने का अनुमान है और यह अंतिम तिमाही में सकारात्मक होकर 0.5 प्रतिशत रह सकती है। चौदह अक्तूबर के आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए खातों की संख्या 41.05 करोड़ पहुंच गई, जिनमें 1,30,741 करोड़ रुपये जमा थे। अप्रैल, 2020 से 14 अक्तूबर 2020 तक तीन करोड़ प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले गए, जिनसे इनमें 11,060 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई, जबकि वर्ष 2019 की समान अवधि में केवल 1.9 करोड़ प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले गए थे और इनमें महज 7,857 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई थी। यानी पिछले साल की तुलना में इस साल नए

जनधन खातों में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई। नए जनधन खातों की संख्या में इजाफा का कारण कोरोना काल में लोगों का रुझान डिजिटल भुगतान की तरफ होना है।

जिन महिलाओं का जनधन खाता है, आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सरकार ने उसमें तीन महीने तक 500 रुपये डाला, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री जनधन खाता के औसत अधिशेष में वृद्धि हुई है। जैसे, अप्रैल में प्रधानमंत्री जनधन खातों में औसत जमा अधिशेष 3,400 रुपये था, जो सितंबर में घटकर 3,168 रुपये रह गया, जिसका कारण तालाबंदी और बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार जाना है। मुश्किल वक्त में आमजन ने अपनी बचत का इस्तेमाल जीवन यापन के लिए किया। हालांकि, शुरुआती वर्षों में जनधन खाताधारकों की ऐसी प्रवृति नहीं थी, जो इस बात का संकेत है कि अब आम जन भी बैंक खाते का महत्व समझ रहे हैं।

वैसे देश में अब भी पलायन की प्रवृति कुछ मौसमी और कुछ स्थायी है, जिसका कारण राज्यों में असंतुलित विकास होना या फिर राज्यों का औद्योगिकीकरण की दृष्टि से सशक्त नहीं होना है। अमूमन, उद्योग-धंधों का विकास न होने से गरीब और गैर गरीब, दोनों रोजगार हासिल करने विकसित राज्यों की ओर पलायन करते हैं। हालांकि, इस साल कोरोना की वजह से मजदूरों एवं कामगारों को अप्रैल एवं मई-जून में अपने गांव-घर लौटने पर मजबूर होना पड़ा।

आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल में तालाबंदी की वजह से मजदूरों या कामगारों द्वारा किया जाने वाला रेमिटेंस रुक गया था, पर जून और जुलाई में धीरे-धीरे इसमें बेहतरी आई। हालांकि, अगस्त में इसमें पुनः कमी आई, जिसका कारण देश भर में भारी बारिश और अनेक राज्यों का बाढ़ से प्रभावित होना था। फिर सितंबर में रेमिटेंस का आंकड़ा कोरोना काल से पहले के स्तर पर पहुंच गया। इससे यह पता चलता है कि अधिकांश अपने काम पर लौट गए हैं और बचे हुए मजदूर एवं कामगार दिवाली और छठ के बाद काम पर लौट सकते हैं।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020 में 1.10 करोड़ नए कामगार भविष्य निधि से जुड़े, जबकि वित्त वर्ष 2019 में 1.39 करोड़ नए कर्मचारी भविष्य निधि से जुड़े थे। इस तरह वर्ष 2019 के मुकाबले वर्ष 2020 में 29 लाख सदस्यों की नौकरी तालाबंदी की वजह से चली गई। वैसे, अप्रैल से अगस्त तक 25 लाख नए सदस्य भविष्य निधि से जुड़े, जिनमें से 12.4 लाख सदस्य पहली बार भविष्य निधि संगठन से जुड़े थे। इस वजह से भी रेमिटेंस की राशि में इजाफा देखा जा रहा है।

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