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विगत 19 मई को भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा 2000 रुपए के नोटों के चलन से वापस लिए जाने के फैसले के बाद अब पूरे देश में आम आदमी से लेकर उद्योग-कारोबार और आर्थिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसके परिणामों पर विचार मंथन कर रहे हैं। 15 जून 2023 तक बैंकों में 2000 रुपए के चलन में मौजूद रुपयों में से आधे से अधिक बैंकों में जमा हो चुके हैं और विभिन्न बैंकिंग और वित्तीय रिपोर्टों में नोट वापसी के निर्णय को लाभप्रद बताया जा रहा है। गौरतलब है कि आरबीआई ने ऐलान किया है कि 23 मई से लेकर 30 सितंबर तक 2 हजार रुपए के नोटों को बैंक खातों में जमा कराया जा सकेगा या ये नोट बैंकों में जाकर बदले जा सकेंगे। आरबीआई ने जोर देकर कहा है कि ये नोट आगे भी वैध बने रहेंगे। अब बैंक भी देशभर में खाताधारकों को 2000 रुपए के नोट जारी नहीं करेंगे। नि:संदेह बाजार में 2000 रुपए के नोट आने के 78 महीने बाद ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसे चलन से बाहर करने का ऐलान कर सभी को चौंकाया है। 2000 रुपए के नोट के चलन को बंद करने के फैसले के बाद आरबीआई ने कहा है कि ये फैसला नोटबंदी के बाद पैदा हुई जरूरतों को पूरा करने के मद्देनजर लिया गया है और यह उद्देश्य बाजार में कम मूल्य के अन्य नोट पर्याप्त मात्रा में आ जाने के बाद पूरा हो गया है।
रिजर्व बैंक ने दो हजार रुपए के नोटों को वापस लेते हुए यह भी कहा है कि ये निर्णय बैंक की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत किया जा रहा है। क्लीन नोट पॉलिसी यह सुनिश्चित करती है कि लोगों के बीच अच्छी गुणवत्ता के नोट पहुंचें। इस पॉलिसी का उद्देश्य नकली और गंदे नोटों को हटाकर भारतीय मुद्रा की अहमियत को बनाए रखना भी है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था। इसके बाद पूरे देश में 500 और 1000 रुपए के नोट बंद हो गए थे जो कि उस समय पूरी करेंसी सर्कुलेशन के कुल 86 प्रतिशत थे। नोटबंदी के फैसले से काला धन एवं नकली नोट पर रोक आतंकवाद पर अंकुश और देश को डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ाने की बात कही गई थी। ज्ञातव्य है कि 2000 रुपए का यह नोट नवंबर 2016 में बाजार में तब आया था, जब केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोट बंद किए थे और इनकी जगह 500 और 2000 रुपए के नए नोट जारी किए गए थे। रिजर्व बैंक की अगस्त 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि 500 और 1000 रुपए के 99.30 प्रतिशत पुराने नोट वापस बैंकों में जमा हो गए हैं। यानी इन रुपयों से प्रचलन में रहा करीब-करीब सम्पूर्ण रुपया बैंकों में जमा हो गया।
यद्यपि दो हजार रुपए के नोट जारी करते हुए आरबीआई ने दावा किया था कि इसमें सुरक्षा के जो फीचर रखे गए हैं, उनकी नकल करना काफी मुश्किल है। फिर भी ऐसा नहीं हुआ, जाली नोटों की समस्या अभी बनी हुई है। आरबीआई के अनुसार वर्ष 2016 से वर्ष 2023 के बीच बाजार में नकली नोटों की संख्या करीब 10.7 प्रतिशत बढ़ गई है। नोटबंदी के बाद से अब तक जितने भी जाली नोट पकड़े गए हैं, उनमें करीब 60 प्रतिशत 2000 रुपए के नोट रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 2000 रुपए के नोट को वर्ष 2019 के बाद से ही छापना बंद कर दिया था। यदि हम आंकड़ों की ओर देखें तो पाते हैं कि देश में 31 मार्च 2018 को 6.73 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 2000 रुपए के नोट प्रचलन में थे, जो कि देश में प्रचलन के कुल नोटों का 37.3 फीसदी थे। अब मई 2023 को यह हिस्सेदारी घटकर करीब 3.62 लाख करोड़ रुपए है जो कि प्रचलन में नोटों का 10.8 प्रतिशत ही रह गई है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि एक ओर 2016 में नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में लगातार वृद्धि हुई, नोटबंदी के साथ बेहतर इंटरनेट की व्यवस्था और स्मार्टफोन के व्यापक विस्तार के साथ-साथ कोविड महामारी और डिजिटलीकरण से जीवन को आसान करने वाली सरकारी योजनाओं ने भी डिजिटल पेमेंट को बढ़ाया है। रिपोर्टों के मुताबिक अब वर्ष 2026 तक भारत में हर तीन में दो लेन-देन डिजिटल होंगे, वहीं दूसरी ओर नकदी पर लोगों की निर्भरता भी पहले से कहीं ज्यादा हो गई है। देश में नोटबंदी से पहले करीब 17.74 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा चलन में थी, जो अब बढक़र करीब 32.42 लाख करोड़ रुपए हो गई है। स्पष्ट है देश में नोटबंदी के साढ़े छह साल बाद भी नकदी का भरपूर उपयोग जारी है।
यदि हम 23 मई से 2000 रुपए के नोट वापस लिए जाने के निर्णय के लागू होने के बाद से जून 2023 तक के परिदृश्य को देखें तो पाते हैं कि एक ओर वर्ष 2016 में नोटबंदी के समय की अफरा-तफरी से सीख लेते हुए बैंकों ने इस बार 2000 रुपए के नोट बदलने और जमा करने की पुख्ता तैयारी की है। 23 मई से देश के कोने-कोने में बैंक विशेष काउंटकर लगाकर नोट बदल रहे हैं। यदि हम बाजार की ओर देखें तो पाते हैं कि 2000 रुपए के नोट वापस लेने के फैसले के बाद रियल एस्टेट और सोने जैसी महंगी चीजों की मांग बढ़ी है। ज्वेलर्स की दुकानों पर लोग अपने 2000 के नोट को गहनों में इन्वेस्ट कर रहे हैं। इस फैसले का कुछ बुरा असर कृषि और निर्माण जैसे छोटे व्यवसायों पर पड़ा है। इसके अलावा ऐसे क्षेत्र जहां आज भी डिजिटल ट्रांजेक्शन के मुकाबले ज्यादा लोग नकदी का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें भी कुछ असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम मौद्रिक नीति की ओर देखें तो पाते हैं कि 2000 रुपए का नोट वापस लिया जाना बहुत बड़ी घटना नहीं है और इससे मौद्रिक नीति पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। पिछले 6-7 सालों में देश में डिजिटल लेन-देन और ई-कॉमर्स का दायरा काफी बढ़ गया है। 2000 का नोट वापस मंगाने के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले से अर्थव्यवस्था पर भी कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि ऐसे वापस हुए नोटों के स्थान पर उसी कीमत के कम मूल्यवर्ग के नोट जारी किए जा रहे हैं। इसलिए धन प्रवाह पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है। प्रणालीगत भुगतान पर प्रभाव की संभावना नहीं है क्योंकि बड़े पैमाने पर इन नोटों का उपयोग दैनिक भुगतानों में नहीं किया जाता है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि 2000 रुपए के नोटो की वापसी डिजिटल लेनदेनों को बढ़ाएगी। वित्तीय सेवाओं के वैश्विक विस्तार, महामारी से लॉकडाउन के कारण भौतिक भुगतान पर नियंत्रण हुआ और वित्तीय समावेशन में वृद्धि हुई है। इससे डिजिटल भुगतान में भारी वृद्धि हुई है। ऐसे में 2000 रुपए के नोट वापस होने से देश तेजी से डिजिटलीकरण और अनुपालन संचालन की डगर पर आगे बढ़ेगा। चूंकि भारत एक आधिकारिक आभासी मुद्रा, डिजिटल रुपए की घोषणा करने वाला प्रमुख देश है और अब चीनी डिजिटल मुद्रा युआन की तरह भारत के डिजिटल रुपए के भी तेजी से आगे बढऩे की संभावनाएं उभरकर सामने आएंगी। हम उम्मीद करें कि 23 मई से जिस तरह संतोषप्रद तरीके से 2000 रुपए के नोटों की वापसी हो रही है, वह सितंबर 23 तक संतोषप्रद बनी रहेगी। जिस तरह 80 फीसदी से अधिक लोग अपने 2000 रुपए के नोटों को बैंकों में जमा कराने का विकल्प चुन रहे हैं, उससे बैंकों में नकदी बढ़ेगी और उससे उद्योग-कारोबार तथा अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
डा. जयंती लाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal

Rani Sahu
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