सम्पादकीय

केंचुओं को भगवान मिल गया

Gulabi
17 Jan 2022 6:07 AM GMT
केंचुओं को भगवान मिल गया
x
देश की बात सुनते-सुनते केंचुए भी मन की बात पर उतर आए
देश की बात सुनते-सुनते केंचुए भी मन की बात पर उतर आए। उन्हें अब यह शक हो गया कि सारा ब्रह्मांड ही उनकी पीठ पर सवार है। जो कुछ चारों तरफ हो रहा है, केवल केंचुआ प्रवृत्ति ही कर रही है, वरना इनसानी फितरत तो कब की सो गई है। लिहाजा केंचुए गली-मोहल्लों से निकलकर उस बड़े मैदान पर एकत्रित हो गए, जहां देश के नेता रैलियां करते थे। वहीं रामलीला के बहाने हर साल राम आते थे और गणेशोत्सव के दौरान प्रतीत होता रहा है कि मानव जाति के विघ्न अगर मिट रहे हैं, तो केवल इसी मैदान पर आकर स्वयं गणेश जी मिटाते हैं। केंचुए मैदान पर पहुंच कर एक-दूसरे का स्वागत कर रहे थे। वहां तरह-तरह के केंचुए पहुंच रहे थे और हर कोई अपनी-अपनी मिट्टी का रंग बता रहा था। कुछ के शरीर पर वीआईपी मिट्टी थी, इसलिए उन्हें आगे की पंक्ति मिल रही थी। जो साफ-सुथरे थे, उन्हें न तो कोई पहचान दे रहा था और न ही आगे निकलने का अवसर मिल रहा था। कुछ केंचुए आगे बढ़ने के लिए झगड़ भी रहे थे, एक-दूसरे पर 'पालतू' होने का आरोप लगा रहे थे कि तभी अदालत की मिट्टी में पलता रहा केंचुआ आ गया।
केंचुए सहम गए, अपने सामने अदालती केंचुआ देखकर हैरान थे कि देखने में तो वह भी उन्हीं की तरह था, फिर अकड़ क्यों रहा। फुसफुसाहट शुरू हुई, 'देखने में तो यह भी रीढ़विहीन है, फिर अकड़ क्यों रहा।' किसी ने कहा, 'भई यह व्यवस्था में पला है, इसलिए अकड़ना आ गया।' स्वागत कक्ष में खड़ी केंचुओं की टोली शहर के डीसी आफिस से आई थी। बिल्कुल प्रशासनिक मिट्टी से सनी हुई यह बता रही थी कि देश किस तरह उनकी वजह से चल रहा है। इस टोली को केवल स्वागत करने का पता था, लेकिन कौन किधर जा रहा था या जा सकता है, कोई पता नहीं। मैदान पर आते हुए केंचुओं के लिए यह राहत की बात थी कि उनके लिए पलकें बिछा कर डीसी आफिस की मिट्टी में पैदा हुए वहां थे। उन्हें प्रशासनिक तौर पर स्कीमें समझाई जा रही थीं। एक घंटा मैदान में बैठने पर केवल वादा मिलेगा। दो घंटे नेता को सुनने पर उनके ऊपर प्रजातीय मिट्टी का छिड़काव होगा। तीन घंटे की अवधि में उन्हें मालूम हो जाएगा कि वही बेहतर नस्ल हैं। फायदे सुनते-सुनते एक अति वफादार केंचुए ने पूछ लिया, 'सारी जिंदगी इसी मैदान पर लगा देने से क्या मिलेगा।' प्रश्न सुनकर प्रशासनिक टोली मुस्कराते हुए कहने लगी, 'हालांकि लाभ की कोई सीमा नहीं। केंचुए बने रहोगे तो ताउम्र लाभ में रहोगे।
हर सत्ता में केंचुओं को ही अब पाला जाएगा, लेकिन शर्त यही है कि जिस दिन यह प्रवृत्ति नष्ट हो गई, न काबिल रहेंगे और न ही काबिलीयत काम आएगी। एक दिन केंचुए को ही केंचुए से नफरत करनी है और जिस दिन यह हो गया हम सभी को मोक्ष मिल जाएगा।' केंचुए स्वागत कक्ष से ही भावुक होकर मैदान तक पहुंच रहे थे। उनकी मर्यादा केवल यही थी कि मैदान पर यह देखें कि कौन केंचुआ कितना बड़ा हो गया है। केंचुओं ने वहां गिरगिट की तरह रंग बदलते केंचुए देखे तो हैरान हो गए, 'ऐसा क्या है कि जो एमएलए हॉस्टल की मिट्टी से निकल कर आ रहे हैं, पल-पल में रंग बदल रहे हैं।' दफ्तरों की मिट्टी से निकले केंचुए बड़े शैतान थे। उनकी खाल पर मृगतृष्णा सवार थी। अंततः वहां मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों की मिट्टी से निकले केंचुए पहुंच गए। अभिभूत केंचुए नारेबाजी करने लगे। सदियों बाद कंेचुओं को गर्व हो रहा था कि वे भी उसी मिट्टी में पले हैं, जहां भारतीय चरित्र पल रहा है। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रीढ़विहीन होना किसी वरदान से कम नहीं। इनसान कितने संघर्ष, चालबाजी, झूठ-फरेब, नौटंकी या चापलूसी से केंचुआ बनना चाहता है, जबकि उनकी प्रजाति बिना रीढ़ भी उसी मिट्टी को ढो रही है जिसके ऊपर इनसान का हक है। समारोह और आगे बढ़ता, लेकिन तब तक मीडिया की मिट्टी से सने केंचुए यह कहने पे उतारू हो गए कि 'गुड गवर्नेंस' के लिए वहां मौजूद सभी को अपने बीच में से किसी एक को अवतार मान लेना चाहिए। खैर मीडिया की पहचान में अब केंचुओं को भी भगवान मिल गया और वहां मौजूद अन्य सभी उसके भक्त हो गए।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
Next Story