सम्पादकीय

धरती से विलुप्त होती संपदा

Gulabi
15 Oct 2021 5:30 PM GMT
धरती से विलुप्त होती संपदा
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बिना मांगे भी कितना देते हैं ये वृक्ष हम इंसानो को

बिना मांगे भी कितना देते हैं ये वृक्ष हम इंसानो को. कभी माली से एक छोटा सा अमरुद का पौधा लगवाया था. थोड़ा पानी दिया, फिर खुद ही बढ़ता गया. मैं अपनी व्यस्तताओं में उलझ गई, धीरे-धीरे पल्लवित होता पौधा, मन में खुशियां भरता चला गया, उस दिन तो मन-मयूर खुशियों से नाच उठा. जब देखा उस पर फल आ गया है, फल पककर जब आस्वादन योग्य हुआ तो खुशी की सीमा नहीं रही.


ऐसी मिठास, जिसका वर्णन नहीं कर सकते, फिर तो हर वर्ष का ऐसा चक्र बंधा कि पेड़ फलों से लदता गया. मन प्रफुल्लित होता तो कुछ तोड़ लेते कुछ दूर से ही देखते मेरा मन उसके पत्‍तों से कली और कली से बनते फूल और फूल से बनते फलों में उलझकर रह जाता. कितना देती है ये पृथ्वी अपने अनमोल खजाने से हमें. माध्यम हैं ये वृक्ष जो बिना बोले बिना मांगे हमें इतना देते हैं कि हम लेते-लेते थक जायें, पर ये देते- देते नहीं थकते.

हर वर्ष एक ही वृक्ष जब इंसान को सुखद मुस्कान और इतने फल दे जाता है, तो सोचिये कि वृक्षों का संरक्षण कितना जरुरी है. किन्तु आज भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कितने वृक्षों को काटा जा रहा है, धरती ईंट पत्थरों का वजन सहने को मजबूर हो रही है. वसुन्धरा की उर्वरक शक्ति सीमेंट के नीचे दबती जा रही है. क्या होगा भविष्य में जब कोपलें नहीं फूटेंगी, कलियां फूल-फल सब पृथ्वी के अंतस में ही दम तोड़ देंगे?


हमारी अभिलाषाओं को पूरा करने वाले ये वृक्ष जो हमारी अमूल्य सम्पदा हैं. हमसे दूर होते चले जायेंगे अपने बहुमूल्य खजाने में से विभिन्न वस्तुओं को देने वाले ये वृक्ष आज समाप्त हो रहें हैं. मानव जीवन की त्रासदी कि आंखों पर स्वार्थ का चश्मा पहनकर वो आज वृक्षों का कटान कर रहा है, धरती से उसका अधिकार छीन रहा है, उसके गर्भ में स्थित बहुमूल्य रत्नों को कंकरीट का जहर डालकर नष्ट कर रहा है.

मुझे याद आती है किसी कवि की एक रचना, एक युवा जंगल मुझे हरी उंगलियों से बुलाता है. सच ये हरे भरे पेड़ सदैव ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं. ये वृक्ष कभी हमसे कुछ मांगते नहीं, प्रकृति से पोषित स्वयं ही अपनी ऊचाइयां अपना आकार प्राप्त करते ये वृक्ष सचमुच हमारे लिए वंदनीय है, हमारी अमुल्य धरोहर हैं, माता के समान ध्यान रखने वाले संरक्षण देने वाले इन वृक्षों का हम कभी कर्ज नहीं उतार सकते.


निस्वार्थ भाव से सह्रदयतापूर्वक देने वाले ये वृक्ष हमारी उदासीनता के पात्र बिल्कुल भी नहीं हैं. इनका संपोषण अनिवार्य रुप से हमारा नैतिक कर्त्तव्य और दायित्व होना चाहिए. ये एक-एक वृक्ष हमारी अमूल्य धरोहर है और इस धरोहर के हम सभी संरक्षक हैं. हमे जीवन देने वाले ये वृक्ष आदर के पात्र हैं, देने वाला सदैव ही महान होता है, फिर कैसे हम इन वृक्षों के प्रति इतने निर्दयी हो जाते हैं .


उनकी महत्ता जानते हुए भी कि उनमें जीवन है, हम कैसे उन्हें काट देते हैं. पुनः अपने उसी अमरुद के पेड़ की बात करुं तो आज वह हर व्यक्ति के आर्कषण का केंद्र बना हुआ है. उसकी हर टहनी फलों से ऐसी लदी है कि राह चलते हर व्यक्ति की आंखें बरबस ही उस ओर उठ जाती हैं और दिल मचल ही जाता है. बच्चों के झुंड लालायित होकर फल पाने के लिए कुछ ना कुछ प्रयत्न करते रहते है. यहां तक कि वानरों का झुंड भी उस पर अठखेलियां करने आ धमकता है.


फलों को खाना, तोड़कर फेंकना टहनियों को, नोचना उनका दैनिक कार्य बन गया है. पर इतने पर भी वृक्ष असख्‍य कष्टों को सहता हुआ भी मौन रहकर बदले में फिर फल लेकर हर वर्ष आ जाता है. प्रश्न ये है कि क्या फिर भी ये अनमोल अनबोल वृक्ष काटने योग्य हैं? ये वृक्ष हमारे जीवन का आधार हैं. हवा, पानी, छाया और फल से संतुष्‍ट करने वाले इन वृक्षों को काटकर हम क्यों कंकरीट का जंगल बनाते जा रहे हैं.

जो एक बार स्थिर हो गए, तो फिर हमें कुछ नहीं दे सकेंगे, पर ये वृक्ष हमारे लिए सब कुछ हैं, इनके साथ हंसकर देखिए, इनके साथ रोकर देखिए, ये हर वक्त हमारा साथ निभाने को तैयार हैं. ये हमारे सच्चे हितैषी हैं, जो हमारी जरुरतों को पूरा करते हैं, करते जा रहे हैं. सच एक पेड़ सौ पुत्रों के बराबर है, जैसा कि मतस्य पुराण में कहा गया है. लगाकर तो देखिए एक वृक्ष, कैसे ये आपका अवलम्ब बनकर आपको थामते हैं.


ना केवल आपको बल्कि संसार को पोषित करते ये वृक्ष सदैव श्रद्धा और प्रेम के पात्र हैं. इनके लिए निरंकुश ना बनिए वृक्षों का संरक्षण कीजिए. वृक्षों का रोपण कीजिए एक खुशहाल भविष्य अपने लिए तैयार कीजिए. वृक्ष बहुमूल्य हैं और बहुमूल्य चीजें संभालकर रखने के लिए होती हैं. नष्ट करने के लिए नहीं दम तोड़ते इन वृक्षों को बचा लीजिए. देवत्व की अनुभूति देने वाले इन वृक्षों को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए .



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

रेखा गर्ग, लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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