सम्पादकीय

Earth Hour: आपकी थाली में शेष : पृथ्वी पर क्लेश, हर वर्ष इस आदत से दूसरों का होता है नुकसान

Gulabi Jagat
25 March 2022 12:17 PM GMT
Earth Hour: आपकी थाली में शेष : पृथ्वी पर क्लेश, हर वर्ष इस आदत से दूसरों का होता है नुकसान
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भारत का प्रत्येक परिवार हर वर्ष औसतन 50 किलो भोजन बरबाद करता है
मुरलीधर/आदित्‍य मिश्रा। भारत में हर वर्ष, भोजन की भारी मात्रा में बर्बादी होती है । भारत का प्रत्येक परिवार हर वर्ष औसतन 50 किलो भोजन बरबाद करता है। यह विकासशील देशों में भोजन की बर्बादी के आंकड़े के लगभग बराबर है। भोजन की बर्बादी से न केवल पर्यावरण को क्षति पहुंचती है, बल्कि इसके चलते लाखों टन भोजन उन्हें नहीं मिल पाता, जिन्हें इसकी सख्‍त जरूरत होती है। जो भोजन हम खाते हैं, वह आम तौर पर देश के भीतर, महाद्वीप के भीतर और उसके बाहर से भी दूरस्थ इलाकों से आता है, जिसका अर्थ यह है कि पकने और खाए जाने से पहले यह लंबा सफर तय करता है।
भोजन के उत्पादन और ढुलाई में इस भोजन के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले संसाधनों को निरंतर हो रहे नुकसान के साथ पर्यावरण को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। खाद्य तेल जैसे कई खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि के लिए, खास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया के इंडोनेशिया/मलेशिया, और ब्राजील व लैटिन अमेरिका जैसे देशों में अमूल्य वनों की कटाई हो रही है, जहां वनों को काटकर ताड़ और सोयाबीन की खेती के चलते वन क्षेत्र में भारी कमी आई है।
जो भोजन हमारी-आपकी थाली तक पहुंचता है, उसका कुछ अंश छोड़कर हम उसका भारी नुकसान करते हैं, जिसे शहर के कचरा भराई क्षेत्रों में डाल दिया जाता है या फिर समुद्र में फेंक दिया जाता है, और इन दोनों कामों के चलते पृथ्वी का दम घुटता है। हर वर्ष लगभग 1.3 बिलियन टन भोजन फेंक दिया जाता है और दुखद बात यह है कि हम में से प्रत्येक इस बर्बादी के प्रति जिम्मेदार है, हालांकि यह अनजाने में किया गया हो सकता है।
किंतु पर्यावरण की ज्यादातर समस्याओं की तरह, यदि भोजन की बर्बादी अनजाने में हो, तो इसका समाधान संभव है, बशर्ते लोग पृथ्वी पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के प्रति सजग हों। सामाजिक हित की मुहिमों में व्यक्तिगत रूप से उठाया गया कदम महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। पानी बचाने से जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता का संचार करने तक, लोगों ने अपने भविष्य को संवारने में इस शक्ति का परिचय दिया है।
अर्थ आवर एक ऐसी मुहिम है, जिसने यह साबित कर दिया है कि यदि लाखों लोग एक हों और एक आसान काम करने का संकल्प लें, तो क्या नहीं हो सकता। जलवायु परिवर्तन के प्रति लोगों को जागरूक करने की एक मुहिम के रूप में सन्‌ 2007 में अपनी शुरुआत के समय से, बत्तियों को बंद करते हुए, परिवर्तन-नेतृत्व आंदोलन के अपने मौजूदा अवतार तक, अर्थ आवर ने विश्व भर में नियम, दृष्टिकोण और कार्यकलाप में परिवर्तन किए हैं। अर्थ आवर 2012 के एक अंग के रूप में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ रूस के नेतृत्व में और नागरिकों के हस्ताक्षरों के साथ पेश एक याचिका पर रूस ने उस देश के समुद्रों की तेल प्रदूषण से सुरक्षा के लिए एक कानून पास किया।
सन्‌ 2014 में, युगांडा में एक अर्थ आवर फारेस्‍ट का निर्माण किया गया, और अर्थ आवर 2018 में फ्रेंच पालिनेसियन सरकार ने दक्षिण प्रशांत के एक विशाल समुद्र क्षेत्र की एक मैनेज्ड मरीन एरिया के रूप में घोषणा की। हालांकि सरकारें और संस्थाएं ज्यादातर परिवर्तन का मार्गदर्शन करती हैं, किंतु सच्चा नायक उनमें छिपा होता है, जो हितों में विश्वास रखते हैं - वे जमीनी स्तर के सामान्य जन हैं, जो अर्थ आवर जैसी मुहिमों के माध्यम से पर्यावरण की प्राथमिकताओं को खास बना रहे हैं।
अर्थ आवर पर्यावरण के लिए फिर से कदम बढ़ाने का एक अवसर है - सुखकर जीवन जीने का प्रयास करने से विश्व के मार्गदर्शकों को सही विकल्पों का चयन करने को प्रेरित करने तक, हर व्यक्ति में अपने भविष्य को संवारने की शक्ति है।
भोजन एक उतना ही अमूल्य संसाधन है, जितना कि कोई अन्य, क्योंकि पृथ्वी पर इसके प्रभाव देखे जा सकते हैं - जमीन पर, पानी में, हवा में, वन में और यहां तक कि जैवविविधता में भी। अमूल्य भोजन स्रोतों को कम करने, उनका पुनर्चक्रण करने और उन्हें फिर से उपयोग योग्य बनाने के लिए छोटे-छोटे प्रयास कर भी भारत में भोजन की भारी मात्रा में होने वाली बरबादी में कमी की जा सकती है। यदि हमने अभी कदम नहीं बढ़ाया, तो हम पर्यावरण की एक और त्रासदी का कारक हो सकते हैं।
विवाह जैसे बड़े सामाजिक उत्सवों में, जहां अनुमानतः 20 से 40 प्रतिशत भोजन बर्बाद हो जाता है, जिसे फेंक दिया जाता है, लोग पहले से ही प्रयास कर रहे हैं। इस बर्बादी को रोकने के लिए 'फीड इंडिया' और इस जैसे अन्य प्रयास जारी हैं, किंतु व्यक्तिगत स्तर पर अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
भोजन की बरबादी को कम करने का हमारा प्रयास भोजन खरीदने की प्रक्रिया से ही शुरू हो सकता है। इसके लिए खरीदने के विवेकपूर्ण और सजग अभ्यास की जरूरत होती है, ताकि भारी मात्रा में भोजन बचाया जा सके। हम ज़ायके वाले खाद्य उत्पादों, जैसे खाद्य तेल और सुगंधित खाद्य पदार्थ, में अपने स्वास्थ्य से समझौता किए बगैर - और कुछ हद तक खर्चों में कमी कर भी - आसानी से कटौती कर सकते हैं! भोजन बचाने का एक और तरीका यह है कि वही खरीदें जो आप खाएं या फिर जो निहायत ही जरूरी हो। अक्सर, हम खाद्य पदार्थ बगैर किसी योजना के यों ही खरीद लेते हैं, जिसके फलस्वरूप अनावश्यक बरबादी होती है। ऐसे अवसरों पर जब योजना भी उपयुक्त नहीं हो, और भोजन बरबाद हो जाए, तब हमारे पास एक अच्छा अवसर होता है कि हम उसका परिवार में फिर से उपयोग कर लें। यदि दोबारा उपयोग संभव न भी हो, तो छोड़े हुए भोजन की घर में खाद बनाकर या घर से बाहर स्रोत स्थल पर उसकी छंटाई कर उसका सुरक्षित ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
सोच-समझ कर खरीदने, योजना बनाने और भोजन की बरबादी को रोकने के व्यक्तिगत प्रयासों से हम एक वैश्विक समाधान में सहभागी हो सकते हैं। इस अर्थ आवर के अवसर पर, संकल्प लें, भोजन की बरबादी में कमी करेंगे और अपना भविष्य संवारिए आंदोलन में शामिल होने के लिए पर्यावरण के अनुकूल जीवन अपनाएंगे!
अर्थ आवर 26 मार्च, 2002 को मनाया जाएगा - जलवायु परिवर्तन के प्रति लोगों को जागरूक करने और इतिहास की महानतम पर्यावरण मुहिम में शामिल होने के लिए 8 बज कर 30 मिनट से 9 बज कर 30 मिनट तक अनावश्यक बत्तियां बंद रखें।
लेखक: मुरलीधरन, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर प्रोग्राम, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के निदेशक और आदित्‍य वरिष्ठ प्रबंधक हैं।
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