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- अपनी अहमियत के बाली
चेहरे कभी समानांतर नहीं होते और यही वजह है कि मौत के आगोश में इनसान की यादें सोती नहीं, बल्कि जिंदगी का इम्तिहान इसी अंतिम यात्रा का सबसे बड़ा विश्लेषण हो जाता है। कुछ इसी तरह हिमाचल के पूर्व मंत्री जीएस बाली का निधन हर चाहने वाले, आलोचक, समीक्षक या राजनीतिक हलकों में एक खालीपन पैदा करता है। हमेशा वक्त से आगे निकलने की जद्दोजहद ने उन्हें अलग करके देखा और यही वजह है कि वह अपने संघर्ष को हर सफलता का मानक बनाते हुए, ऐसी जमीन बनाने में कामयाब हुए, जो राजनीति के हर पहर और पहरेदारी के हर मोर्चे पर अगुवा होती है। जीएस बाली का हिमाचल की राजनीति का अनूठा चेहरा बनने की वजह आसान नहीं और इसे साबित करते हुए वह समर्थकों का एक खास वर्ग और प्रभाव की अमानत के स्वयं मूर्तिकार रहे। राजनीतिक तौर पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि जातीय समीकरणों से ऊपर दिखाई देती है, जहां वह कांगड़ा की ओबीसी सियासत के बीच ब्राह्मण होकर भी सबसे अधिक प्रासंगिक बन जाते हैं। कांगड़ा का नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बहुल हलका है, लेकिन वह लगातार चार बार विधायक बनने में सक्षम होते हैं। इसी क्षेत्र से इससे पूर्व कोई ओबीसी उम्मीदवार भी यह रुतबा हासिल नहीं कर सका।
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