- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अर्थ का अर्जन : भूमि...
सम्पादकीय
अर्थ का अर्जन : भूमि मौद्रीकरण से बदलेगी तस्वीर, स्वामित्व संबंधी समस्याओं के निवारण की पहल
Rounak Dey
26 April 2022 1:45 AM GMT
x
इसलिए भारत में भी इस प्रक्रिया को लागू करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आनी चाहिए, ऐसी आशा की जा रही है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना को मंजूरी दे दी है। यह निगम केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं केंद्र सरकार से जुड़े अन्य विभिन्न संस्थानों की उपयोग में नहीं आ रही भूमि एवं भवन संपत्तियों का मौद्रीकरण करेगा। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम, वित्त मंत्रालय के माध्यम से, केंद्र सरकार के नियंत्रण में कार्य करेगा एवं इसकी प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 5,000 करोड़ रुपये निर्धारित की गई है।
वर्तमान में, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास बिल्कुल उपयोग में नहीं आ रही अथवा पूर्ण रूप से उपयोग में नहीं आ रही भूमि एवं भवन संपत्तियां बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इस प्रकार की भूमि एवं भवनों का मौद्रीकरण (लाभपूर्ण उपयोग) कर केंद्र सरकार देश के लिए बहुत बड़ी मात्रा में अर्थ का अर्जन कर सकती है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, रेलवे विभाग, सुरक्षा विभाग एवं दूरसंचार विभाग आदि एवं केंद्र सरकार से जुड़े अन्य विभिन्न संस्थानों में उपयोग में नहीं आ रही ऐसी भूमि बहुत भारी मात्रा में उपलब्ध हैं, जिनके स्वामित्व संबंधी कागजात इन संस्थानों/विभागों के पास उपलब्ध ही नहीं हैं।
इससे ये संस्थान एवं विभाग इनके द्वारा उपयोग में नहीं लाई जा रही भूमि को न तो बेच पा रहे हैं, न किराए पर उठा पा रहे हैं और न ही पट्टे पर लाभप्रद उपयोग हेतु किसी अन्य संस्थान को दे पा रहे हैं। इस प्रकार की समस्याओं का त्वरित हल निकालने के उद्देश्य से ही राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना की गई है, ताकि ऐसी भूमि एवं भवनों का लाभप्रद उपयोग कर उन्हें देश के लिए उपयोगी बनाया जाए। अकेले रेलवे विभाग के पास 4.78 लाख हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है, जिसमें से 53,000 हेक्टेयर भूमि का उपयोग उचित तरीके से नहीं हो पा रहा है।
यह भूमि रेलवे के ट्रैक के आसपास स्थित है। रेलवे ने उपयोग में नहीं आ रही इस भूमि पर सौर ऊर्जा के पैनल स्थापित करने का निर्णय लिया है, ताकि उसके अपने उपयोग के लिए ऊर्जा का उत्पादन इस भूमि पर किया जा सके। इस संदर्भ में रेलवे ने एक योजना भी बनाई है, जिसके अनुसार वर्ष 2030 तक इन सोलर पैनलों के माध्यम से उत्पादित ऊर्जा से रेलवे विभाग अपनी समस्त ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति कर सकने में सक्षम हो जाएगा।
रेलवे के पास अभी 7,000 से अधिक रेलवे स्टेशन हैं, इसमें से उसने शहरी क्षेत्रों में स्थित 400 रेलवे स्टेशनों की पहचान कर ली है, जिनके आसपास उपयोग में नहीं लाई जा रही महंगी भूमि का मौद्रीकरण कर वहां आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जा सकता है। इससे रेलवे को न केवल अतिरिक्त आय की प्राप्ति होने लगेगी, बल्कि देश में रोजगार के लाखों नए अवसर भी निर्मित किए जा सकेंगे। केंद्र सरकार के कई सार्वजनिक उपक्रम ऐसे भी हैं, जिनमें अब आर्थिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई हैं।
इन सार्वजनिक उपक्रमों के पास भी उपयोग में नहीं आ रही भूमि बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। ऐसी भूमि का विक्रय नहीं हो पा रहा है, क्योंकि इस भूमि के स्वत्वाधिकार संबंधी कागजात इन उपक्रमों के पास उपलब्ध ही नहीं है। परंतु, अब राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना के बाद इस तरह की समस्याओं का हल आसानी से निकाला जा सकेगा। उदाहरण के लिए, वस्त्र निगम के पास कई वस्त्र निर्माण इकाइयों के बंद होने के कारण, उपयोग में नहीं आ रही भारी मात्रा में भूमि एवं बड़े-बड़े भवन (निर्माण इकाइयां) तो उपलब्ध हैं, परंतु इनमें से कई भवनों के स्वत्वाधिकार संबंधी कागजात वस्त्र निगम के पास उपलब्ध नहीं हैं।
अब वस्त्र निगम के लिए एक आशा की किरण जागी है कि इस प्रकार की भूमि एवं भवनों का सार्थक उपयोग संभव हो सकेगा। केंद्र सरकार के कुछ उपक्रमों द्वारा उपयोग में नहीं ला जा रही भूमि पर विभिन्न हितसाधकों के बीच विवाद भी पाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम इस प्रकार के विवादों को सुलझाने में मदद कर सकेगा। कई अन्य देशों में भी भूमि मौद्रीकरण की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है। इसलिए भारत में भी इस प्रक्रिया को लागू करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आनी चाहिए, ऐसी आशा की जा रही है।
सोर्स: अमर उजाला
Next Story