सम्पादकीय

शुल्क से कमाई

Subhi
22 March 2022 5:26 AM GMT
शुल्क से कमाई
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हाल ही में एक खबर आई कि मध्यप्रदेश की पेशेवर परीक्षा बोर्ड ने अपनी कमाई से चार सौ चौंतीस करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपोजिट में जमा करा रखी है। जगजाहिर है कि परीक्षा बोर्ड की आमदनी का मुख्य जरिया परीक्षार्थियों से ली गई फार्म आवेदन का शुल्क है।

Written by जनसत्ता: हाल ही में एक खबर आई कि मध्यप्रदेश की पेशेवर परीक्षा बोर्ड ने अपनी कमाई से चार सौ चौंतीस करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपोजिट में जमा करा रखी है। जगजाहिर है कि परीक्षा बोर्ड की आमदनी का मुख्य जरिया परीक्षार्थियों से ली गई फार्म आवेदन का शुल्क है। यह राशि स्थापित करती है कि बेरोजगारों से ली जाने वाली रकम से न केवल बोर्ड को मुनाफा होता है, बल्कि खासी बचत भी होती है। तर्क के आधार पर यह साबित होता है कि तय परीक्षा शुल्क के पीछे कोई तर्क नहीं है।

दूसरी तरफ बेरोजगारों से पैसे लेने के बाद रद्द परीक्षाओं से बोर्ड का खजाना भरा जाता है। आमतौर से पेशेवर परीक्षाओं में हिस्सा लेने वाले बच्चे मध्य या गरीब घर होते हैं, जिनके लिए तैयारियों से लेकर नौकरी पाने तक जुए में पैसे लगाने जैसा है और हिस्से में हार आती है। कर्ज ले कर बोर्ड के खजाने को भरने वाले इन विद्यार्थियों के प्रति सरकारें संवेदनहीन बन जाती हैं। शिक्षा ऋण के तर्ज पर नौकरी तलाशते नौजवानों की सहायता के बारे में क्यों नहीं सोचा जाता है?

बेहतर तो यह हो कि ऐसे सभी परीक्षाओं के लिए शुल्क के रूप में निश्चित अवधि की बैंक गारंटी ली जाए। बैंको को भी बेरोजगारों की राहत देती योजनाओं पर उदारता से विचार करना चाहिए। जिन सफल अभ्यर्थियों की नियुक्ति तय हो जाए, उनकी बैंक गारंटी ही भुनाई जा सके। इस तरह जहां अभ्यर्थियों पर बोझ कम पड़ेगा, वहीं बोर्ड की अनावश्यक कमाई भी रुक जाएगी।

उत्तर प्रदेश चुनाव में बाहुबल और दागियों से किसी दल ने परहेज नहीं किया। उत्तर प्रदेश इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) ने 403 विजेता उम्मीदवारों के शपथ पत्रों के विश्लेषण में पाया है कि 2017 के मुकाबले 15 फीसद अधिक दागी विधानसभा पहुंचे हैं। प्रमुख पार्टियों की बात करें तो अधिक दागी सपा के टिकट पर चुने गए हैं तो अधिक करोड़पतियों को सदन पहुंचाने में भाजपा आगे रही।

विजेता उम्मीदवारों में 403 में से 205 (51 फीसद) ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए गए हैं। 2017 में 402 में से 143 (36 फीसद) विधायक ऐसे थे। इस बार 158 (39 फीसद) ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जो कि 2017 में 402 में से 107 (26 फीसद) ही थे। पांच विजेता उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामले घोषित किए हैं। 29 ने हत्या के प्रयास और एक विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज हैं।


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