सम्पादकीय

अदालतों में हिंदी में सुनवाई से जल्द न्याय संभव

Rani Sahu
14 Sep 2021 4:22 PM GMT
अदालतों में हिंदी में सुनवाई से जल्द न्याय संभव
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तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक वाकया हुआ जो समाचारों में भी प्रकाशित हुआ था

विराग गुप्ता। तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक वाकया हुआ जो समाचारों में भी प्रकाशित हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गोगोई की अदालत में एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज अपने प्रमोशन के मामले की पैरवी हिंदी में करने की कोशिश कर रहे थे. चीफ जस्टिस ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि ADJ का दिल भले ही हिंदी में सोचता हो लेकिन संविधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सामने उन्हें हिंदी में ही बहस करनी चाहिए. दुर्भाग्य से ADJ साहब को बहस करने लायक अंग्रेजी नहीं आती थी. जिला अदालत के पढ़े-लिखे जज अंग्रेजी में बहस नहीं कर सकते. तब आम जनता की अदालतों में कितनी दुर्गति होती होगी? रोस्टर प्रणाली आदि से जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस और जजों की इच्छा के अनुरूप नियमों और परंपराओं में बदलाव हो जाते हैं. उस वाकये के तीन साल बाद नए चीफ जस्टिस रमन्ना ने अपने गृह राज्य आंध्र प्रदेश के मामले में वादकारियों से तेलुगु में बातचीत करके 21 साल पुराने वैवाहिक मतभेद को खत्म करवा दिया. उनसे प्रेरणा लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य जज ने उत्तर प्रदेश के व्यक्ति से हिंदी में बात करके पूरे मामले को समझ कर उसकी समस्या का समाधान करने की कोशिश की. इसका मतलब लोगों की बोलचाल की भाषा में ही सही, सुलभ और बेहतर न्याय संभव है.

मद्रास हाईकोर्ट के जजों ने हालिया मामले में कहा कि "यह मानना गलत है कि ईश्वर सिर्फ उन्ही की सुनेगा जो संस्कृत में पूजा करते हैं". जजों के अनुसार तमिल देवताओं की भाषा है इसलिए तमिल भजनों के माध्यम से तमिलनाडु के मंदिरों में अभिषेक किया जाना चाहिए. 14 सितंबर को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा बनाने का फैसला लिया था, इसलिए हिंदी दिवस पर न्यायपालिका में हिंदी के इस्तेमाल को बढाने की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा जरूरी है. संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में बहस और फैसले अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं. लेकिन हाईकोर्ट में हिंदी या अन्य अनुमोदित भाषाओं में कार्यवाही हो सकती है. परन्तु इसके लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति की अनुमति जरूरी है.
देश के राष्ट्रपति की हिंदी के लिए पहल:
देश के राष्ट्रपति और संवैधानिक प्रमुख रामनाथ कोविंद, पहले सुप्रीम कोर्ट के वकील रह चुके हैं. राष्ट्रपति बनने के बाद न्यायिक सुधारों के तीन पहलुओं पर उन्होंने ख़ासा जोर दिया है. पहला, अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी का इस्तेमाल बढ़ना चाहिए. दूसरा, लोगों को जल्द न्याय मिलने के लिए जरूरी न्यायिक सुधार हों. तीसरा, न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए. दुसरे और तीसरे बिंदु पर बहस और सार्थक प्रयास शुरू हुए हैं, लेकिन पहले मामले पर पूरी तरह से उदासीनता है. सरकारी काम में हिंदी अनुवाद की भाषा है. लेकिन अदालती मामलों में तो अंग्रेजी में दिए गए सभी फैसलों का हिंदी में अनुवाद भी नहीं हो रहा. इसलिए न्यायपालिका में हिंदी कमजोर नहीं बल्कि पंगु है. अंग्रेजी विधि के जानकार हुक्मरानों और जजों को देशी जनता की दुश्वारियों का अनुमान जल्द हो जाय तो राष्ट्रभाषा हिंदी की चमक से भारत की अदालतें भी जगमगा उठेंगी.
हिंदी में सुनवाई और फैसले संभव:
हरिशंकर परसाई कहते थे कि सालाना दिवस कमजोर वर्ग का मनाया जाता है. लेकिन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हिंदी किस लिहाज़ से कमजोर हो सकती है? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए संवैधानिक व्यवस्था को समझना जरूरी है. अदालतें न्याय देने के लिए बनी हैं, इसलिए ये सेवा के दायरे में आती हैं. सही और समय पर न्याय मिलने के लिए यह जरूरी है कि वादकारियों को उनकी भाषा में मामले की पूरी समझ हो. इस लिहाज़ से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में अदालती कारवाई और फैसले होना जरूरी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रेमशंकर गुप्त ने अच्छी पहल करते हुए 15 वर्ष के कार्यकाल में 4 हजार से अधिक निर्णय हिंदी में दिए। प्रयागराज में न्यायमूर्ति गौतम चौधरी प्रतिदिन कार्य की शुरुआत हिंदी से करते हैं और वह अभी तक लगभग 2200 निर्णय हिंदी में दे चुके हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में पिछले साल हिंदी दिवस पर कई जजों ने मामलों की सुनवाई और फैसले हिंदी में किये.
ऑनलाइन सुनवाई और इन्टरनेट के दौर में हिंदी का उज्जवल भविष्य:
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हिंदी इन्टरनेट के दौर में भारत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इन्टरनेट के इस दौर में बेहतर समझ के चलते सबसे ज्यादा लोग हिंदी में लिखना, पढना और देखना पसंद करते हैं. अदालतों में ऑनलाइन सुनवाई का नया दौर शुरू हुआ है. नयी तकनीकी के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की भी बात हो रही है. इन सब बातों से अदालती सिस्टम भी खुलेपन के साथ बाज़ार व्यवस्था के दायरे में आ रहा है. आज से 2 साल पहले अदालत में सुनवाई के दौरान यदि मोबाइल की घंटी बज जाती थी तो जुर्माना लगने के साथ वादकारियों का मोबाइल भी जब्त हो सकता था. लेकिन लॉकडाउन के दौर में अब मोबाइल से ही मामलों की सुनवाई होने लगी. तकनीकी के बदलते दौर में जल्द और सुलभ न्याय के लिए अदालतों में हिंदी की प्रयोग की संभावनाएं बढेंगी. हिंदी दिवस में इस संकल्प सिद्धि की पूर्ति के लिए हम सभी प्रयास करें तो राष्ट्रभाषा के उन्नयन के साथ जल्द न्याय का सपना भी साकार होगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)


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