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- अदालतों में हिंदी में...
विराग गुप्ता। तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक वाकया हुआ जो समाचारों में भी प्रकाशित हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गोगोई की अदालत में एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज अपने प्रमोशन के मामले की पैरवी हिंदी में करने की कोशिश कर रहे थे. चीफ जस्टिस ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि ADJ का दिल भले ही हिंदी में सोचता हो लेकिन संविधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सामने उन्हें हिंदी में ही बहस करनी चाहिए. दुर्भाग्य से ADJ साहब को बहस करने लायक अंग्रेजी नहीं आती थी. जिला अदालत के पढ़े-लिखे जज अंग्रेजी में बहस नहीं कर सकते. तब आम जनता की अदालतों में कितनी दुर्गति होती होगी? रोस्टर प्रणाली आदि से जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस और जजों की इच्छा के अनुरूप नियमों और परंपराओं में बदलाव हो जाते हैं. उस वाकये के तीन साल बाद नए चीफ जस्टिस रमन्ना ने अपने गृह राज्य आंध्र प्रदेश के मामले में वादकारियों से तेलुगु में बातचीत करके 21 साल पुराने वैवाहिक मतभेद को खत्म करवा दिया. उनसे प्रेरणा लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य जज ने उत्तर प्रदेश के व्यक्ति से हिंदी में बात करके पूरे मामले को समझ कर उसकी समस्या का समाधान करने की कोशिश की. इसका मतलब लोगों की बोलचाल की भाषा में ही सही, सुलभ और बेहतर न्याय संभव है.