सम्पादकीय

कानों से दिल तक मोदी

Rani Sahu
5 Oct 2022 6:41 PM GMT
कानों से दिल तक मोदी
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By: divyahimachal
बिलासपुर में भाजपा के तख्त और ताज का कितना फैसला हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां आकर चुनावी हवाओं की टोह ली व मिशन रिपीट की आरजू में पूरा फलक सजा दिया। यहां राजनीतिक तकदीर का फैसला, सत्ता की मेजबानी में हुआ और जहां से एम्स, हाइड्रो इंजीनियरिंग कालेज, पिंजौर-नालागढ़ फोरलेन हाई-वे तथा नालागढ़ मेडिकल डिवाइस पार्क की इमारतें, नक्शे और सूरत दिखाने का जलवा भी रहा। आगामी चुनाव के जज्बात क्या होंगे, लेकिन जलवा दिखाने की इबारतें हर बार मोह लेती हैं तथा कई बार तो लगता है कि प्रधानमंत्री को एक खास तरह का इश्क हिमाचल से रहा है। राजनीतिक इश्क का ताल्लुक उसी दिल से है या नहीं, लेकिन समूचे देश में मोदी से इश्क करने की कोई न कोई वजह पैदा हो जाती है।
अगर देश का प्रधानमंत्री बिलासपुर में आकर बिलासपुरी-कहलूरी में संबोधन करेगा, तो उसका असर कानों से होता हुआ दिल तक पहुंच जाएगा। यह इसलिए भी कि कुल्लू में घर बनाने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी कभी सार्वजनिक तौर पर कुल्लवी में नहीं बोल पाए, लेकिन मोदी के शब्द और शाबाशियां पूरी तरह से राजनीतिक तालीम हैं और यह बिलासपुर ने भी सीख लिया होगा। देश के प्रधानमंत्री हिमाचल आकर अतीत से रिश्ते निकालते, रक्षा बंधन पहनते और एक सच्चे सहोदर की तरह मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। अब तक उन्होंने हिमाचल के तमाम ब्रांडों को प्रतिष्ठित किया था, लेकिन इस बार हिमाचली बोली की मिठास में सियासी शक्कर घोल गए। वास्तव में हिमाचल भी अब नरेंद्र मोदी के आगमन पर यह सुनने का आदी हो गया है कि वह किस अदा से प्रदेश की जानकारियों में से खुद का गुणात्मक प्रसार करते हैं। हालांकि बात विकास की है कि एम्स और हाइड्रो इंजीनियरिंग कालेज की भव्य इमारतें सीना तानकर केंद्र सरकार की खिदमत करेंगी, लेकिन प्रधानमंत्री छोटे से प्रदेश की पगडंडियों से बड़े रास्ते और रिश्ते खोजते हैं।
जब वह कहलूरी मेें हिमाचल के प्रति आस्था जगाते हैं, तो कहीं प्रदेश के नेताओं के सामने यह प्रश्र चिन्ह भी लगा देते हैं कि आखिर उन्होंने हिमाचली बोलियों के प्रति क्या किया। कितने हिमाचली विधायक हैं, जो अपनी-अपनी मातृबोली में उद्गार करते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में बोलियों की मिठास से हिमाचली भाषा का अमृत आजतक नहीं मिल पाया। यह दीगर है कि पिछले दिनों शिमला के विधायक विक्रमादित्य सिंह शिमला की राह से चंबा की दूरी को उसी बोली में माप रहे थे। विडंबना यह भी है कि हिमाचल में कई ऐसे नेता भी हैं जो हिमाचली पहाड़ी बोलते हुए पंजाबी के नजदीक दिखाई देते हैं। इसीलिए देश के प्रधानमंत्री ने कम से कम बिलासपुरी में शुरुआत करते हुए बता दिया कि पर्वतीय अस्मिता के लिए हिमाचल को अपनी भाषा को मजबूत करना होगा। प्रधानमंत्री ने डबल इंजन की सरकार और अतीत में पूर्ववर्ती सरकारों के अंतर को सलीके से समझते हुए यह बता दिया कि बल्क ड्रग पार्क किस तरह तीन राज्यों में चुना गया और किस तरह कुल चार राज्यों को मिले मेडिकल डिवाइस पार्क में हिमाचल का नाम आया।
मोदी ने एक बार फिर जयराम सरकार को रक्षा कवच पहनाते हुए उन्हें अपराजेय बनाए रखने के लिए शब्द और शाबाशियों की गूंज पैदा की। बिलासपुर के मंच पर अनुराग ठाकुर व जगतप्रकाश नड्डा बहुत याद किए गए, जबकि अन्य सांसद भी तराशे गए। कमोबेश हर सांसद के लिए मोदी का आना एक त्योहार बन जाता है और मुख्यमंत्री के प्रति एतबार बढ़ जाता है, लेकिन सांसद किशन कपूर का रेगिस्तान अभी सूखा है। उनके काम काज या उनकी सियासी विरासत में अभी कांगड़ा-चंबा संसदीय क्षेत्र में ऐसा मंच नहीं सजा, जहां प्रधानमंत्री बता सकें कि वहां भी इमारतें और विकास का तिलिस्म दिखाई दे रहा है। अभी केंद्रीय विश्वविद्यालय की सारी ईंटे बिखरी हैं, तो कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार का मुकदमा न राज्य सरकार और न ही केंद्रीय सरकार के आगे जीत पाया है। पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल मार्ग आज भी अंग्रेजों के प्रति कृतज्ञ है, क्योंकि ब्रॉडगेज रेल लाइन का ख्वाब दिखाते शांता कुमार अब पालमपुर नगर निगम तक ही विकास देख रहे हैं। कभी चंबा में सीमेंट प्लांट, होली-उतराला, चामुंडा-होली व चुवाड़ी-चंबा सुरंग मार्गों की बात होती थी, लेकिन ये सारी परियोजनाएं, सियासी दूरियों में सिमट गई हैं। हो सकता कल पुन: मोदी जी आएं और कांगड़ी या चंबियाली में बता जाएं कि किशनकपूर को सांसद बना कर इन क्षेत्रों ने कितना कुछ पा लिया।
Rani Sahu

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