सम्पादकीय

महीनों की प्रचंड गर्मी के अंत और मानसून के आगमन का बेसब्री से इंतजार

Subhi
23 Jun 2022 5:19 AM GMT
महीनों की प्रचंड गर्मी के अंत और मानसून के आगमन का बेसब्री से इंतजार
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बारिश और बादल दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां बादल, वहां वर्षा। हम मई-जून के महीनों की प्रचंड गर्मी के अंत और मानसून के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, पर आपने कभी सोचा है

किशोर पंवार; बारिश और बादल दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां बादल, वहां वर्षा। हम मई-जून के महीनों की प्रचंड गर्मी के अंत और मानसून के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, पर आपने कभी सोचा है कि बादल बनते कैसे हैं? और समुद्री तटों से हजारों किलोमीटर दूर मैदानी इलाकों में कैसे पहुंचते हैं? यह तो आपने सुना और अनुभव भी किया होगा कि जहां पेड़ ज्यादा होते हैं या घने जंगल होते हैं, वहां बारिश भी ज्यादा होती है। इन बादलों का बारिश से क्या रिश्ता है?

पहाड़ी क्षेत्रों में आपने देखा होगा कि रोज शाम को बारिश होती है। सुबह जमीन पर और पेड़ों पर बादल बसे रहते हैं और जैसे-जैसे धूप चढ़ती है, बादल भी पेड़ों के ऊपर चढ़ना शुरू कर देते हैं। शाम के चार-पांच बजते ही वे बरसना शुरू कर देते हैं। बादल जहां बरसते हैं, वहां न तो समुद्र है और न ही मानसूनी बादल। तो फिर यह रोज-रोज बारिश कैसी? और क्यों? इन प्रश्नों के उत्तर हमें पीटर वोह्लेबेन की किताब हिडन लाइफ ऑफ ट्रीज में मिलते हैं।

जंगल में पानी कैसे पहुंचता है या एक कदम पीछे चलें, तो पानी जमीन पर कैसे पहुंचता है? यह सवाल लगता तो एकदम सरल है, लेकिन इसका उत्तर उतना ही कठिन है। जमीन का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि यह जल से ऊंची होती है। गुरुत्व के कारण पानी सबसे निचले स्तर की ओर बहता चला जाता है। इसके कारण कालांतर में सारे महाद्वीप सूख सकते हैं, परंतु ऐसा होता नहीं है। इसके लिए बादलों द्वारा लगातार बरसाए जाने वाले पानी का हमें धन्यवाद करना चाहिए।

जो बादल वाष्पीकरण के कारण समुद्र के ऊपर बनते और हवा द्वारा जमीन की ओर बढ़ा दिए जाते हैं, समुद्री तटों से कुछ किलोमीटर अंदर तक ही कार्यशील रहते हैं। जंगल के अंदर की ओर सूखा होता है, क्योंकि बादलों से पानी बरस चुका होता है और अब बादल गायब हो चुके होते हैं। सभी पौधों की तुलना में फूलधारी पौधों की चौड़ी पत्तियों से ढका क्षेत्रफल सर्वाधिक बड़ा होता है। जंगल के प्रत्येक वर्ग मीटर में पत्तियां और चीड़, देवदार की सुई-नुमा पत्तियां लगभग 27 वर्ग गज का एक बड़ा-सा हरा छाता बनाती हैं।

वर्षा का प्रत्येक हिस्सा इस बड़े छाते द्वारा रोक लिया जाता है और तुरंत ही वाष्पीकृत भी हो जाता है। इसके अलावा अनुमान है कि हर गर्मी में पेड़ प्रति वर्ग किलोमीटर लगभग 4,830 मीटर पानी वाष्प-उत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा हवा में छोड़ देते हैं। यह जल-वाष्प फिर बादल बनाती है, जो जमीन और भीतर की ओर यात्रा करते हुए पानी बरसाती है। यह चक्र चलता रहता है और इसी तरह वर्षा बहुत दूरस्थ क्षेत्रों में भी पहुंच जाती है। पेड़ों द्वारा संचालित यह 'जल पंप' इतनी अच्छी तरह से कार्य करता है कि दुनिया के कुछ बड़े हिस्सों में, जैसे कि अमेजॉन बेसिन में, समुद्री तटों की तरफ भारी बारिश होती है।

इस 'पंप' के सुचारू रूप से कार्य करते रहने के लिए कुछ बुनियादी जरूरतें हैं। पहली, समुद्र से दूर जमीन के कोने-कोने तक जंगलों का होना। इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण है, 'समुद्र तटीय वन' जो इस तंत्र के मुख्य आधार होते हैं। यदि ये न होंगे, तो यह तंत्र कार्य ही नहीं कर सकेगा। इन 'जल पंपों' और वनों के आपसी संबंधों के बारे में रूसी वैज्ञानिकों की जोड़ी-माकारीता और ग्रुशकोव ने 2007 में विस्तार से जानकारी दी थी।

उन्होंने दुनिया भर के विभिन्न प्रकार के जंगलों का अध्ययन करके पाया था कि सभी जगह ऐसा होता है, अर्थात जमीन के अंदरूनी हिस्सों में बारिश जंगल के बादलों से ही होती है और समुद्री तटों से जमीन के अंदर तक वनों का लगातार होना जरूरी होता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि यदि 'समुद्र तटीय वनों' का सफाया कर दिया गया हो, तो यह तंत्र टूट जाता है और फिर यह कार्य नहीं करता।

जमीन के अंदरूनी हिस्सों में जंगलों द्वारा बारिश होने की भूमिका के मद्देनजर आइए, हम नए-नए जंगल लगाएं और जो हैं, उन्हें कटने से बचाएं। बक्सवाहा में प्रस्तावित वन कटाई पर इन वनों की जल-चक्र में भूमिका और बारिश में योगदान के चलते क्या पुनर्विचार की जरूरत नहीं है? इस संदर्भ में हाल में ही हमसे विदा लेने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की कुछ पंक्तियां बरबस ही याद आ रही हैं– क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। (सप्रेस)

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