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- भारतीय लोकतंत्र की...
इस साल की एक सबसे महत्वपूर्ण खबर मुझे कुछ दिन पहले एक अखबार में बतौर विज्ञापन दिखी। उस विज्ञापन में उल्लेख था कि भारत के 56 प्रतिशत उत्पाद देश के मात्र 16 प्रतिशत लोग ही उपभोग करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की 84 प्रतिशत आबादी केवल 44 प्रतिशत उत्पाद खरीद पाती है। इसका सार यह है कि यह 84 प्रतिशत आबादी अपनी रकम मूल रूप से बुनियादी जरूरतों पर ही खर्च करती है, न कि उन उत्पादों पर जो जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने वाले होते हैं। यह गरीबी और विषमता की उतनी ही सटीक तस्वीर दिखाता है, जितनी कि आंकड़े आपको दिखाएंगे। हमारी राष्ट्रीय संपदा का पलड़ा पूरी तरह देश की 20 प्रतिशत आबादी के पक्ष में झुका हुआ है। यह वही आबादी है जो पहली या दूसरी दुनिया में रहती है। शेष आबादी चौथी दुनिया में रहने को अभिशप्त है। आधुनिक मशीनों के फायदे उन तक नहीं पहुंच पाए हैं। स्वतंत्रता के सात से अधिक दशकों के बाद हमारे देश की यही कड़वी हकीकत है।