सम्पादकीय

फेमिन में ड्यूटी

Rani Sahu
9 Jun 2022 7:08 PM GMT
फेमिन में ड्यूटी
x
ड्यूटी तो वे कर रहे थे, लेकिन वे संतुष्ट नहीं थे। सदैव परेशान रहना तथा अभावों से घिरे रहना ही हो पाता था

ड्यूटी तो वे कर रहे थे, लेकिन वे संतुष्ट नहीं थे। सदैव परेशान रहना तथा अभावों से घिरे रहना ही हो पाता था इस ड्यूटी से। वे इनसे निजात चाहते थे। उन्हें पता लग गया था कि अच्छे लोगों की सरकार को तलाश है ताकि उन्हें अकाल पीडि़त क्षेत्रों में लगाया जा सके। वे भी उनकी सेवा करके इस जन्म को सार्थक कर लेना चाहते थे। परंतु फेमिन में ड्यूटी लगवाना आसान नहीं था। बड़ी एप्रोच की आवश्यकता थी। जिनकी ड्यूटी लगी थी, वे एक माह में ही टमाटर की तरह लाल हो गए थे। बस यही भाव उन्हें सालता था और वे सदैव इस बात के लिए प्रेरित रहने लगे थे कि उनकी ड्यूटी फेमिन में लग जाए। सुबह-सुबह ही आए मेरे घर और बोले-'शर्मा कोई जुगाड़ बैठाओ।' मैंने पूछा-'किस बात का?' वे बोले-'यार मेरी ड्यूटी फेमिन में लगवा दो तो तुम्हारा अहसान जीवन भर नहीं भूलूँगा। मेरी हालत तो तुम जानते हो। हम लोग हर चीज के लिए मोहताज हैं। यदि अकाल पीडि़त क्षेत्र में ड्यूटी लग गई तो बहती गंगा में हाथ मैं भी धो लूं।' 'लेकिन बिट्ठल भाई तुम्हारा तो मिशनरी सेवा भाव कोई इतिहास ही नहीं रहा। कल कहीं से कोशिश कर-कराके तुम्हारी वहां ड्यूटी लगवा दी जाए तो तुम क्या कर पाओगे?

वहां एक्चुएली वर्कर्स की आवश्यकता है। लोग पानी, चारा और अन्न की समस्या से जूझ रहे हैं। उन तक राहत सही रूप में पहुंचनी चाहिए।' बिट्ठल बोले-'भाई शर्मा तुम भी कमाल करते हो। मैं वर्कर नहीं हूं-यह तुमने कैसे जाना ? मैं पहले कई स्वयंसेवी संगठनों के लिए काम कर चुका हूं। अकाल इतना विकट है, मुझे भली प्रकार से पता है कि इस मुसीबत की घड़ी में मुझे पीडि़त लोगों के लिए क्या करना चाहिए! तुम्हें शायद पता नहीं है, जिन्हें फेमिन में लगाया गया है, वे दोनों हाथों से सूंत रहे हैं और मेरे मामले में तुम चरित्र प्रमाण-पत्र की आवश्यकता जतला रहे हो। तुम तो साफ तौर पर यह बताओ, तुम मेरी इस मामले में क्या सहायता कर सकते हो?' मैंने कहा-'सहायता की मत पूछो। अकाल राहत मंत्री से सीधी एप्रोच है। कहने भर की देर है, ड्यूटी लगी समझो। लेकिन क्या तुम अकाल को शेयर कर सकते हो?' 'अमां यार क्यों उलझा रहे हो।
मेरी अंगुलियां अकेली घी में नहीं भीगेंगी। प्रसाद बंटेगा तो उसका बचा-खुचा चींटे-चींटियों को भी मिलता है। परंतु तुमने यह दोगली बात कैसे कर दी। पहले तुम मेरी ईमानदारी पर शक कर रहे थे और अब तुम खुद माल मारने की नीयत बना बैठे हो।' बिट्ठल भाई ने कहा। मैं बोला-'बिट्ठल जी, अकाल में कितना ही ईमानदार हो, उसे रक्षा सौदों की तरह लेना-देना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। भूखे और प्यासे लोगों के पास जितना भी लेकर जाओगे-उन्हें वह भी कम पड़ जाएगा। कोयले की दलाली जैसा हाल है। कुछ भी नहीं करने पर भी लांछन तो लगना है। इसलिए मंत्री जी उन्हीं की ड्यूटी लगा रहे हैं जो घपला करने में निपुण हो। जहां तक मेरा सवाल है, दलाली आज के जमाने में छोड़ता कौन है?' बिट्ठल बोले-'सही कहते हो। मैं सब कुछ करूंगा। तुम्हारी सारी सेवा शर्तें मुझे मंजूर है, परंतु फेमिन में ड्यूटी तो लगवाओ। मानसून सिर पर है। जल्दी करो। मानसून सही समय पर जमकर बरस गया तो हमारे दोनों के मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। भगवान से प्रार्थना करो कि हम लोग अकाल में बांटते रहें।' मैं बोला-'तो ठीक है। शाम को आ जाओ। मंत्री जी के बंगले पर चलेंगे। समझो तुम्हारा काम हो गया। फेमिन में ड्यूटी तुम्हारी लगनी ही चाहिए, क्योंकि अकाल राहत का वितरण प्रॉपर होना है।' मैं शाम की इंतजार करने लगा। फेमिन में ड्यूटी लग गई तो मजा आ जाएगा।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story