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- दशहरा विशेष: सीखिए...
दशहरे के दिन एक बार फिर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रावण अंत को प्राप्त होगा। यह एक परंपरा है जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। रावण दहन की इस परंपरा के साथ ही समाज को एक सन्देश दिया जाता है कि बुराई का अंत निश्चित है। साथ ही त्योहार के रूप में यह सबके मिलने-जुलने और खुशियां मनाने का बहाना बन जाता है। रावण के रूप में एक खलनायक और उसके भीतर छुपी बुराइयों के अंत को दशहरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन यह केवल एक खलनायक के खात्मे की बात भर नहीं हैं। हमारे धार्मिक ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करते हैं कि रावण एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति भी था। सिर्फ उसके अहंकार ने उसे इस अंत तक पहुंचाया। लेकिन रावण में कई गुण भी थे जिसने उसे राक्षराज बनाया और जगत के स्वामी भोलेनाथ, शिव शंकर को भी उसने अपनी बुद्धिमता और ज्ञान से रिझाया। सीता जी का हरण रावण का पाप था लेकिन रावण में कुछ गुण भी थे जिनसे सीख ली जा सकती है।