सम्पादकीय

दशहरा विशेष: सीखिए रावण से कुछ जरूरी गुण, जो आपको बना सकते हैं अच्छा इंसान

Gulabi
14 Oct 2021 9:41 AM GMT
दशहरा विशेष: सीखिए रावण से कुछ जरूरी गुण, जो आपको बना सकते हैं अच्छा इंसान
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दशहरा विशेष

दशहरे के दिन एक बार फिर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रावण अंत को प्राप्त होगा। यह एक परंपरा है जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। रावण दहन की इस परंपरा के साथ ही समाज को एक सन्देश दिया जाता है कि बुराई का अंत निश्चित है। साथ ही त्योहार के रूप में यह सबके मिलने-जुलने और खुशियां मनाने का बहाना बन जाता है। रावण के रूप में एक खलनायक और उसके भीतर छुपी बुराइयों के अंत को दशहरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन यह केवल एक खलनायक के खात्मे की बात भर नहीं हैं। हमारे धार्मिक ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करते हैं कि रावण एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति भी था। सिर्फ उसके अहंकार ने उसे इस अंत तक पहुंचाया। लेकिन रावण में कई गुण भी थे जिसने उसे राक्षराज बनाया और जगत के स्वामी भोलेनाथ, शिव शंकर को भी उसने अपनी बुद्धिमता और ज्ञान से रिझाया। सीता जी का हरण रावण का पाप था लेकिन रावण में कुछ गुण भी थे जिनसे सीख ली जा सकती है।

खास बात यह कि रावण के गुणों से सीख लेने के साथ ही उसकी बुराइयों जैसे अहंकार, सत्ता और शक्ति का मद, अपनों की सही सलाह को भी न मानने की जिद और किसी स्त्री को बलपूर्वक पाने की लालसा और अपने शत्रु को कमजोर समझने की गलती आदि को न अपनाने की बात को भी ध्यान में रखना जरूरी है। आइए जानते हैं कि रावण के किन गुणों को अपनाया जा सकता है।

- कठिन तप के प्रति समर्पित: रावण शिवभक्त थे और शिव शंकर को प्रसन्न करना आसान नहीं है। कठिन तप से रावण ने उन्हें प्रसन्न किया और इस तप की हर परीक्षा में खरा उतरा।

सीख: यदि आप किसी परीक्षा में सफलता चाहते हैं तो मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरें नहीं। अडिग रहें जब तक सफलता नहीं मिले।

- लक्ष्य हेतु प्रतिबद्धता: रावण जिस लक्ष्य की ओर बढ़ता था उसके लिए वह प्रतिबद्ध होता था। भोलेनाथ को प्रसन्न करके शक्ति पाना उसका लक्ष्य था और वह इसके लिए प्रतिबद्ध रहा। उसने यह नहीं सोचा कि कहीं वह असफल हो गया तो?

सीख: आपके जीवन में लक्ष्य प्राप्ति इसी बात पर निर्भर करती है कि आप कितने प्रतिबद्ध यानी कमिटेड हैं। अगर आप लक्ष्य को गंभीरता से नहीं लेते, कमिटमेंट को हल्के में लेते हैं तो लक्ष्य भी दूर खिसकता जाता है।

- ज्ञान हमेशा सम्मान दिलाता है:

रावण कितना ज्ञानी था इसका प्रमाण उसके द्वारा रचित शिव तांडव स्रोत से भी मिलता है। इस स्रोत से स्वयं शिव प्रश्न। हो गए थे। ऐसी किवदंती है कि रावण को चारों वेदों और छह शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान था और उसके दस सिर इसी ज्ञान का प्रतीक थे। रावण एक स्थापित लेखक भी था। अपने इस ज्ञान और बुद्धि के बल पर ही रावण का सम्मान उसके शत्रुओं तक में था।

सीख: ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। जितना अधिक आप जानने का प्रयत्न करते हैं ज्ञान उतना ही बढ़ता है। ज्ञान आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को परिभाषित करता है।

-अपने लोगों की चिंता: रावण के राज्य में उसकी प्रजा कभी दुखी नहीं रही। वह एक परोपकारी और बुद्धिमान शासक रहा। उसके राज्य में उसकी प्रजा सुख और संपत्ति से परिपूर्ण थी। उसे अपनी प्रजा का ख्याल रखना आता था।

सीख: एक अच्छे लीडर में लोगों को साथ लेकर चलने के गुण होते हैं। लोग अक्सर नेतृत्व के लिए उसे चुनते हैं जो उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ने में विश्वास रखता है।
परिवार के प्रति समर्पित: अपने भाई-बहनों के सम्मान को लेकर रावण समर्पित रहा। देखा जाए तो उसकी बहन शूर्पणखा का अपमान ही उसके गलत कदम उठाने का निमित्त बना। विभीषण के विचार उससे बिल्कुल अलग थे फिर भी उसने विभीषण को खुद से अलग नहीं किया।

सीख: परिवार में चाहे सबकी विचारधारा भिन्न हो, लेकिन जब मुश्किल की घड़ी आये तो पूरे परिवार को एकजुटता दिखानी चाहिए।

- सीमा का उल्लंघन न करने की हिम्मत: चाहे रावण ने एक भूल स्वरूप सीता जी का हरण किया था लेकिन उसने लंका लाने के बाद कभी भी सीता जी को जबरदस्ती अपनाने की कोशिश नहीं की। यूं देखा जाए तो सीता जी उसकी बंदी थीं लेकिन रावण ने उन्हें कभी भी प्रताड़ना देकर पाने का प्रयत्न नहीं किया।

सीख: सीता का हरण रावण के जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। यह बात वह भी जानता था लेकिन उसने स्त्री के सम्मान को जिस तरह बनाये रखा वह संयम हर व्यक्ति में होना चाहिए। किसी भी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध कुछ करना गलत है यह समझने वाली बात है।

-वीर और निर्भीक: बड़े से बड़े फैसले लेने में भी रावण हिचका नहीं। श्री राम से युद्ध के लिए अंतिम पल तक वह डटा रहा। वह यह जान गया था कि उसका किया पाप है। फिर भी उसने एक योद्धा का धर्म निभाते हुए, पूरी बहादुरी से शत्रु का सामना किया।

सीख: जब एक बार आप किसी विपत्ति का सामना करने निकलते हैं तो पीछे कदम हटाने के बारे में मत सोचिए। इससे निर्णय कमजोर होते हैं। हमेशा मन में यह निर्णय कीजिये कि मुझे सामना करना ही है, चाहे चुनौती कितनी भी बड़ी क्यों न हो।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता उत्तरदायी नहीं है।
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