सम्पादकीय

ओडिशा में पंचायत चुनाव के दौरान एक गांव के मतदाताओं ने अपनाई प्रत्याशी चयन की अनूठी प्रक्रिया

Gulabi
27 Feb 2022 2:13 PM GMT
ओडिशा में पंचायत चुनाव के दौरान एक गांव के मतदाताओं ने अपनाई प्रत्याशी चयन की अनूठी प्रक्रिया
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ओडिशा में पंचायत चुनाव
शिवांशु राय। ओडिशा में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं। इसी क्रम में यहां के सुंदरगढ़ जिले के मालूपाड़ा गांव में ग्रामीणों ने पंचायत चुनाव प्रतिनिधियों से मौखिक और लिखित परीक्षा लेकर उसमें उत्तीर्ण हुए उम्मीदवारों को ही पंचायत चुनावों में दावेदारी प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग किया है। इससे लोकतंत्र का एक नया चेहरा देखने को मिला है। कानूनी और संवैधानिक प्रविधानों से इतर इस कदम को ग्रामीण अपने विकास के प्रति जागरूकता, अपने वोट की अहमियत और उम्मीदवारों का राजनीतिक दायित्व सुनिश्चित करने के क्रम में महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके द्वारा उम्मीदवारों से पूछे गए सवाल वर्तमान दौर के राजनीतिक चलन, उपेक्षा और कुव्यवस्था से उपजी व्यावहारिक समस्याओं पर आधारित हैं। चुनाव से पहले ही हार-जीत का निर्णय भले ही असंवैधानिक और नियमों के उलट हो, पर चुनाव से पहले ही अपने प्रतिनिधियों की मंशा और सेवा भावना को जानकर ही अपने लिए योग्य प्रतिनिधि को चुनना गलत नहीं माना जाना चाहिए।
ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या यह वर्तमान राजनीतिक भागीदारी, व्यवस्था और दायित्व के प्रति असंतोष एवं प्रतिनिधियों के चुनावी वादों के प्रति अविश्वास का परिणाम है या मतदाताओं की जागरूकता, वोट का महत्व, राजनीतिक समझ और विकास के प्रति सकारात्मक सोच का असर है। या फिर उम्मीदवारों की सभी मंशाओं को भांपकर, उत्तीर्ण उम्मीदवारों को ही चुनाव में उम्मीदवारी पेश करने की संवैधानिक और कानूनी दायरों से इतर रास्ता अपनाया है?
दरअसल पंचायतों की राजनीति और उनके चुनाव के मतदान व्यवहार की प्रकृति अलग किस्म की होती है जहां प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता, दलीय राजनीति से इतर व्यक्तिगत तौर पर उम्मीदवारी, जिम्मेदारी और विकास कार्यों में भागीदारी की रही है, परंतु बदलते ट्रेंड में अन्य राज्यों की तरह ओडिशा के पंचायत चुनावों में भी बड़े मात्रा में धन का इस्तेमाल कर मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने की कोशिशों में बढ़ोतरी हुई है। दरअसल नव-धनाढ्य वर्ग के लिए पंचायत चुनाव राजनीति के द्वार खोलती है जिसको साधने के लिए जाति, धर्म, पैसा, बड़े स्तर पर हिंसा, गुटबाजी, भाई-भतीजावाद और अनेक प्रलोभनों का दबदबा रहा है जिसने बड़े स्तर पर मतदान व्यवहार को नकारात्मक रूप में प्रभावित किया है। यही कारण है कि पंचायतों में सामूहिक विमर्श एवं भागीदारी का अभाव, नियमित ग्राम सभा के बैठक न होना, एकतरफा निर्णय और संवादहीनता, प्रशासनिक-राजनीतिक साठगांठ एवं दलीय राजनीति का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है।
समग्र तौर पर देखा जाए तो देश के सभी राज्यों के पंचायत चुनावों में एक नए ट्रेंड के रूप में स्थानीय स्तर पर चुनाव उम्मीदवारों, प्राक्सी उम्मीदवारों और मतदाताओं के बीच एक 'डील' के रूप में उभरा है जिसमें ताकतवर लोग किसी न किसी तरह से सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए तमाम हथकंडों को अपनाकर मतदाताओं को प्रभावित कर चुनावी प्रक्रिया को बाधित किया है। साथ ही, चुनाव बाद वादाखिलाफी, भ्रष्टाचार, उपेक्षा एवं विकास कार्यों के अभाव ने गंभीर समस्या को खड़ा किया है जो प्रचलित राजनीतिक चलन बनता जा रहा है। इससे ग्रामीण मतदाताओं में राजनीति के प्रति नकारात्मक सोच, अविश्वास और असंतोष बढ़ रहा है।
ऐसे में ओडिशा के मालूपाड़ा आदिवासी बहुल गांव के लोगों द्वारा प्रत्याशियों की परीक्षा द्वारा उनकी मंशा, सेवा भावना, विकास का रोडमैप एवं अपनी समस्याओं को दूर करने के प्रति गंभीरता को जानने की अनूठी पहल ने पंचायती राज की इन व्यावहारिक समस्याओं के लिए समाधान का नया मार्ग प्रस्तुत किया है, जिसमें पार्टी आधारित एवं शक्ति-केंद्रित राजनीति से इतर विकास-केंद्रित राजनीति को सामुदायिक सहभागिता, दायित्व निर्वहन, निर्णयन स्वतंत्रता और सेवा-भावना के द्वारा साधने को महत्व दिया गया है। आने वाले समय में कुछ संशोधन के साथ एक सकारात्मक माडल के रूप में देश के सभी राज्यों की पंचायतों की ऐसी व्यावहारिक समस्याओं को सुधारने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
अपने त्रिस्तरीय पंचायती राज के सफर में ओडिशा ने एससी, एसटी, महिला प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने, विकास संबंधी गतिविधियों, कल्याणकारी योजनाओं, गरीबी-निवारण कार्यक्रमों और आपदा आदि में पंचायतों को शामिल कर सीधे तौर पर उन्हें अधिकार, फंड और दायित्वों को प्रदान किया है। ओडिशा की पंचायती राज की सभी त्रिस्तरीय संरचना में चेयरमैन या वाइस-चैयरमैन के पदों पर महिलाओं के लिए आरक्षण इसे खास बनाती है। कोविड महामारी के दौरान भी ओडिशा ने पंचायत प्रतिनिधियों को जिला कलेक्टर का अधिकार दिया हुआ था जिससे महामारी प्रबंधन और रोकथाम में राज्य ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। ऐसे में ओडिशा ने पंचायतों को सुदृढ़ करने के लिए प्रभावकारी और अभिनव कदम उठाए हैं जो परिणाम आधारित पंचायत शासन को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए प्रयोग एवं व्यावहारिकता पर आधारित है। इसमें नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की सभी संभावनाएं हैं।
ग्राम-पंचायत वास्तव में राजनीतिक भागीदारी, सहभागितापूर्ण लोकतंत्र और समतामूलक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण कदम हैं जो अभी भी पूर्ण अवस्था को न प्राप्त कर अभी भी प्रायोगिक चरण में है। हर प्रयोग में समस्याओं का आना लाजमी है, पर हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि पंचायती राज जैसी संस्थाओं में भविष्य के भारत को समृद्धि बनाने, उसे आकार देने और विकसित करने की ताकत है। इसके लिए पंचायतों में प्रशिक्षित, समर्पित, ईमानदार एवं जवाबदेह प्रतिनिधित्व एवं नेतृत्व की जरूरत होगी जो राजनीतिक दायित्व एवं लोकतंत्र के जमीनी स्तर पर जरूरतों के मुताबिक कार्य कर सके।

( लेखक सामाजिक मामलों के जानकार हैं)
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