- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कोरोना संकट के दौरान...
x
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की वजह से पिछले करीब तीन सप्ताह से संक्रमण के मामले रोजाना तेजी से बढ़ रहे हैं
कैलाश बिश्नोई। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की वजह से पिछले करीब तीन सप्ताह से संक्रमण के मामले रोजाना तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में कई राज्यों ने स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू और वीकेंड कर्फ्यू जैसी पाबंदियां लगाई हैं जिनका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी दिखने लगा है। मौसम संबंधी पूर्वानुमान जाहिर करने वाली निजी संस्था स्काईमेट के बाद भारतीय मौसम विभाग ने भी मानसून के सामान्य रहने का पूर्वानुमान लगाया है। इसका आशय यह है कि इस वर्ष झमाझम बारिश होगी। इससे खरीफ फसल की पैदावार अच्छी रहेगी और अनाज के अच्छे उत्पादन से अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा। मौसम विभाग के मुताबिक मानसून लंबी अवधि में 98 फीसद रहेगा। इस पूर्वानुमान को कोरोना संकट के मद्देनजर अर्थव्यवस्था के लिए अहम माना जा रहा है।
कृषि क्षेत्र को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है और पिछले साल भी कोरोना संकट के दौरान इसी क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था को संभाले रखा था। महामारी की पहली लहर में जब हर क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि थी, अकेले कृषि क्षेत्र ऐसा रहा, जिसमें सकारात्मक विकास दर रही यानी एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद कृषि क्षेत्र ही साबित हुआ। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद 23.9 प्रतिशत तक गिर गया था। लेकिन कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने सकारात्मक वृद्धि दर्ज की। यह कालखंड महामारी से सर्वाधिक पीड़ित समय था। लॉकडाउन रबी की फसलों के साथ शुरू हुआ था फिर भी कृषि द्वारा सकल मूल्य वर्धन पिछले वर्ष 2019-20 की तुलना में 3.4 प्रतिशत तक बढ़ा था। एक अनुमान के मुताबिक इस साल मानसून अच्छा रहा तो जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 16 फीसद तक पहुंच सकती है, जो वर्ष 2020 में 14.6 फीसद रही थी यानी हम कह सकते हैं कि महामारी कृषि और इससे जुड़े सेक्टर को एक व्यापक अवसर के रूप में सामने लेकर आई है।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]
Next Story