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चुनाव के पांव चलती राजनीति ने ठान लिया है कि कैसे हिमाचलियों का दिल चुरा लिया जाए। जाहिर तौर पर 'आप' के आने से सब कुछ 'चोरी-चोरी और चुपके-चुपके' होने लगा है। देश और प्रदेश के हालात में मतदाता का अपने दिल पर कितना काबू है या मिशन रिपीट के महाभियान में भाजपा अपना कितना जादू चला पाएगी, इस पर टिकी आशा और आशंका सिर माथे है। यानी सत्ता खुद में एक दरगाह की स्थिति ढूंढ रही है और जहां नतमस्तक होने के लिए सियासी आस्था का दायरा बढ़ाया जा रहा है। उदयपुर के चिंतन में कांग्रेसजीवी होने का सत्य पुकार रहा है और अगर ठीक से कांग्रेस ने सेहरा पहन लिया या यूं कहें कि भाजपा के आक्रमण में फंसे राहुल गांधी फिर से औपचारिक अध्यक्ष बनने का हक अदा करते हुए देखे जाते हैं, तो हिमाचल का चुनाव पार्टी के लिए इतना कठिन नहीं हो सकता। भले ही कांग्रेस अपने ही रुके हुए पानी में नहा रही है, लेकिन ठीक से चेहरा धो लेगी तो आंखें देखने के काबिल हो जाएंगी कि इसके सामने भाजपा कैसे अपना कद बरकरार रखने की मशीनरी साबित हो रही है। भाजपा को पकड़ना महज सियासत नहीं और जहां देश का प्रधानमंत्री हर चुनाव में जमीन हथियाने का हर शस्त्र धारण करता हो, वहां फासलों की जंग में मनोविज्ञान भी असर रखता है। एक खास मनोविज्ञान अब हिमाचल की रगों में प्रवेश कराया जाएगा।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली