सम्पादकीय

dumb politics

Rani Sahu
16 May 2022 7:21 PM GMT
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चुनाव के पांव चलती राजनीति ने ठान लिया है

चुनाव के पांव चलती राजनीति ने ठान लिया है कि कैसे हिमाचलियों का दिल चुरा लिया जाए। जाहिर तौर पर 'आप' के आने से सब कुछ 'चोरी-चोरी और चुपके-चुपके' होने लगा है। देश और प्रदेश के हालात में मतदाता का अपने दिल पर कितना काबू है या मिशन रिपीट के महाभियान में भाजपा अपना कितना जादू चला पाएगी, इस पर टिकी आशा और आशंका सिर माथे है। यानी सत्ता खुद में एक दरगाह की स्थिति ढूंढ रही है और जहां नतमस्तक होने के लिए सियासी आस्था का दायरा बढ़ाया जा रहा है। उदयपुर के चिंतन में कांग्रेसजीवी होने का सत्य पुकार रहा है और अगर ठीक से कांग्रेस ने सेहरा पहन लिया या यूं कहें कि भाजपा के आक्रमण में फंसे राहुल गांधी फिर से औपचारिक अध्यक्ष बनने का हक अदा करते हुए देखे जाते हैं, तो हिमाचल का चुनाव पार्टी के लिए इतना कठिन नहीं हो सकता। भले ही कांग्रेस अपने ही रुके हुए पानी में नहा रही है, लेकिन ठीक से चेहरा धो लेगी तो आंखें देखने के काबिल हो जाएंगी कि इसके सामने भाजपा कैसे अपना कद बरकरार रखने की मशीनरी साबित हो रही है। भाजपा को पकड़ना महज सियासत नहीं और जहां देश का प्रधानमंत्री हर चुनाव में जमीन हथियाने का हर शस्त्र धारण करता हो, वहां फासलों की जंग में मनोविज्ञान भी असर रखता है। एक खास मनोविज्ञान अब हिमाचल की रगों में प्रवेश कराया जाएगा।

जहन में से कुछ यादें निकाल कर भविष्य के अरमान इतने ठूंस दिए जाएंगे कि जहां प्रतीत होगा कि हिमाचल के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वोट मांग रहे हैं। ऐसे में कांगे्रस को अपना सिक्का उछालना है, तो मसला जमीनी संघर्ष का कहीं अधिक होगा। मौजूदा राजनीति में भाजपा को यह महारत हासिल है कि यह पार्टी सामने खड़ी कांग्रेस की विकटें उड़ाने के लिए नित नई गेंदबाजी करती है। उत्तराखंड, गोवा और पंजाब में कांग्रेस की हार के इतने विश्लेषण हैं कि हिमाचल में मनोबल जगाने के लिए ऐड़ी चोटी का प्रयास चाहिए। क्या चिंतन शिविर हिमाचल में कांग्रेस की मनोस्थिति बदल पाएगा या नेताओं को अपनी-अपनी मांद से हटा कर प्रदेश के सामने सशक्त ढंग से पेश कर पाएगा। अभी तक तो ऐसा अभियान शुरू नहीं हुआ, जहां पार्टी हर मोर्चे पर लड़ते हुए दिखाई दे।
यह दीगर है कि चिंतन शिविर के तस्वीर में कुछ नेता बड़े होने की मुद्रा में मुस्कराते हुए सोशल मीडिया को बधाई दे रहे हैं, लेकिन इधर फील्ड में भाजपा ने अपनी वित्तीय शक्ति, सत्ता की ताकत और केंद्रीय नेतृत्व के प्रभाव का रंग जमाना शुरू किया। धर्मशाला में भाजयुमो के शिविर के बाद शिमला में मोदी सरकार के आठ सालों की सुनहरी पलकें जनता को विस्मृत करने के लिए खुलेंगी। हिमाचल में न केवल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा बार-बार आ रहे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आना अब प्रदेश के नक्षत्र बदलने का संदेश उंडेलेगा। तमाम राष्ट्रीय योजनाओं और प्रदेश की परियोजनाओं का मक्का भी कितने गजब का चुनावी तीर्थ स्थान होता है। चुनावी मक्का बनाती फितरत का तूफान कितना सक्रिय है। सूचनाएं खुद श्रद्धालु बन कर हिमाचल आएंगी और फिर हमें मालूम हो जाएगा कि केंद्रीय मंत्री तो अब हर विधानसभा में स्टेडियम का ढांचा नाप देंगे। कभी नितिन गडकरी ने सारी सड़कें चौड़ी कर दी थीं, लेकिन इनके योजना प्रारूप को देखने के लिए पुनः एक नया चुनाव आ गया। सारे देश में खुद का डंका पीटती कांग्रेस के लिए भी फिर से एक नया चुनाव आ गया। पड़ोस में पंजाब और उत्तराखंड के सामने और इसके ठीक सामने राष्ट्र जीतने निकली भाजपा से इस बार दो-दो हाथ करने का कितना सामर्थ्य-कितनी शक्ति कांग्रेस जुटा पाती है, यह राजस्थान की तपती बालू तय कर पाई होगी या हिमाचल तक पहुंची देश की गर्मी उतर जाएगी, इंतजार रहेगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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