सम्पादकीय

मोदी सरकार की नीतियों की वजह से देश हुआ दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर, किसानों और उपभोक्ताओं को मिला लाभ

Gulabi
29 March 2021 10:59 AM GMT
मोदी सरकार की नीतियों की वजह से देश हुआ दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर, किसानों और उपभोक्ताओं को मिला लाभ
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तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछेक किसान संगठनों के

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछेक किसान संगठनों के आंदोलन का क्या हश्र होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन आम किसान देश को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं। वर्ष 2019-20 के दौरान देश में दालों का उत्पादन बढ़कर 2.32 करोड़ टन के आंकड़े पर पहुंचना इसका स्पष्ट प्रमाण है। इससे दशकों बाद दालों के मामले में आयात पर हमारी निर्भरता खत्म हो गई। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की सरकारों को अपने देश के किसानों से कहना पड़ा कि वे दलहनी फसलों की खेती न करें। गौरतलब है कि पिछली सदी के सातवें दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने एक फसली खेती को बढ़ावा दिया। इससे जहां गेहूं-धान के उत्पादन में आशातीत बढ़ोतरी हुई वहीं दलहनी-तिलहनी और मोटे अनाजों की खेती अनुर्वर तथा सीमांत भूमि पर धकेल दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत खाद्य तेल और दालों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक बन गया। जहां तक दालों का सवाल है तो भारत हर साल 50 से 60 लाख टन दाल आयात करने लगा।

भारतीय किसानों ने की दालों की खेती की उपेक्षा, विदेशों में दलहनी फसलों की खेती बढ़ी

दलहनी फसलों की खेती में सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि जहां भारतीय किसानों ने दालों की खेती को उपेक्षित किया वहीं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, म्यांमार जैसे देशों ने दलहनी फसलों की खेती शुरू की। भारतीय मांग को ध्यान में रखकर ऑस्ट्रेलिया में चना, कनाडा में मटर और म्यांमार में अरहर की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी। भारत में दालों की बढ़ती खपत और दालों के व्यापार में भारी मुनाफे को देखते हुए कई कारोबारियों ने अफ्रीकी देशों में हजारों एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर दालों की खेती शुरू कर दी। क्रय क्षमता में वृद्धि, मध्य वर्ग का विस्तार, शहरीकरण जैसे कारणों से भारत में दालों की खपत बढ़ी जिससे दाल आयात में भी तेजी आई। इससे विदेश में दलहनी फसलों की खेती बढ़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां देश में गेहूं-चावल के भंडार का अंबार लग गया तो वहीं रसोई में देसी दाल कम होती गई।
गेहूं उत्पादन में रिकॉर्ड बनाने वाला पंजाब दालों के मामले में दूसरे राज्यों पर निर्भर हो गया

इसे हरित क्रांति के अगुआ कहे जाने वाले पंजाब के उदाहरण से समझा जा सकता है। 1980 में पंजाब में 74,470 हेक्टेयर जमीन पर दलहनी फसलों की बोआई हुई जिससे 42,000 टन दालों का उत्पादन हुआ। चालीस साल बाद 2019 में पंजाब में दालों का रकबा घटकर महज 11,700 हेक्टेयर रह गया। आज की तारीख में पंजाब में दालों की सालाना खपत छह लाख टन है, लेकिन उत्पादन महज 10,000 टन। इस प्रकार गेहूं उत्पादन में रिकॉर्ड बनाने वाला पंजाब दालों के मामले में दूसरे राज्यों और विदेशी आयात पर निर्भर हो गया। इसका एक नुकसान यह हुआ कि दलहनी फसलों की खेती से मिट्टी में होने वाला नाइट्रोजन स्थिरीकरण थमा जिससे भूमि की उर्वरता कम हुई। इसकी भरपाई के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा जिससे खेती की लागत बढ़ती गई।

पीएम मोदी ने दी दालों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने को प्राथमिकता

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने दालों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने को प्राथमिकता दी, ताकि हर साल दाल आयात पर खर्च होने वाले 16,000 करोड़ रुपये देश के किसानों तक पहुंचें। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत देश भर में 5,000 दलहनी गांव विकसित किए गए जहां दलहनी फसलों के उन्नत बीज तैयार किए गए। उन्नत बीजों के मिनी किट किसानों तक डाकघरों के माध्यम से पहुंचाए गए। हर खेत को पानी और 'पर ड्रॉप मोर क्रॉप' के तहत सिंचाई सुविधा का विस्तार किया गया। मोदी सरकार ने न सिर्फ दलहनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोतरी की, बल्कि उनकी सरकारी खरीद को भी बढ़ाया।

भारत दशकों बाद दालों के मामले में आत्मनिर्भर बना

पिछले छह वर्षों में विभिन्न प्रकार की दालों के समर्थन मूल्य में 40 से 73 फीसद की बढ़ोतरी की गई। सरकार ने कुछ दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगा दिया तो कुछ में आयात शुल्क बढ़ा दिया, ताकि आयात को हतोत्साहित किया जा सके। दालों की महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार ने दालों का 10 लाख टन बफर स्टॉक बनाया है। सरकारी खरीद बढ़ने का नतीजा यह हुआ कि किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत मिलने लगी। इसका परिणाम यह हुआ कि जहां 2014 में दालों की पैदावार 1.72 करोड़ टन हुई थी वहीं 2019 में यह बढ़कर 2.32 करोड़ टन तक पहुंच गई। लिहाजा भारत दशकों बाद दालों के मामले में आत्मनिर्भर बना।

लॉकडाउन के दौरान 20 करोड़ लाभार्थियों को 15 लाख टन दालों का मुफ्त वितरण किया गया

कोविड-19 के कारण लागू हुए लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत अप्रैल से नवंबर के बीच 20 करोड़ लाभार्थियों को 15 लाख टन दालों का मुफ्त वितरण किया गया। घरेलू बाजार में दालों की बढ़ती मांग और विदेशों में बसे भारतीयों के बीच दाल की खपत को देखते हुए मोदी सरकार ने 2030 तक 3.2 करोड़ टन दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। वह दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया का अग्रणी दाल निर्यातक बनकर उभरेगा। दरअसल मोदी सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए गेहूं, धान, गन्ना जैसी चुनिंदा फसलों की एक फसली खेती की जगह पारिस्थितिक दशाओं के अनुरूप विविध फसलों की खेती को बढ़ावा देने की दूरगामी नीति पर काम कर रही है। इसमें दलहनी, तिलहनी फसलों, पौष्टिक मोटे अनाजों, फल-फूल और औषधीय पौधों की खेती महत्वपूर्ण है। इससे न सिर्फ फसल चक्र का पालन होगा, बल्कि लगातार गिरते भूजल स्तर पर भी रोक लगेगी।

मोदी सरकार देश भर में मंडी व्यवस्था का आधुनिकीकरण, बिचौलिया विहीन खरीद केंद्र बनाने में जुटी

इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मोदी सरकार देश भर में सूचना प्रौद्योगिकी आधारित विकेंद्रित खरीद-बिक्री नेटवर्क स्थापित कर रही है। इस दिशा में मंडी व्यवस्था का आधुनिकीकरण, बिचौलिया विहीन खरीद केंद्र, उपज बिक्री की धनराशि सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजने, ई-नाम, किसान रेल, किसान उड़ान जैसे अहम उपाय किए गए हैं।


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