सम्पादकीय

दोहरी नौकरी से उपजे सवाल

Subhi
3 Oct 2022 5:15 AM GMT
दोहरी नौकरी से उपजे सवाल
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आइटी कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें आयकर में करीब तीस फीसद की कटौती के बाद जो वेतन मिलता है, उससे दिल्ली-बंगलुरु या गुरुग्राम जैसे महंगे शहरों में जीवनयापन करना आसान नहीं रह गया है।

संजय वर्मा: आइटी कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें आयकर में करीब तीस फीसद की कटौती के बाद जो वेतन मिलता है, उससे दिल्ली-बंगलुरु या गुरुग्राम जैसे महंगे शहरों में जीवनयापन करना आसान नहीं रह गया है। इसलिए वे अपने खर्च की भरपाई के लिए नौकरी से इतर दूसरा काम पकड़ने के लिए मजबूर होते हैं।

हर व्यक्ति अपनी प्रतिभा और परिश्रम का सम्मान और उचित मूल्य पाने की अपेक्षा करता है। मगर जब व्यक्ति की प्रतिभा और मेहनत का संबंध किसी कारखाने या किसी कंपनी के दफ्तर के अंतर्संबंध के रूप में कर्मचारी और मालिक वाले रिश्तों में बदलता है, तो अक्सर संदेह उपजता है। कर्मचारी को लगता है कि उसे उसकी प्रतिभा-मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल रहा है।

उधर, कंपनी या कारखाना संचालकों को लगता है कि उनके कुछ कर्मचारी विश्वासघात कर रहे हैं। वे या तो कामचोरी करते हैं या प्रतिद्वंद्वी कंपनी को सूचना पहुंचाते हैं, जिससे नियोक्ता कंपनी के व्यापारिक हित प्रभावित होते हैं। कुछ नहीं तो ये कर्मचारी मूल नियोक्ता कंपनी में काम करने के साथ-साथ दूसरी या प्रतिद्वंद्वी कंपनी में भी सेवाएं देते हैं, जो नैतिक रूप से सही नहीं है।

ऐसे ही अंदेशों के कारण हाल में भारत की सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) कंपनी विप्रो ने अपने तीन सौ कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। विप्रो की ओर से साफ और कड़े शब्दों में कहा गया कि उनकी कंपनी में एक साथ दो जगह (मूनलाइटिंग) काम करने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। एक साथ दो जगह काम या कहें दोहरी नौकरी के संदर्भ को स्पष्ट करते हुए विप्रो ने कहा है कि जो कर्मचारी कंपनी के कर्मचारी रहते हुए चोरी-छिपे प्रतिद्वंद्वी कंपनी के लिए काम कर रहे हैं, वे कंपनी के प्रति निष्ठा का उल्लंघन कर रहे हैं।

श्रम की दुनिया में किसी का भी एक साथ दो जगह या एक नौकरी में रहते हुए अंशकालिक कर्मचारी के रूप में दूसरी जगह काम करना कोई नई बात नहीं है। बीते कुछ दशक में दुनिया भर में तमाम लोग नियमित नौकरी के अलावा अपने बचे समय में कोई ऐसा छोटा-मोटा काम करते रहे हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय हो सके। कोरोना काल में इस प्रवृत्ति के और जोर पकड़ने का अनुमान लगाया जाता रहा है।

खासकर सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों में यह चलन अधिक बढ़ा, क्योंकि इस क्षेत्र में ज्यादातर काम कंप्यूटर-इंटरनेट के जरिए ही संपन्न करवाए जाते हैं। शायद यही वजह है कि इस तरह दोहरी नौकरी के चलन को लेकर सबसे ज्यादा चिंता सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में दिखी। हाल में कई प्रमुख आइटी कंपनियों ने नियमित नौकरी के साथ कहीं और काम करने के रवैये को अनुचित और अनैतिक ठहराया है।

इन्फोसिस ने अपने कर्मचारियों को भेजे ईमेल में कहा कि उनके यहां दो जगहों पर काम करने की अनुमति नहीं है। उसके मुताबिक अनुबंध के किसी भी उल्लंघन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी और नौकरी से निकाला भी जा सकता है। एक अन्य प्रमुख आइटी कंपनी आइबीएम के प्रबंध निदेशक (भारत और दक्षिण एशिया) ने एक कार्यक्रम में कहा कि उनके कर्मचारी अपने बचे समय में जो चाहें कर सकते हैं, लेकिन दो जगह काम करना नैतिक रूप से सही नहीं है।

यहां दो जगह काम करने (मूनलाइटिंग) और बचे समय में अपनी प्रतिभा और दक्षता के मुताबिक अंशकालिक तौर पर कोई काम करने में अंतर समझने की आवश्यकता है। किसी नियमित नौकरी से बाहर कोई अन्य नौकरी करना कभी भी जायज नहीं रहा है। यह नीति निजी कंपनियों में ही नहीं, बल्कि सरकारी प्रतिष्ठानों में भी लागू है।

अगर कोई कर्मचारी एक ही वक्त में या अपने बचे समय में मूल नौकरी के साथ-साथ दूसरी नौकरी भी नियमित रूप से करता है, तो अनैतिक होने के साथ यह श्रम कानूनों का भी उल्लंघन है। हो सकता है कि विप्रो की कार्रवाई से यह बहस और जोर पकड़े कि अगर कोई व्यक्ति अपने खाली वक्त का इस्तेमाल कर रहा है और ऐसा करते समय वह अपनी नियमित नौकरी में दिए गए कामकाज को पूरा करने में कोई कोताही नहीं करता है, तो क्या तब भी उसे दोहरी नौकरी का दोषी माना जा सकता है।

शायद यही समस्या का वह पहलू है जो इस मुद्दे पर बहस की मांग करता है और जिसे लेकर कुछ कंपनियों ने स्पष्ट किया है कि उन्हें किसी कर्मचारी के इस तरह काम करने से कोई परेहज नहीं है। मसलन, आनलाइन भोजन पहुंचाने वाली कुछ कंपनियों ने कहा है कि उन्हें अपने कर्मचारियों के कहीं और काम करने से कोई परेशानी नहीं है। इन कंपनियों का मत है कि अगर उनके कर्मचारी दफ्तर में तय किए गए कामकाज के घंटे के मुताबिक नौकरी करने के बाद बाहर कोई अन्य काम करते हैं, तो यह अनैतिक नहीं है। यानी ऐसा करके कर्मचारी न तो मूल कंपनी को कोई धोखा दे रहे हैं और न ही कर्मचारी की कंपनी के प्रति वफादारी को लेकर कोई संदेह किया जा सकता है।

इस प्रसंग से जुड़ी बहस के कई सिरे हैं। लेकिन अगर हम अपने कर्मचारियों पर कार्रवाई करने वाली या ऐसी मंशा दर्शाने वाली कंपनियों की बात करें तो इसका एक उल्लेखनीय पहलू यह है कि ज्यादातर आइटी कंपनियां बाहर से करवाए जाने वाले कामकाज (आउटसोर्स) के भरोसे बनी हैं, यानी उन्हें बाहरी देशों, वहां की कंपनियों या निजी संगठनों से काम मिलते हैं, जिन्हें वे अपने कर्मचारियों से संपन्न कराती हैं।

विचारणीय है कि अगर विकसित देशों की कंपनियां और लोग अपना काम इन आइटी कंपनियों से नहीं करवाते, तो क्या खुद इन कंपनियों का कोई भविष्य बनता? हालांकि इस मुद्दे को इस नजरिए से देखना ज्यादा उचित होगा कि अगर कर्मचारी नियमित नौकरी देने वाली कंपनी को कोई धोखा दिए बगैर अपने बचे वक्त का इस्तेमाल किसी अन्य काम में कर रहा है, तो क्या वह भी अनैतिक होगा।

मिसाल के तौर पर अगर कोई आइटी कर्मचारी प्रतिदिन दफ्तर से लौटने के बाद और अवकाश के दिनों में किसी क्लब में जाकर वायलिन बजाने की अपनी प्रतिभा दिखाता है और उसके बदले पारिश्रमिक अर्जित करता है, तो क्या यह अनैतिक होगा? इसी तरह, अगर वह आइटी कर्मचारी खाली समय में अपनी नौकरी के दायित्वों के समान ही कोई काम निजी तौर पर करता है (मसलन वेबसाइट बनाना) तो क्या इसे नौकरी के अनुबंधों के खिलाफ माना जाएगा। दसियों साल तक विमान उड़ाने वाला पायलट अगर साप्ताहिक अवकाश और अपनी छुट्टियों के दौरान अगर किसी विमान उड़ान प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षुओं को विमान उड़ाने के गुर सिखाता है, तो क्या इसे अपराध माना जाएगा?

आइटी कंपनियों का प्रबंधन इन दिनों बाहर से मिलने वाले कामकाज में हो रही कटौती के कारण दबाव में है। इस कारण इन कंपनियों का मुनाफा घट रहा है, जबकि उन्होंने कुछ मौकों पर बहुत ऊंचे वेतन देकर कर्मचारियों की भर्ती भी की है, जिससे कंपनियों का खर्च बढ़ा है। इससे बचने के लिए कई आइटी कंपनियां वेतन कटौती और कम कुशल कर्मचारियों की छंटनी का नुस्खा अपना रही हैं।

वेतन कटौती की वजह से वहां कुशल कर्मचारियों की कमी हो गई है। मुनाफे में कमी और घाटे की आशंका के कारण वे अपने कम कुशल या कम अनुभवी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने में लगी हैं। दूसरी तरफ ज्यादातर आइटी कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें आयकर में करीब तीस फीसद की कटौती के बाद जो वेतन मिलता है, उससे दिल्ली-बंगलुरू या गुरुग्राम जैसे महंगे शहरों में जीवनयापन करना आसान नहीं रह गया है। इसलिए वे अपने खर्च की भरपाई के लिए नौकरी से इतर दूसरा काम पकड़ने के लिए मजबूर होते हैं।

हालांकि दोहरी नौकरी के चलन को लेकर पिछले वर्ष एक अमेरिकी रिपोर्ट में यह नतीजा निकाला गया था कि नियमित नौकरी से बाहर कोई दूसरा काम करने से ज्यादातर कर्मचारी संतुष्टि साथ-साथ अपने भीतर ज्यादा ऊर्जा का अनुभव करते हैं। इसका फायदा उनकी नियमित नौकरी में होता है, जहां वे पूरी लगन और निष्ठा से काम करना आरंभ कर देते हैं।

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