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सत्ता के नशे में चूर शी चिनफिंग: चिनफिंग का अहंकारी अंदाज सोवियत संघ की तर्ज पर चीन को कर सकता है टुकड़े-टुकड़े
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। [ विजय क्रांति ]: खुद को जीवन भर के लिए चीन के सर्वोच्च पद पर नामित कराने पर आमादा शी चिनफिंग हताशा में कई ऐसे खतरनाक कदम उठा रहे हैं, जो सोवियत संघ की तर्ज पर चीन को टुकड़े-टुकड़े करने का कारण भी बन सकते हैं। चीनी राष्ट्रपति सर्वोच्च शासक की गद्दी जीवनपर्यंत अपने नाम कर लेने के लिए इस हद तक उतावले हैं कि वह कई बार अवसर की शालीनता और अपने पद की गरिमा भी भूल जाते हैं। जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के मौके पर चीन की जनता उनकी ओर मुखातिब थी और दुनिया भर के लोग उनकी बात सुनने को उत्सुक थे, तब उन्होंने धमकी दे डाली कि जो कोई भी चीन को दबाने की कोशिश करेगा उसका सिर कुचल कर लहूलुहान कर दिया जाएगा। चीन की आर्थिक और सैन्य ताकत के बारे में जानने वालों को उम्मीद नहीं थी कि अपनी पार्टी के शताब्दी समारोह जैसे गरिमामयी मौके पर वह अपनी ताकत का ऐसे अहंकारी अंदाज में प्रदर्शन करेंगे। शी के इसी अहंकार ने लोगों को पिछली सदी के छठे दशक में सोवियत संघ की याद दिला दी, जब सर्वोच्च कम्युनिस्ट नेता निकिता ख्रुश्चेव ने ऐसे ही एक मौके पर दहाड़ते हुए सभी पश्चिमी देशों को धमकी दे डाली थी, 'तुम्हें सुनकर अच्छा लगे या बुरा, लेकिन सच यह है कि इतिहास हमारे पक्ष में है। हम तुम सबको धरती में गाड़ देंगे।' इतिहास जानता है कि उसके बाद क्या हुआ? सोवियत संघ के 16 टुकड़े हो गए और पूर्वी यूरोप से कम्युनिज्म का सफाया हो गया।
शी ने माओ का पलटा रूल, बन गए जीवन भर के लिए देश के सर्वोच्च नेता
चेयरमैन माओ के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में यह नियम बना दिया गया था कि चीनी राष्ट्रपति और पार्टी महासचिव पद पर कोई भी नेता पांच-पांच साल के लिए दो से अधिक बार नहीं चुना जाएगा, लेकिन 2012 में सत्ता में आए शी पर ताकत का नशा इस कदर सवार है कि उन्होंने 2018 में इस नियम को रद करा दिया। इससे पहले 2013 में पार्टी के भीतर जोड़तोड़ करके वह चीनी सेना के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन यानी प्रधान सेनापति का पद भी हथिया चुके थे। इस साल अक्टूबर में होने जा रहे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 21वें अधिवेशन में वह ऐसा प्रस्ताव पारित कराने का माहौल बनाने में जुटे हैं कि उन्हें जीवन भर के लिए देश का सर्वोच्च नेता मान लिया जाए।
बीजिंग की दादागीरी पूर्वी लद्दाख में नहीं आई काम, भारतीय सेना ने चीन के सपने को धूल में मिला दिया
जापान के सेनकाकू द्वीप पर कब्जा करने से लेकर दक्षिणी चीन सागर में चीनी समुद्र तट से दो-तीन हजार किमी दूर के फिलीपींस और ब्रूनेई समेत दर्जन भर देशों के इलाकों को अपना बताने और हिंद-प्रशांत, हिंद महासागर तथा अरब सागर तक अपनी नौसेना को तैनात करने जैसे कई हेकड़ी भरे काम हैं, जिनके दम पर वह खुद को विश्व विजेता दिखाने में लगे हुए हैं, लेकिन यह शी की बदकिस्मती ही है कि उनका कोई दांव सीधा नहीं पड़ रहा। शी का सबसे बड़ा दांव लद्दाख पर हमला था। मदांध शी को भरोसा था कि लद्दाख में गलवन, पैंगांग झील, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा समेत कई स्थानों पर हमला करके वह पूर्वी लद्दाख में भारत की सेना को हरा देंगे और सियाचिन तथा दौलत बेग ओल्डी समेत पूरा पूर्वी लद्दाख चीन का हो जाएगा। शी यह मानकर बैठे थे कि हांगकांग पर बीजिंग की दादागीरी कायम होने के बाद लद्दाख में चीन की इस जीत से वह चीनी जनता के हीरो हो जाएंगे और कम्युनिस्ट पार्टी उनके सिर पर सर्वोच्च नेता का नया ताज रख देगी, लेकिन गलवन में भारतीय सेना के हाथों चीनी सेना की दुर्गति ने उनके सपने को धूल में मिला दिया।
शताब्दी समारोह: शी की फिर हुई किरकिरी, मोदी ने शी को बधाई संदेश तक नहीं दिया
भारत के हाथों शी की हाल में फिर से किरकिरी तब हुई जब मोदी सरकार ने न तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के लिए अपने किसी नेता को भेजा और न ही शी को बधाई संदेश दिया। इसके पांच दिन बाद तिब्बत के निर्वासित शासक और धर्मगुरु दलाई लामा को प्रधानमंत्री मोदी ने खुद फोन करके उन्हें जन्मदिन की बधाई देकर शी के जले पर नमक छिड़का। अमेरिका ने भी दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई दी और तिब्बत तथा शिंजियांग के सवाल पर चीन की कड़ी आलोचना की। अक्टूबर अधिवेशन से पहले शी को यह सब नागवार गुजर रहा है। खिसियाई चीनी सत्ता ने पहले तो भारत और अमेरिका के खिलाफ जमकर जहर उगला, फिर ग्लोबल टाइम्स भारत और चीन के बीच दोस्ताना संबंधों की दुहाई देने बैठ गया। एक जुलाई के अपने भाषण में शी ने ताइवान का नाम लेकर धमकी दी थी कि ताइवान के विलय को लेकर हमारा इरादा एकदम अडिग है, लेकिन उसी सप्ताह जब चीन ने ताइवान को धमकाने के लिए उसके क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमान भेजे तो ताइवान ने उनका मुकाबला करने के लिए अपने विमानों को भेज दिया। इस अप्रत्याशित जवाब ने चीनी विमानों को वापस जाने पर मजबूर कर दिया।
जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने, तबसे चीनी राष्ट्रपति की कई बार हो चुकी किरकिरी
शी इससे बहुत परेशान हैं कि जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे उनकी कई बार किरकिरी हो चुकी है। लद्दाख और डोकलाम में चीन की ईंट का जवाब पत्थर से देने के अलावा मोदी सरकार ने जिस तरह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड को नया स्वरूप दिया और वियतनाम तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों का साथ देना शुरू किया, वह चीन को रास नहीं आ रहा। चीन इसलिए भी मुश्किल में है, क्योंकि दुनिया यह मानने को मजबूर हो रही है कि कोरोना वायरस उसी ने फैलाया। ज्यादातर देश चीन के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं और आर्थिक-व्यापारिक क्षेत्र में इसका असर भी दिखना शुरू हो चुका है। अब इसकी आशंका बढ़ रही है कि चीन का स्थायी शासक बनने की सनक में शी चिनफिंग अक्टूबर से पहले कहीं भारत, जापान, ताइवान या वियतनाम जैसे किसी देश के साथ कोई नया सैन्य टकराव न शुरू कर बैठें। अगर अपनी बौखलाहट में वह ऐसा करने की हिमाकत करते हैं तो उनका यह कदम चीन को उसी तरह महंगा पड़ सकता है जैसा पूर्व सोवियत संघ को पड़ा था। कहीं ऐसा न हो जाए कि दूसरे देशों की जमीन हड़पने के चक्कर में वह चीन को ही तुड़वा बैठें और तिब्बत, शिंजियांग, दक्षिणी मंगोलिया, मंचूरिया और हांगकांग गंवाकर चीन का हाल पूर्व सोवियत संघ जैसा हो जाए।