सम्पादकीय

दवाओं की खोज

Gulabi
10 May 2021 1:43 PM GMT
दवाओं की खोज
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दुनिया भर में कोविड महामारी से निजात पाने के लिए प्रभावशाली दवाओं की खोज लगातार जारी है

मनीष मिश्रा। दुनिया भर में कोविड महामारी से निजात पाने के लिए प्रभावशाली दवाओं की खोज लगातार जारी है। अब तक जो इलाज किया जा रहा है, वह मुख्यत: मरीज के शरीर के तंत्र को सहारा देने और नुकसान को सीमित करने पर आधारित है, ताकि शरीर का प्रतिरोधक तंत्र खुद वायरस से मुकाबला कर ले और वायरस जल्दी शरीर से चला जाए। जैसे बैक्टीरिया से मुकाबला करने के लिए कई प्रभावी एंटीबायोटिक दवाएं हैं, वायरस से होने वाले रोगों के खिलाफ हमारे पास बहुत सीमित दवाएं हैं, जो कुछ ही वायरस के खिलाफ कारगर होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल ऐसी चार दवाओं का परीक्षण किया था, जिनके कोविड के खिलाफ कारगर होने की संभावना थी, लेकिन उनमें से कोई सचमुच प्रभावशाली नहीं साबित हुई। हालांकि, बाद में उनमें से एक रेमडेसिविर को सीमित आधार पर उपयोग की मान्यता दे दी गई । अब विश्व स्वास्थ्य संगठन तीन नई दवाओं का परीक्षण दुनिया के कई अस्पतालों में करने जा रहा है। हालांकि, इनमें से कोई वायरस को मारने वाली दवा नहीं है, बल्कि ये एक अलग सिद्धांत पर काम करती हैं, जो आम तौर पर अब तक कोविड के गंभीर स्वरूप के खिलाफ सबसे ज्यादा कारगर तरीका नजर आता है। देखा यह गया है कि अक्सर कोविड के मरीजों की गंभीर स्थिति इसलिए हो जाती है, क्योंकि उनके शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कोरोना वायरस के खिलाफ इतने ज्यादा आक्रामक तरीके से हमला करता है कि उससे मरीज के फेफड़ों की कोशिकाएं ही क्षत-विक्षत हो जाती ंहैं, यानी कोरोना वायरस से ज्यादा नुकसान शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र करता है। ऐसा कई वायरल संक्रमणों में होता है। एच1एन1 वायरस से होने वाले इन्फ्लुएंजा में लगभग 80 प्रतिशत गंभीर मामले इसी वजह से होते हैं। यही कारण है, सौ बरस पहले स्पेनिश फ्लू से मरने वालों में ज्यादातर नौजवान थे। नौजवानों का रोग प्रतिरक्षा तंत्र ज्यादा मजबूत होता है, इसलिए उनके प्रतिरक्षा तंत्र ने ज्यादा नुकसान किया। कोविड में इस प्रक्रिया के बारे में ठीक-ठीक पता नहीं है, लेकिन यह प्रमाणित है कि प्रतिरक्षा तंत्र को दबाने वाली कॉर्टिकोस्टेरॉइड व अन्य दवाएं गंभीर मरीजों में काफी कारगर साबित हुई हैं। प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़ी बीमारियों में उपयोगी दवाएं जैसे टॉकलिजुमाब का भी गंभीर बीमारी में उपयोग किया जा रहा है और उसके नतीजे भी काफी अच्छे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन अब जिन तीन दवाओं, इमेटिनिब, आर्टेस्युनेट और इन्फ्लिक्सिमैब का परीक्षण कर रहा है, वे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर काम करती हैं। हम जानते हैं कि डेक्सामेथासॉन जैसे स्टेराइड और टॉकलिजुमाब जैसी दवाएं कारगर तो हैं, लेकिन सारे मरीजों में इनका एक सा असर नहीं देखने में आता। कुछ मरीजों को इन दवाओं से फायदा होता है, तो कुछ को बिल्कुल नहीं होता। अब कोशिश यह है कि इसी किस्म की कुछ अन्य दवाएं खोजी जाएं, जिनके प्रभाव का दायरा ज्यादा हो और जिनसे ज्यादा मरीजों को निश्चित रूप से लाभ मिल सके। जाहिर है, कोरोना की रोकथाम की दूरगामी रणनीति का आधार तो वैक्सीन ही हो सकता है, लेकिन जब रोग की लहर चल रही हो, तब उनमें से करीब चार-पांच प्रतिशत लोग गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं। इन लोगों के लिए प्रभावी इलाज खोजने की कोशिशें बहुत महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद है कि यह कोशिश जल्दी कामयाब होगी।


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