सम्पादकीय

द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धि, इसका होगा राष्ट्रव्यापी प्रभाव

Gulabi Jagat
26 July 2022 5:25 PM GMT
द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धि, इसका होगा राष्ट्रव्यापी प्रभाव
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द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति
हृदयनारायण दीक्षित : भारतीय गणतंत्र उल्लास में है। वंचित वर्ग की महिला द्रौपदी मुर्मु राष्ट्रपति पद पर आसीन हो गई हैं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष की यह बड़ी उपलब्धि है। राष्ट्रजीवन में उल्लास के ऐसे अवसर कम आते है। यहां प्रेरणा, आशा और आत्मविश्वास एक साथ मिलकर सौभाग्य बन रहे हैं। मुर्मु का राष्ट्रपति होना भारतीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का संवर्धक है। नियति ने उन्हें अनेक दुख दिए। उन्होंने पति की असामयिक मृत्यु का दुख झेला। मां के निधन का दुख सहा। दो पुत्र खोए। एक भाई के निधन का भी दुख उठाया। फिर भी वह नहीं टूटीं। उन्होंने अपने पुरुषार्थ के दम पर नियति का सामना किया।
नियति और पुरुषार्थ का द्वंद्व पुराना है। वाल्मीकि ने रामायण में दोनों का चित्रण किया है। श्रीराम के वनवास पर लक्ष्मण क्रोधित थे। श्रीराम ने कहा कि इसमें किसी का दोष नहीं और सारा खेल नियति का है। फिर राम-रावण युद्ध हुआ। रावण मारा गया। श्रीराम ने कहा, 'मैंने नियति को पुरुषार्थ से जीता है। रावण को मार दिया है।' मुर्मु ने भी नियति से टकराते हुए पुरुषार्थ जारी रखा। आत्मविश्वास नहीं खोया। उनका राष्ट्रपति होना करोड़ों वंचितों और नारी शक्ति के लिए प्रेरणादायी है।
भारतीय समाज वर्गों-जातियों में विभाजित रहा है। जातियां जन्मना हैं। सम्मान और अपमान जाति आधारित भी रहे हैं। वंचित समुदायों में निराशा रही है। निराश व्यक्ति या समाज में आत्मविश्वास नहीं होता। उनमें आत्मविश्वास का जागरण आसान नही होता। गांधी, आंबेडकर, फुले और लोहिया आदि तमाम महानुभावों ने सचेत भाव से वंचितों के लिए काम किया। तमाम लोग प्रेरित हुए। बहुत कुछ बदला भी, लेकिन वंचित वनवासी समुदायों में आशा, उत्साह और उमंग का संचार नहीं हुआ। वे अपने बीच से किसी को प्रतिष्ठित होते देखकर प्रसन्न होते हैं। वे सोचते हैं कि हमारे समाज का ही कोई परिश्रमपूर्वक उच्च पदस्थ हुआ है तो हम भी क्यों नही हो सकते? ऐसे उदाहरण निराशा घटाते हैं। आशा बढ़ाते हैं। आशा भविष्य के प्रति विश्वास है। छांदोग्य उपनिषद में सनत कुमार व्यथित नारद से कहते हैं, 'अप्राप्त वस्तु की इच्छा का नाम आशा है। आशा से दीप्त स्मरण सतत कर्म करता है। तुम आशा की उपासना करो।' मुर्मु का राष्ट्रपति होना समूचे देश के लिए आशा और उमंग से भरी-पूरी प्रेरणा है।
प्रेरणा के तत्व सर्वत्र हैं। राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में असाधारण काम वाले साधारण कार्यकर्ता प्रेरित करते हैं। स्टीफन हाकिंग शत प्रतिशत दिव्यांग थे। उन्होंने ब्रह्मांड भौतिकी पर अद्भुत काम किया। दिव्यांगता के बावजूद ऐसा काम विश्व में अनूठा है। समाज सेवा, पर्यावरण, कला, साहित्य, जल संरक्षण, वन संरक्षण और राजनीति के क्षेत्र में अनेक प्रेरक महानुभाव हैं। अनेक इतिहास की गति में भी हस्तक्षेप करते रहे हैं। वे समाज को नया दृष्टिकोण देते हैं। मुर्मु ने परिश्रम किया। अध्ययन किया। अध्यापन किया। समाज सेवा की। उन्होने अनुसूचित जनजाति के विशाल जनसमुदाय को प्रभावित किया। उनका राष्ट्रपति बनना समस्त भारत के वंचित समूहों के लिए प्रेरणादायी है। इस प्रेरणा का राष्ट्रव्यापी प्रभाव होगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। राष्ट्रपति यहां सर्वोच्च पद है। संविधान सभा में इस पद को लेकर दिलचस्प चर्चा हुई थी। महावीर त्यागी ने कहा था, 'उसे सबके आदर का पात्र होना चाहिए। पं. नेहरू ने राष्ट्रपति के पांच वर्षीय कार्यकाल और चुनाव प्रविधान का प्रस्ताव रखा। बिहार के राम नारायण सिंह ने गैर-राजनीतिक राष्ट्रपति का प्रश्न उठाया। दलतंत्र पर कठोर टिप्पणी की। एमए अड़े ने कहा, 'पद पर आने के पहले आप किसी व्यक्ति से निर्दल होने की आशा नही कर सकते।' लक्ष्मीकांत मैत्र ने कहा, 'उसकी निष्ठा और भक्ति सिर्फ राष्ट्र में होनी चाहिए।' एमए आयंगर ने कहा, 'ऐसा व्यक्ति शायद ही मिले।' द्रौपदी मुर्मु पूरे राष्ट्र की पसंद हैं। इसीलिए अनेक मतदाताओं ने उनकी जीत के लिए दलीय सीमा तोड़ी है।
राष्ट्रपति के आसन पर अनुसूचित जाति के नारायणन और कोविन्द भी अपना कर्तव्य निर्वहन कर चुके हैं। कुछ टिप्पणीकारों ने उनके पदारूढ़ होने पर दलितों के लाभ-हानि का प्रश्न उठाया था। उन्हें राष्ट्रपति के अधिकार-कर्तव्य एवं शपथ को ध्यान से पढ़ना चाहिए। शपथ में कहा गया है कि, 'मैं श्रद्धापूर्वक राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा। पूरी योग्यता से संविधान का परिरक्षण एवं संरक्षण करूंगा। मै भारत की जनता की सेवा और कल्याण में रत रहूंगा।' क्या राष्ट्रपति से हम किसी जाति संप्रदाय के पक्ष में आंदोलन जैसे संविधानेत्तर काम की आशा कर सकते हैं? संविधान में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के लिए आयोग हैं। विधानमंडलों में आरक्षण सहित तमाम रक्षोपाय हैं।
अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रपति के पद पर मुर्मु का आसीन होना प्रेरक है। इससे वंचितों के चित्त में भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के प्रति भरोसा बढ़ा है कि इस व्यवस्था में हमारा भी साझा है। इस व्यवस्था के शिखर पर हमारे घर-परिवार की महिला विराजमान है। सर्वोच्च पद भी हमारे समुदाय के लिए उपलब्ध हैं। मुर्मु का राष्ट्रपति होना प्रेरणा है। प्रेरणा से बढ़ा आत्मविश्वास और नवजागरण वंचितों के लिए बड़ी उपलब्धि है। प्रेरणा प्रकृति का प्रसाद है और मानवता का भी। प्राचीन ऋषि नदी प्रवाह से प्रेरित थे। सूर्य, पृथ्वी से प्रेरणा लेते थे। ऐतरेय ऋषि प्रकृति की गतिशीलता से प्रेरित थे, 'नदियां बहती चलती हैं। मधुमक्खियां चलते हुए मधु का सेवन करती हैं। इसलिए चलते रहो।' शुभ कर्म करने वाले प्रेरित करते हैं।
विख्यात गायत्री मंत्र में ऋषि की प्रार्थना है, 'सविता सूर्य हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।' प्रेरित करने वाले बिना प्रकाशित हुए भी प्रेरणा देते हैं। उनकी उपस्थिति मात्र पर्याप्त है। महिला सशक्तीकरण मोदी सरकार का मुख्य एजेंडा है। मुर्मु का राष्ट्रपति बनना इस मुहिम को और गति देगा। कुछ यूरोपीय और अमेरिकी विद्वान भारत में महिलाओं की कथित उपेक्षा पर विलाप करते हैं। जबकि महिलाएं यहां राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिष्ठित हैं। मुर्मु के व्यक्तित्व में आदिवासी और महिला सशक्तीकरण का साम्य एवं सुसंगति है। उनके पदारूढ़ होने मात्र से प्रेरणा का नया परिवेश बना है। यह 2022 का नया भारत है। सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास संवर्धन की प्रेरणा तथा आत्मविश्वास से भरा-पूरा भारत।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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