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
दिव्याहिमाचल.
आठ साल चला अदालत का हथौड़ा एकदम भरभरा गया, जब हाई कोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियों को खारिज कर दिया। यह चयन प्रक्रिया की खामियों और अनावश्यक दखल की ओर इशारा नहीं, बल्कि कानून की परिधि में न्याय की विडंबना भी है कि जो दो जज आठ साल तक फैसले सुनाते रहे, वे खुद कानून की परिभाषा में आ गए। प्रदेश लोक सेवा आयोग की पद्धति व प्रक्रिया के कारण चयन की परिणति धराशाही हुई है। बिना विज्ञापन के हुई नियुक्तियों में एक पूर्व परीक्षा की चयन सूची का इस्तेमाल गैर कानूनी होने के साथ-साथ व्यवस्थागत नाइनसाफी भी है। यहां मानवीय अदालत ने मामले के कुंड से न केवल प्रक्रिया की खामी, संदेह की परत और चयन की मिलीभगत हटाई, बल्कि यह संदेश भी दिया कि गलत तरीके से किसी सेवा में आया बड़े से बड़ा व्यक्ति भी अक्षम्य है। मामला 2013 का है, जब विज्ञापित पदों के लिए आठ नियुक्तियां हुईं। इनमें से छह रिक्त पद थे, जबकि दो अन्य रिक्त होने वाले थे। आगे चलकर दो अतिरिक्त पदों के लिए भी रिक्तियां खड़ी होती हैं, लेकिन इन्हें बिना विज्ञापन और पुरानी चयन सूची के आधार पर ही भर लिया जाता है।