सम्पादकीय

चीन पर 'मानवाधिकार' रक्षकों का दोहरा मापदंड : उइगर मुस्लिमों से ज्यादती पर चुप्पी की क्या है वजह

Neha Dani
11 Sep 2022 1:49 AM GMT
चीन पर मानवाधिकार रक्षकों का दोहरा मापदंड : उइगर मुस्लिमों से ज्यादती पर चुप्पी की क्या है वजह
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आखिर इस दोहरे मापदंड का कारण क्या है?

यूं तो संसार में ढेरों आश्चर्य हैं। इसी में से एक चीन से संबंधित है, जहां के शिनजियांग प्रांत में सवा करोड़ उइगर मुसलमानों के खिलाफ मजहब के नाम पर राजकीय दमन चरम पर है और इस्लाम के ठेकेदार देश इस पर न केवल चुप हैं, अपितु चीन के सहयोगी भी बने हुए हैं। इसमें चीन का सबसे विश्वासी मित्र या यूं कहे कि दुमछल्ला देश— पाकिस्तान भी शामिल है, जिसका अस्तित्व ही पिछले 75 वर्षों से इस्लामी अवधारणा पर टिका हुआ है।




यह वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं कि जिस प्रकार भारत में नूपुर शर्मा के कुछ सेकंड के वीडियो से वैश्विक मुस्लिम समाज की भावना एकाएक आहत हो गई थी, वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की हालिया चीन संबंधित मुस्लिम विरोधी रिपोर्ट पर न तो आंदोलित हैं और न ही चीन के खिलाफ भारतीय उपमहाद्वीप की सड़कों पर 'सर तन से जुदा' जैसे विषाक्त नारों का उद्घोष हो रहा है।


अपने चार वर्ष के कार्यकाल खत्म करने के कुछ मिनट पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की आयुक्त मिशेल बैचलेट ने बहुप्रतिक्षित रिपोर्ट 31 अगस्त को जारी कर दिया। आखिर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में ऐसा क्या है, जिस पर चीन बौखला रहा है? रिपोर्ट में चीन पर 'मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन' का आरोप लगाया गया है। इसमें विश्वसनीय साक्ष्य मिलने की बात की गई है, जिससे सिद्ध होता है कि शिनजियांग में 'मानवता के खिलाफ अपराध' हो रहा है, जिसमें यौन शोषण और नसबंदी जैसी बातें भी शामिल हैं।

इसमें कहा गया है कि चीन ने शिनजियांग में रहने वाले उइगर मुस्लिम के खिलाफ हर स्तर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हुए क्रूरता की हदों को पार कर दिया है। मुस्लिमों को बंदीगृह/नजरबंदी केंद्रों में तरह-तरह की प्रताड़नाएं दी जाती हैं। जबरन नसबंदी के कारण वर्ष 2017 से 2019 के बीच जन्म दर में 48.7 फीसदी की गिरावट आई है। चीन किस प्रकार विशुद्ध इस्लाम-विरोधी कार्रवाइयों में लिप्त है, उसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि इस्लामी मान्यताओं और अभिव्यक्तियों पर प्रतिबंध के साथ शिनजियांग में आतंकवाद-अलगाववाद रोधी 'स्ट्राइक-हार्ड' अभियान के अंतर्गत मस्जिदों और कब्रिस्तानों तक को जमींदोज किया जा रहा है।

चीन में कुल मस्जिदों की संख्या 35,000 है, जिसमें अकेले 20,000 शिनजियांग में स्थित हैं। इसी वर्ष 12-15 जुलाई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिनके कार्यकाल में चीन में इस्लाम विरोधी गतिविधियां बढ़ी है— उन्होंने शिनजियांग का दौरा किया था। तब शी ने स्थानीय मुसलमानों को धमकाते हुए बता दिया था कि चीन में इस्लाम का स्वरूप कैसा होना चाहिए। चीनी राष्ट्रपति के अनुसार, '...चीन में इस्लाम को चीनी होना चाहिए...।' इस वक्तव्य का सत्व यह है कि यदि चीन में मुस्लिमों को रहना है, तो उन्हें चीनी परंपरा और मार्क्सवादी व्यवस्था के अधीन ही रहना होगा।

वास्तव में, शिनजियांग में चीन का मुस्लिम विरोधी आचरण उसके अपने राजनीतिक-वैचारिक अधिष्ठान के अनुरूप ही है, क्योंकि वामपंथी विचारधारा के केंद्र में ही हिंसा, अनिश्वरवाद और मानवाधिकारों का दमन है। तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं का सांस्कृतिक संहार— इसका अन्य प्रमाण है। चीन की तुलना में भारत में सभी अल्पसंख्यकों (मुस्लिम सहित) को समान अधिकार, तो कई मामलों में बहुसंख्यकों से अधिक सुविधा प्राप्त है। फिर भी यहां मुस्लिम समाज में 'असुरक्षा की भावना' का राग अलापा जाता है।

गत दिनों असम में राज्य सरकार ने उन मदरसों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें ढहा दिया और तीन दर्जन लोगों (मौलवी सहित) की गिरफ्तारियां की, जो नौनिहालों को जिहाद का पाठ पढ़ाने में लिप्त थे। वहीं उत्तर प्रदेश स्थित मदरसों में शिक्षा की बेहतर व्यवस्था करने हेतु सर्वेक्षण कराया जा रहा है। अब इन दोनों घटनाओं को देश में स्वघोषित सेक्यूलरवादी, वामपंथी और स्वयंभू मुस्लिम जनप्रतिनिधियों का कुनबा 'इस्लामोफोबिया' और 'मुस्लिम-विरोधी' बता रहे है।

यदि यह सभी विषय वाकई 'इस्लामोफोबिया', 'पैगंबर साहब-कुरान के अपमान' का है, तो चीन के शिनजियांग में मुस्लिम-इस्लाम विरोधी हरकतों पर इनकी 'उम्माह' भावना क्यों आहत नहीं होती? इस वर्ष 22-23 मार्च को जब पाकिस्तान में 'इस्लामिक सहयोग संगठन' (ओआईसी) की बैठक हुई, जिसमें अक्सर कश्मीर-फिलीस्तीन पर अवांछनीय-अनावश्यक प्रस्तावों को पारित किया जाता है— तब उसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी को विशेष आमंत्रित किया गया था। यह विरोधाभास केवल यही तक सीमित नहीं।

इस्लाम में सऊदी अरब का विशेष स्थान है। वहां बदलती दुनिया के बीच आधुनिक जीवन मूल्यों के साथ इस्लाम को अनुकूल बनाने और तालमेल बैठाने के लिए बीते पांच वर्षों से उदारवादी परिवर्तन किए जा रहे हैं। इसका वैश्विक मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध भी किया जा रहा है- इसमें पाकिस्तान और भारत में मुस्लिम समाज का एक वर्ग भी है। यह चमत्कार ही है कि वह समूह भी चीन के खिलाफ चुप है। आखिर इस दोहरे मापदंड का कारण क्या है?

सोर्स: अमर उजाला


सोर्स: अमर उजाला

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