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- आतंकवाद पर दोहरा रुख
नवभारत टाइम्स: चीन ने इस सप्ताह एक बार फिर पाकिस्तान से जुड़े एक आतंकवादी को संयुक्त राष्ट्र में ब्लैकलिस्ट करने का प्रस्ताव अटका दिया। इस बार मामला पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साजिद मीर का है, जो 2008 के मुंबई हमले के सिलसिले में भारत के मोस्ट वांटेड आतंकियों में शुमार है। लेकिन बात सिर्फ भारत की नहीं है। डेनमार्क के अखबार पर हुए आतंकी हमले सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में वह शामिल रहा है। न केवल अमेरिका उसके सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित कर चुका है बल्कि खुद पाकिस्तान की अदालत भी उसे आठ साल कैद की सजा सुना चुकी है। आजकल वह पाकिस्तान की एक जेल में यही सजा काट रहा है।
मजे की बात है कि उसे गिरफ्तार करने और अदालत द्वारा जेल की सजा दिए जाने की पुष्टि करने से पहले पाकिस्तान सरकार ने यह दावा किया था कि वह मर चुका है। मगर पश्चिमी देशों ने इस दावे को ज्यों का त्यों स्वीकार करने के बजाय पाकिस्तान से ऐसे सबूत पेश करने को कहा, जिससे यह बात असंदिग्ध रूप से मानी जा सके कि साजिद मीर मर चुका है। ऐसे सबूत नहीं पेश किए जा सके और पाकिस्तान पेरिस स्थित फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से बाहर आने को बेकरार है। इसलिए साजिद मीर की मौत पर उसका यू-टर्न समझा जा सकता है। लेकिन यहां मुख्य सवाल चीन के रवैये का है।
सबकुछ जानते हुए भी चीन लगातार आतंकियों को ब्लैकलिस्ट करने की कोशिशों में बाधा डाल रहा है। पिछले चार महीने में यह तीसरा मौका है, जब चीन ने संयुक्त राष्ट्र में ऐसे प्रस्ताव को रुकवा दिया। पिछले महीने उसने जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर के भाई और इस आतंकी संगठन के एक सीनियर लीडर अब्दुल रऊफ अजहर को ब्लैकलिस्ट करने का प्रस्ताव अटकाया था तो उससे पहले जून महीने में लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की को ब्लैकलिस्ट होने से बचाया था। जाहिर है, आतंकवाद जैसे मसले पर चीन का इस तरह का रवैया गंभीर सवाल खड़े करता है, लेकिन इस बार का मामला एक और वजह से विशेष हो गया है।
पिछले सप्ताह ही उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ देशों की शिखर बैठक में अन्य नेताओं के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी मौजूद थे। इन सबकी उपस्थिति में आतंकवाद के खिलाफ मिलजुलकर आगे बढ़ने और एससीओ देशों की एक विशेष लिस्ट बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह जोर देकर कहा गया कि एससीओ का हरेक सदस्य राष्ट्र इस प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत है। सवाल यह है कि अगर इस तरह से सहमति देने के बाद चीन ने संयुक्त राष्ट्र में एकदम उलटा रवैया अपनाया तो फिर यह कैसे माना जाए कि एससीओ शिखर बैठक में जताई गई उसकी प्रतिबद्धता सच्ची है।