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Written by जनसत्ता: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने आने वाले दिनों में भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने का जो संकेत दिया है, उसे एक चेतावनी के रूप में देखने की जरूरत है। इस वैश्विक वित्तीय संस्थान की प्रमुख क्रिस्टलीना जार्जीवा ने साफ कहा है कि रूस-यूक्रेन की जंग के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, वह चिंता की बात है और भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़े बिना नहीं रहेगा।
महंगे होते कच्चे तेल पर वैसे तो सरकार भी नजर रखे हुए है। पिछले दिनों कुछेक मौकों पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस पर चिंता जाहिर कर चुकी हैं। उन्होंने कहा भी कि कच्चे तेल के बढ़ते दाम अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। वित्त मंत्री की इस चिंता से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमें आने वाले दिनों में किस तरह के संकट का सामना करना पड़ सकता है और इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल एक सौ चालीस डालर प्रति बैरल के करीब आ चुका है। इस क्षेत्र से जुड़ी वैश्विक कंपनियां इसके डेढ़ सौ डालर प्रति बैरल तक जाने की बात पहले ही कह चुकी हैं।
गौरतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी समय से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। कोरोना महामारी के दो सालों में तो विकास दर शून्य से नीचे चली गई थी। हालांकि अर्थव्यवस्था का संकट 2017 से ही दिख रहा था और आर्थिक वृद्धि दर लगातार नीचे आ रही थी। पर महामारी के दौरान जिस तरह के हालात बन गए थे, उन्हें देखते हुए विकास दर सामान्य होने में अभी भी लंबा वक्त लग सकता है। अर्थशास्त्रियों की राय भी इससे अलग नहीं है। साल 2020 में तो आर्थिक गतिविधियां एक तरह से ठप ही रही थीं।
हालांकि अब जब स्थितियां पटरी पर आना शुरू ही हुईं थीं कि रूस-यूक्रेन संकट खड़ा हो गया। वैसे जीडीपी वृद्धि के अनुमानों को लेकर वैश्विक वित्तीय संस्थान और रेटिंग एजंसियां अभी भी बहुत ज्यादा उत्साहित लग नहीं रही हैं। दो महीने पहले तक जो अनुमान लगाए जा रहे थे, अब उन्हें लेकर संशय दिखने लगे हैं। इसका बड़ा कारण रूस-यूक्रेन की जंग से कच्चे तेल में तेजी का रुख बनना है। कोई नहीं जानता कि जंग कब थमेगी और कच्चा तेल कब नीचे आना शुरू होगा!
हमारा संकट यह है कि कच्चे तेल के मामले में हम दूसरे देशों पर निर्भर हैं। भारत अपनी जरूरत का पचासी फीसद तेल दूसरे देशों से खरीदता है। इनमें रूस भी है। हालांकि आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रूस ने भारत को काफी सस्ता तेल देने की पेशकश की है। लेकिन सिर्फ इसी से काम नहीं चलने वाला। हम जिन दूसरे देशों से तेल खरीदते हैं, वे तो सस्ता देने से रहे।
जाहिर है, वैश्विक बाजार की तेजी का तेल आयात पर असर पड़ेगा। इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी प्रभावित होगा। वैसे भी चुनावों के मद्देनजर तेल कंपनियों ने पिछले साढ़े तीन महीने से पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं। पर अब तो चुनाव नतीजे आ चुके हैं और तेल कंपनियां कभी भी दाम बढ़ा सकती हैं। पेट्रोल-डीजल महंगा होते ही महंगाई और बढ़ेगी। चिंता की बात यह है कि महंगाई दर पहले ही काफी ऊंची बनी हुई है। ऐसे में सरकार के सामने दोहरी चुनौती है। महंगा तेल भी खरीदना है और महंगाई का भी सामना करना है।