सम्पादकीय

भारतीय सेना में लड़कियों के लिए अफसर बनने के दरवाज़े खुलने लगे हैं

Gulabi Jagat
16 March 2022 7:38 AM GMT
भारतीय सेना में लड़कियों के लिए अफसर बनने के दरवाज़े खुलने लगे हैं
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इसके लिए कॉलेज ने खुद को तैयार कर लिया है भले ही इसकी शुरुआत 5 छात्राओं के दाखिले से हो रही हो
संजय वोहरा।
ये अदालत का डंडा चलने से हुआ हो या सेना के मामले में सरकार को सलाह देने वाले विशेषज्ञों की सोच में आए बदलाव की वजह से, भारतीय सेना में महिलाओं (Women In indian Army) के स्वागत में अब दरवाज़े खुलने तो शुरू हो गए हैं. अच्छी बात ये है कि अब तक इस मामले पर ख़ामोशी अख्तियार किए रखने वाले फौजी गलियारों में भी सकारात्मक बातें की और करवाई जाने लगीं हैं. भारतीय सेना (Indian Army) के विभिन्न अंगों को कई चीफ, कमांडर और बड़े अफसर दे चुकी 100 साल पुरानी सेना की नर्सरी राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज (Rashtriya Indian Military College) ने भी लड़कियों को दाखिला देना स्वीकार कर, उन्हें सेना में जाने के काबिल बनाने की तैयारी कर ली है. इसके लिए कॉलेज ने खुद को तैयार कर लिया है भले ही इसकी शुरुआत 5 छात्राओं के दाखिले से हो रही हो.
भारत के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे का इस पहल का स्वागत करते हुए ये कहना कि यहां छात्राओं का दाखिला 'शताब्दी का क्षण होगा' और उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गुरमीत सिंह का इसे बदलाव लाने वाला कदम बताना काफी हद तक हालात स्पष्ट कर देता है. यही नहीं जनरल गुरमीत सिंह ने तो 5 कैडेट लड़कियों के होने वाले दाखिले की तुलना गुरु गोबिंद सिंह के उन पंज प्यारों से कर दी जो सिख सेना के प्रतीक हैं और जो एक तरह से शानदार पहल करने की पहचान रखते हैं.
अपने आप में अनूठा और ख़ास देहरादून स्थित राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज (RIMC) एक ऐसा संस्थान है जिसका जितना शानदार इतिहास है उतना ही दिलचस्प भी. 13 मार्च 1922 को ब्रिटिश हुकूमत के दौरान स्थापित राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज भले ही अब लड़कियों की भर्ती ऐलानिया तरीके से कर रहा हो, लेकिन इसमें कई साल पहले भी एक महिला कैडेट रही. आरआईएमसी से पढ़कर सेना में अधिकारी बनने वाली स्वर्णिमा थपलियाल के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. ये 1992 की बात है यानि इस कॉलेज के तब तक के 70 के इतिहास में दाखिला लेने वाली स्वर्णिमा पहली लड़की थी. वो यहीं के ही एक फैकल्टी मेंबर की बेटी थी और सेना में मेजर भी बनी.
सेना में महिलाएं
महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन, सेना में अग्रिम मोर्चे पर महिला अफसरों की तैनाती, एनडीए में महिलाओं के दाखिले जैसे मामलों पर न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर सख्त रुख अख्तियार करने के बाद भारत सरकार ने सेना में महिलाओं के लिए जगह बनानी धीरे-धीरे शुरू कर ही दी है. अदालत में दिए हलफनामे के मुताबिक सरकार ने अपने कथन को अमल में लाने की कवायद शुरू की है.

RIMC के शताब्दी कार्यक्रम में उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गुरमीत सिंह ने परेड का निरीक्षण किया.

केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट को दिए एफिडेविट में कहा था कि एनडीए ही नहीं बल्कि आरआईएमसी और उन अन्य राष्ट्रीय सैन्य स्कूलों में भी लड़कियों का दाखिला किया जाएगा जहां लड़कों को दाखिल किया जाता है. शुरुआत में यहां कम संख्या होगी, लेकिन समयबद्ध तरीके से यहां ढांचागत बदलाव करते हुए लड़कियों के लिए सीटें बढ़ाई जाएंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2021 को अपने सम्बोधन में कहा था कि अब सैनिक स्कूलों के दरवाजे लड़कियों के लिए भी खुलेंगे.
देहरादून का राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज
आरआईएमएस का उद्घाटन 13 मार्च 1992 को प्रिंस ऑफ़ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिटरी कॉलेज के तौर पर हुआ था. यहां की कुछ इमारतें तो 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं लेकिन आज भी भली चंगी हालत में हैं, जिनमें तमाम गतिविधियां होती हैं. और तो और कोरोना वायरस संक्रमण से हुई वैश्विक महामारी के भयानक दौर के बीच भी आरआईएमएस पूरी तरह सुचारू रूप से चलता रहा. सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने इसके लिए कॉलेज प्रबंधन की खूब तारीफ़ भी की है. इस कॉलेज ने भारत को चार सेनाध्यक्ष और 2 वायु सेना प्रमुख तो दिए ही, यहीं के कैडेट्स में से 4 पाकिस्तान की थल सेना के कमांडर इन चीफ और 2 चीफ ऑफ़ एयर स्टाफ भी बने.
प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिटरी कॉलेज का पहला बैच.
अंग्रेजों का इस कॉलेज को बनाने के पीछे मकसद इंग्लैंड के सैंड्हर्स्ट स्थित रॉयल मिलिटरी कॉलेज में दाखिला लेने वाले भारतीय नौजवानों का पास प्रतिशत बढ़ाना था. ब्रिटिश सेना के अफसरों का मानना था सेना में अफसर बनने के लिए भारतीय लड़कों के लिए इंग्लैंड आकर पढ़ना नामुमकिन है, तो पब्लिक स्कूल शिक्षा भारत में ही दी जाए. लिहाज़ा प्रिंस ऑफ़ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिटरी कॉलेज से पढ़े लड़के सेना का प्रशिक्षण पाकर वे अधिकारी बनने के लिए सैंड्हर्स्ट भजे जाते थे.
कॉलेज की विशेषता
हिमालय की तलहटी में दून घाटी में छावनी इलाके में 137 एकड़ वर्गक्षेत्र में फैला राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज का परिसर एक लघु भारत का नज़ारा पेश करता है, जहां में साल में दो बार (जनवरी और जुलाई) में दाखिला होता है. पूरे भारत में प्रवेश परीक्षा के जरिए हर बार तकरीबन 25 छात्र चुने जाते हैं. औसतन हरेक राज्य से एक. कुछ बड़े राज्यों के लिए ये संख्या 2 भी होती है. यहां 8वीं से 12वीं तक की पढ़ाई होती है. दाखिले के लिए कम से कम उम्र साढ़े 11 साल है. यहां पढ़ाई के लिए हमेशा से जहां आधुनिकतम तकनीक अपनाई जाती रही है, बल्कि खेल कूद के मामले में भी इस कॉलेज ने अपना विशेष स्थान बनाया है. और तो और यहां पर 50 मीटर का ओलंपिक साइज़ का स्विमिंग पूल तक है. कुल मिलाकर यहां एक बार में 250 कैडेट्स होते हैं. कॉलेज का प्रमुख एक कर्नल रैंक का अधिकारी होता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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