सम्पादकीय

मौका निकल न जाए

Subhi
9 May 2022 3:49 AM GMT
मौका निकल न जाए
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नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के पांचवें दौर की रिपोर्ट (एनएफएचएस-5) के मुताबिक देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) यानी प्रति महिला बच्चों के जन्म की संख्या दो पर आ गई है।

नवभारत टाइम्स: नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के पांचवें दौर की रिपोर्ट (एनएफएचएस-5) के मुताबिक देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) यानी प्रति महिला बच्चों के जन्म की संख्या दो पर आ गई है। 2015-16 में टीएफआर 2.2 थी। ध्यान रहे आबादी में बढ़ोतरी की रफ्तार को संतुलित बनाए रखने के लिए प्रति महिला औसत जन्म दर 2.1 होनी चाहिए। मुस्लिमों के लिए भी यह गिरकर 2.36 आ गई है और एनएचएफएस-4 से एनएफएचएस-5 के बीच सबसे तेज गिरावट इसी समुदाय में आई है। यह बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि इसका राजनीतिक मुद्दे के तौर पर इस्तेमाल होता आया है।

खैर, प्रति महिला औसत जन्म दर के 2 तक आ जाने का मतलब है कि देश की जनसंख्या जितनी है, उतनी बनी रहने के लिए जरूरी जन्मदर भी नहीं रही। इसका पहला प्रत्यक्ष परिणाम यह होगा कि कुछ वर्षों में हमारी आबादी में युवा और कामकाजी लोगों का अनुपात कम होने लगेगा। अभी हमारी करीब 64 फीसदी आबादी कामकाज के लायक है। अगले दस वर्षों में यह प्रतिशत बढ़कर 65 हो जाएगा। लेकिन इसके बाद इसमें गिरावट आनी शुरू हो जाएगी। इसे औसत उम्र के जरिए समझने की कोशिश करें तो भारत में अभी औसत उम्र 28 वर्ष है। 2026 तक यह बढ़कर 30 वर्ष और 2036 तक 35 वर्ष हो जाएगी।

साफ है कि यंग नेशन के रूप में हमें जो भी उपलब्धियां हासिल करनी हैं, उसके लिए हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। हमने 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह लक्ष्य हासिल कर लें तो भी हमारी प्रति व्यक्ति जीडीपी रैंक 190 देशों में 135 के आसपास रहेगी। जाहिर है, देशवासियों के जीवन में खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए मिडल इनकम ट्रैप से निकलने की जरूरत है। मिडल इनकम ट्रैप का मतलब देश की प्रति व्यक्ति आय का ऐसे स्तर पर ठहर जाना होता है, जहां वह न तो ज्यादा गरीब हो और न उसकी कमाई में खास बढ़ोतरी की गुंजाइश हो। इस ट्रैप से निकलने में पहली बड़ी दिक्कत यह है कि देश में जो भी उपलब्ध संसाधन हैं, आबादी का बड़ा हिस्सा उनसे वंचित है।

वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत में दस फीसदी आबादी के पास 65 फीसदी संसाधन हैं। मतलब 90 फीसदी लोग सिर्फ 35 फीसदी संसाधनों के बूते काम चला रहे हैं। स्वाभाविक ही व्यापक आबादी के लिए उपलब्ध अवसर भी इसी अनुपात में कम हो जाते हैं। दूसरी दिक्कत बेरोजगारी की है। स्किल्ड युवाओं की कमी के चलते हम अपनी कामकाज लायक आबादी का उपयुक्त इस्तेमाल नहीं कर पाते। पीरियॉडिक लेबर फोर्स 2019-20 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 15 साल से ऊपर के लगभग 97 फीसदी लोगों ने कोई तकनीकी पढ़ाई नहीं की है। मगर अभी भी देर नहीं हुई है। इससे पहले कि मौका हाथ से पूरी तरह निकल जाए, सरकार को स्किल डिवेलपमेंट और एम्प्लॉयमेंट जेनरेशन पर ज्यादा से ज्यादा जोर देकर युवा आबादी का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल कर लेना चाहिए।


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