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- मजदूर को मत मारो

दिव्याहिमाचल.
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा 'लक्षित हत्याओं' के मौजूदा मंजर में प्रवासी मज़दूरों का पलायन जारी है। ये मज़दूर उप्र और बिहार से कश्मीर में बीते कई सालों से आ रहे हैं। घाटी में कुछ स्थानों को तो 'प्रवासियों का घर' कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर का ज्यादातर श्रम इन्हीं मज़दूरों के सहारे है। सेब के बागीचों, खेतों, कोल्ड स्टोरेज से लेकर निर्माण-कार्यों और फर्नीचर के उद्योग में वे ही श्रम की बुनियाद हैं। ईंट, सीमेंट ढोने से लेकर सेब की पेटियों की पैकिंग और लोडिंग प्रवासी मज़दूर ही करते रहे हैं। वे कश्मीर ही नहीं, देश की मौजूदा और भावी अर्थव्यवस्था को आकार और आधार देने वाले हैं। उन्हें गोलियों से मत मारो! उन्हें तुम्हारे जेहाद से कोई सरोकार नहीं है!! वे किसी के भी दुश्मन नहीं हैं! उन्हें तो गले से लगाओ, नहीं तो पूरा कश्मीर थम जाएगा। अर्थव्यवस्था स्थिर और विकासहीन हो जाएगी। आर्थिक गतिविधियां ठिठक जाएंगी। यदि पलायन के बाद मज़दूर लौट कर घाटी में नहीं आए, तो समूचे जम्मू-कश्मीर की आर्थिक हालत क्या होगी, कल्पना भी नहीं की जा सकती। मज़दूर का काम मज़दूर ही कर सकता है, कोई आतंकी, अलगाववादी, अमीर या उद्योगपति नहीं कर सकता।
