सम्पादकीय

बेकाबू न हों आंतरिक विवाद

Subhi
25 Nov 2022 4:10 AM GMT
बेकाबू न हों आंतरिक विवाद
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असम और मेघालय सीमा पर मंगलवार को छह लोगों के मारे जाने के बाद एक बार फिर दोनों राज्यों के बीच का सीमा विवाद सुर्खियों में आ गया है। यह घटना ऐसे समय हुई है, जब कुछ ही दिन बाद, इसी महीने के आखिर में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दूसरे दौर की बातचीत शुरू होने वाली है।

नवभारत टाइम्स: असम और मेघालय सीमा पर मंगलवार को छह लोगों के मारे जाने के बाद एक बार फिर दोनों राज्यों के बीच का सीमा विवाद सुर्खियों में आ गया है। यह घटना ऐसे समय हुई है, जब कुछ ही दिन बाद, इसी महीने के आखिर में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दूसरे दौर की बातचीत शुरू होने वाली है। देखना होगा कि इस घटना का बातचीत की प्रक्रिया पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। इस बीच दो अन्य राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच का सीमा विवाद भी गरमा गया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीआर बोम्मई ने बयान दिया कि जल संकट से त्रस्त महाराष्ट्र के सांगली जिले के कई सीमावर्ती गांवों ने प्रस्ताव पारित कर कर्नाटक में शामिल होने की इच्छा जताई है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने तत्काल बयान जारी कर इस बात का खंडन किया और यह भी कहा कि राज्य के किसी भी गांव के कर्नाटक में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता।

ध्यान रहे, इन चारों राज्यों के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। इनका संकीर्ण राजनीतिक और दलीय हितों से सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं है। इन चारों राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। पहले जब केंद्र के साथ-साथ इन राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें थीं, तब भी जब-तब ये विवाद उग्र रूप धारण करते रहे हैं। असल में पहले भाषाई और फिर अन्य आधारों पर हुए राज्यों के पुनर्गठन के क्रम में सीमा क्षेत्रों और नदियों के जल बंटवारे से जुड़े कई मसले अनसुलझे रह गए। जंगल और नदी वाले क्षेत्रों, छोटे-छोटे इलाकों में अलग सांस्कृतिक और जातीय पृष्ठभूमि वाली आबादी के मद्देनजर कुछ हद तक ऐसा होना अपरिहार्य भी था। ऐसे में बहुत जरूरी है कि अंतर राज्य परिषद जैसे सांस्थानिक औजारों का ज्यादा कुशलता से और निरंतरता के साथ इस्तेमाल किया जाए।

ऐसे ही मसलों से निपटने के लिए 32 साल पहले अंतर राज्य परिषद का गठन किया गया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसकी बैठकों की निरंतरता बनाए नहीं रखी जा सकी। पिछले 16 वर्षों में इसकी सिर्फ दो बैठकें हुई हैं। जोनल स्तर पर बैठकें जरूर होती रही हैं, लेकिन कई वजहों से वे कारगर नहीं हुईं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक और महाराष्ट्र अलग-अलग जोन में आते हैं। इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अलग कानून है। इसमें दो राय नहीं कि ये विवाद खासे जटिल हैं और स्थानीय आबादी की भावनाओं से जुड़े हैं। इन्हें हल करना आसान नहीं है। लेकिन जब ये हिंसात्मक मोड़ ले लेते हैं तो इन्हें हल करना नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में अंतरराज्य परिषद जैसे मंचों पर संबंधित पक्षों के बीच निरंतर संवाद भावनात्मक उबाल को काबू में रखने के लिहाज से भी उपयोगी हो सकता है।

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