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- हिंदी को लेकर भावुक ना...
नीरज पाण्डेय हमारे देश में नब्बे की उम्र पार कर चुके कुछ लोग कमाल के हैं. इन्हीं में से एक हैं सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट फली सैम नरीमन. इनके नाम में जो सैम जुड़ा हुआ है, उसे आम तौर संक्षेप में 'एस' बोला जाता है (यानी फली एस नरीमन). दरअसल सैम फली के पिता का नाम है. सैम एक ऐतिहासिक किरदार है जो कि प्राचीन फारस का एक नायक था. फिरदौसी के शाहनामा में भी इसका जिक्र है. इस किताब के मुताबिक सैम के पिता का नाम नरीमन था. जबकि रूस्तम इसी सैम का पौत्र था. वही रूस्तम जिसका बेटा था सोहराब. रूस्तम और सोहराब पर ब्रिटिश कवि मैथ्यू ऑरनॉल्ड ने 1850 के दशक में एक खंड काव्य लिखा. इसके करीब 100 साल बाद भारत में रूस्तम-सोहराब नाम से फिल्म भी बनी. खैर, पद्म विभूषण से सम्मानित फली एस नरीमन की वरिष्ठता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि वो 1972 में भारत सरकार के एडीश्नल सॉलिसिटर जनरल बन गए थे. इमरजेंसी की घोषणा हुई तो इसके विरोध में उन्होंने 26 जून 1975 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. आज ये सारी बातें इसलिए क्योंकि पिछले दिनों फली ने एक कार्यक्रम में शानदार भाषण दिया. भाषण यूं तो युवा वकीलों के लिए था. लेकिन करीब घंटे भर की स्पीच में ऐसी कई बातें सामने आईं जो किसी भी पेशे या उम्र के लोगों के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं. खास तौर पर उन लोगों के लिए जो अंग्रेजी को 'विस्थापित' करके हिंदी को स्थापित करना चाहते हैं.