सम्पादकीय

ये मत भूलिए कि नशे की लत वाला शख्स पीड़ित होता है, अपराधी नहीं

Gulabi
27 Oct 2021 3:52 PM GMT
ये मत भूलिए कि नशे की लत वाला शख्स पीड़ित होता है, अपराधी नहीं
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नशे की लत वाला शख्स पीड़ित होता है

1985 से लेकर 2021 तक पूरी दुनिया में मादक पदार्थों (Narcotics) को लेकर नजरिए में बड़ा बदलाव आया है. जहां इसकी तस्करी को रोकने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए. वहीं किसी को बिगड़ैल साबित करने और अमीर लड़के-लड़कियों को बड़ा अपराधी साबित करने से समस्या को कोई हल नहीं होगा. क्योंकि ऐसा करना उत्पीड़न से ज्यादा कुछ और नहीं होता.


मादक पदार्थों का सेवन करने वाले इन युवक-युवतियों का उपयोग इसके करोबार में शामिल डीलरों और उनके आकाओं को पकड़ने के लिए किया जाना चाहिए. उनसे नरमी से सवाल-जवाब किए जाएं, न कि ऐसे जैसे उन्होंने कोई बड़ा जुर्म किया हो. और जेल भेजने के बजाए इन्हें इलाज के लिए अस्पताल भेजा जाना चाहिए. आर्यन खान के मामले में रिपोर्ट है कि उसे बिना ब्लड टेस्ट के ही गिरफ्तार कर लिया गया और उसके खिलाफ की गई हर कार्रवाई फर्जी सबूतों के आधार पर की गई.


नशे की लत बीमारी है अपराध नहीं
लेकिन इस मसले को फिलहाल अलग भी रख दें तो ये आदिम रवैया बेहद परेशान करने वाला है कि युवाओं को इस तरह जेल में ठूंस दिया जाए जैसे कि वे आदतन अपराधी हों. जबकि एक प्रगतिशील समाज में उनके पुनर्वास और इलाज पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज एक्ट, 1985 (NDSP) का उद्देश्य था मादक पदार्थों से संबंधित कानून में सुधार कर उसे मजबूत बनाना. साथ ही इसका मकसद रहा है कि इन पदार्थों के कारोबार पर भी लगाम लगाया जाए. 2001 में इसमें एक राइडर जोड़ा गया, ताकि ऐसे मामलों में जमानत या इसकी मनाही को तर्कसंगत बनाया जा सके. लेकिन अभी भी इसकी अनदेखी की जा रही है.

ड्रग्स का सेवन करने वालों के लिए पुनर्वास केंद्र क्यों नहीं?
इस तर्क को आगे बढ़ाएं तो किसी भी चीज की लत उस बारे में सही समझ की कमी से लगती है. शराब की लत सुधारने के लिए हमारे पास पुनर्वास केंद्र हैं जिन्हें इलाज के विकल्प के तौर पर अच्छा माना जाता है. इसके लिए क्लिनिक भी मौजूद हैं.

धूम्रपान करने वाला व्यक्ति अपने फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है और उसे एम्फीजीमा जैसी बीमारी हो जाती है. सरकार इन उत्पादों पर ज्यादा टैक्स लगाती है और सिगरेट के पैकेट पर कैंसर ग्रसित फेफड़े की तस्वीर लगाने का आदेश देकर लोगों को इसकी लत से बचाने की कोशिश करती है. जिसे भी एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा, बेलगाम खाना खाने की बीमारी होती है, उसे इलाज कराने को कहा जाता है. इस समस्या के मूल कारण की जांच और उसके निवारण से पहले उनके इलाज को प्राथमिकता दी जाती है.

तो फिर ड्रग्स लेने वालों के साथ भी ऐसा क्यों नहीं किया जाता? आर्यन के मामले पर गौर करें, तो वह अपनी गिरफ्तारी के तीन हफ्तों का बिलकुल सामान्य तरीके से सामना कर रहा है. अब तक उसमें किसी तरह के Withdrawal Symptoms नजर नहीं आए हैं, जिससे पता चलता है कि वह ड्रग्स का आदी नहीं है. यदि ऐसा होता तो पागलों की तरह चीखता-चिल्लाता होता.

देश की लगभग 2.1 फीसदी जनसंख्या अफीम का इस्तेमाल करती है
भारत में मादक पदार्थों के उपयोग पर किए एक राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, देश की करीब 2.1 फीसदी जनसंख्या (2.26 करोड़ लोग) अफीम जैसे पदार्थों (इनमें डोडा या फुक्की, हेरोइन और नशीली दवाइयां वगैरह शामिल हैं) का उपयोग करती है. चाहे वो अमीर हो या गरीब, सैनिक हो या नाविक, भिखारी हो या चोर सभी को सहानुभूति की जरूरत होती है.

बेहतर हो हम इसे शाहरुख खान के बेटे का मामला न बनाएं. इस समय हमारे पास उनके शरीर में ड्रग्स होने के निर्णायक सबूत नहीं मिले हैं. जिस देश में भांग के साथ उत्सव मनाया जाता है वहां आर्यन के दोस्त के जूते से छह ग्राम चरस मिल जाने से दुनिया में भूचाल नहीं आ जाएगा.

ड्रग्स की लत से पीड़ित व्यक्ति का इलाज होना चाहिए
बेथेस्डा स्थित National Institute of Drug Abuse की सलाह से हम अपने विचारों की तुलना करें. जो यह कहता है कि इलाज का तरीका ड्रग्स के प्रकार और मरीज के हालात पर निर्भर करता है. व्यक्ति की समस्या का सही उपचार करना और उसका ख्याल रखना ज्यादा जरूरी है, ताकि वह अपने पारिवारिक, कामकाजी और सामाजिक जीवन में आसानी से वापस लौट सके.

इलाज तुरंत उपलब्ध होना चाहिए. क्योंकि ड्रग का आदी व्यक्ति इलाज शुरू करने को लेकर आशंकित हो सकता है. उपलब्ध सेवाओं का फायदा लेने के लिए उसका तैयार होना जरूरी है. यदि तत्काल इलाज उपलब्ध न हो तो संभावित मरीज की मौत भी हो सकती है. अन्य गंभीर बीमारियों की तरह, शुरुआती इलाज से सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है.

प्रभावशाली इलाज व्यक्ति की कई जरूरतों को पूरा करता है, केवल उसके एडिक्शन को ही दूर नहीं करता. इलाज के दौरान व्यक्ति की लत के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य, मनोदशा, सामाजिक दशा और कानूनी समस्या पर भी ध्यान देना चाहिए. साथ ही यह इलाज उसकी आयु, लिंग, नस्ल और संस्कृति के हिसाब से होना चाहिए. छह ग्राम चरस के लिए पूरी मशीनरी का सक्रिय हो जाना जरूरी नहीं है.


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