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सुजानपुर व जयसिंहपुर के बड़े मैदानों पर तो पहले ही बहुत अतिक्रमण हो चुका है
हिमाचल प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ मैदान चंबा, मंडी, अमतर, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू, अनाडेल, रोहडू, सराहन, सोलन, चैल व नाहन में थे। इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां कई दशकों से मेलों व उत्सवों से बचे समय में होती रही हैं। सुजानपुर व जयसिंहपुर के बड़े मैदानों पर तो पहले ही बहुत अतिक्रमण हो चुका है…
किसी भी शिक्षा संस्थान का परिसर उसके खेल मैदानों से ही पहचाना जाता है कि वह किस स्तर का है। बिना खेल मैदानों के शिक्षा संस्थान की कल्पना भी बेमानी है। मंजिल चाहे खेलों की हो या फिटनेस की, इन सबके लिए खेल मैदानों का होना बहुत जरूरी है। विद्यार्थी जीवन में ही पूरे जीवन के लिए स्वास्थ्य की नींव रखी जाती है, मगर हमारे विद्यालयों में खेल मैदानों के अभाव में विद्यार्थी की फिटनेस का कोई भी कार्यक्रम नहीं है। हिमाचल प्रदेश का अधिकांश भूभाग पहाड़ी होने के कारण मैदानों के लिए बहुत मुश्किल से लंबी-चौड़ी जगह मिल पाती है। इसलिए हिमाचल प्रदेश के शिक्षा संस्थानों के पास बहुत कम खेल मैदान हैं और जहां हैं भी, उन्हें कभी भवन तो कभी पार्किंग बना कर यूं ही बरबाद किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के मैदानों में विज्ञान के लिए प्रयोगशाला भवन तो कभी किसी और के लिए भवन बना कर खत्म कर दिया जा रहा है।
मंडी जिला के धर्मपुर उपमंडल के टिहरा क्षेत्र में पिछले दिनों वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय टिहरा के खेल मैदान में विज्ञान के लिए प्रयोगशाला भवन बनाए जाने के लिए नींव खोदी जा रही थी। पूर्व छात्र संघ व वहां की चार पंचायतों के लोग इसका विरोध कर रहे हैं, मगर कोई सुनने को तैयार नहीं था। अभी तक भारी विरोध के कारण कार्य वहीं खड़ा है। यह पूरा क्षेत्र अवाहदेवी से लेकर गद्दीधार तक रिज पर बसा है। चलने के लिए सड़क है, वही खेल मैदान व पार्क का काम करती है। इस क्षेत्र में वालीबॉल व कबड्डी की प्ले फील्ड होना भी बड़ी बात है। यहां पर पहले ढगवाणी विद्यालय के मैदान में जल शक्ति विभाग ने पंपहाऊस बना दिया और अब टिहरा विद्यालय के मैदान में विज्ञान प्रयोगशाला। हिमाचल प्रदेश सरकार इस विषय पर ध्यान दे ताकि भविष्य के नागरिकों को शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य भी मिल सके। एक समय था जब विद्यार्थी सवेरे-शाम अपने अभिभावकों के साथ कृषि कार्य में हाथ बंटाता था, फिर कई किलोमीटर चल कर विद्यालय पहुंचता था।
उस समय किसी भी फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत नहीं थी, मगर आज जब पढ़ाई के लिए घर का काम बंद है, पैदल चलने का रिवाज ही नहीं है तथा खेल के नाम पर मोबाइल व कम्प्यूटर है तो फिर फिटनेस के लिए खेल मैदान तो अनिवार्य हो जाता है, नहीं तो फिर हमारी संतानें कहीं नशे के दलदल में फंस जाएंगी। उस उच्च शिक्षा का क्या अर्थ रह जाता है जिससे आप प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी, अभियंता, चिकित्सक, प्रबंधक तो बन जाते हैं, मगर आप स्वस्थ रहकर साठ वर्षों तक देश व प्रदेश की सेवा नहीं कर पा रहे हैं। अब तो लोग तीस-चालीस साल की उम्र में जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इस सबके पीछे जिम्मेदार बिना फिटनेस कार्यक्रम की स्कूली शिक्षा है। शिक्षा का अर्थ मानव का सर्वांगीण मानसिक व शारीरिक विकास है जिससे वह अपने आगामी जीवन की कठिनाइयों पर काबू पाकर खुशहाल जिंदगी जी सके।
हिमाचल प्रदेश के अधिकांश विद्यालयों में पढ़ने के लिए कमरे तो हैं, मगर उनकी फिटनेस के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है। मैदान होंगे, तभी फिटनेस पर कार्य होगा। हिमाचल प्रदेश का शिक्षा विभाग निजी शिक्षा संस्थान खोलने के लिए तो मैदान की अनिवार्य शर्त रखता है, मगर अपने सरकारी संस्थानों के मैदानों में भवन व पार्किंग बनाकर अपने ही नियमों को ठेंगा दिखा रहा है। अभी भी समय है हिमाचल प्रदेश की जनता व सरकार दोनों को विद्यार्थी जीवन में फिटनेस कार्यक्रम के महत्त्व को समझना होगा, नहीं तो भविष्य में हमारी अगामी पीढि़यां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज खेल जगत में बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा हो गई है। इसलिए उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन करने पर भी पोडियम तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं है। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका में स्थान बनाने के लिए जहां विद्यालय स्तर से ही अच्छे ज्ञानवान प्रशिक्षक चाहिए, वहीं पर प्ले फील्ड भी बहुत जरूरी है। हिमाचल प्रदेश के खेल मैदानों व अन्य हाल ही के वर्षों में बनी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड का रखरखाव भी ठीक ढंग से नहीं हो रहा है।
हिमाचल प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैकड़ों साल पहले राजा महाराजाओं द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ मैदान चंबा, मंडी, अमतर, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू, अनाडेल, रोहडू, सराहन, सोलन, चैल व नाहन में बनाए थे। इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां कई दशकों से मेलों व उत्सवों से बचे समय में होती रही हैं।
सुजानपुर व जयसिंहपुर के बड़े मैदानों पर तो पहले ही बहुत अतिक्रमण हो चुका है, अब मंडी के पड्डल मैदान में कलस्टर यूनिवर्सिटी का भवन बन रहा है। सरकाघाट महाविद्यालय के खेल मैदान में मिट्टी के सैंकड़ों ट्रक डाल कर कौन सा संदेश दिया जा रहा है। जब भवन निर्माण प्रौद्योगिकी के कारण कहीं भी हो सकता है तो फिर पहाड़ के लिए दुर्लभ समतल जगह को क्यों बरबाद कर रहे हो। हर शिक्षा संस्थान को अपना खेल मैदान चाहिए जहां सब विद्यार्थियों की फिटनेस हो सके, मगर शिक्षा संस्थान परिसर में जब मैदान ही नहीं होगा तो फिर पहाड़ की संतान को स्वास्थ्य व खेल क्षेत्र में पिछड़ने का दंश झेलना ही पड़ेगा। इसलिए खेल मैदानों की बरबादी को अभी से रोकना होगा, तभी हम अपनी आने वाली पीढि़यों से न्याय कर सकेंगे। विद्यालय स्तर पर ड्रिल का पीरियड हर कक्षा के लिए अनिवार्य हो तथा उस पीरियड के लिए खेल मैदान भी जरूरी हो जाता है। हिमाचल प्रदेश की सरकार को फिट इंडिया मुहिम के अंतर्गत इन बड़ी कठिनाई से बनी खेल मैदानों की सुविधाओं का सदुपयोग कर राज्य में खेलों व फिटनेस को गति देनी ही होगी।
ईमेलः[email protected]
भूपिंद्र सिंह
राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
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