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- छलावा तो नहीं
Written by जनसत्ता; केंद्र सरकार ने सभी विभागों और मंत्रालयों में भर्ती का निर्देश दिया है, जिस पर विपक्ष निशाना साध रहा है। निशाना साधना वाजिब भी है, क्योंकि हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया गया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ। अब सरकार ने 2014 तक दस लाख नौकरियां देने की बात की है, तो सवाल उठना वाजिब है। कहीं यह चुनावी छलावा तो नहीं? विपक्ष कह रहा है कि जब सत्तर लाख सरकारी पद खाली हैं, तो आखिर दस लाख नौकरियों की ही बात क्यों।
एक सवाल यह भी है कि अग्निपथ योजना के तहत चार साल तक नौकरी करने के बाद सिर्फ पच्चीस फीसद लोग रह जाएंगे, बाकी पचहत्तर प्रतिशत अग्निवीरों का क्या होगा? क्या फिर से बेरोजगार हो जाएंगे? कोरोना के कारण बहुत से लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। बेरोजगारी की दर बढ़ रही है। बहुत से लोग नौकरी तलाशते हुए थक कर हार गए हैं। उनके लिए अग्निपथ योजना एक अवसर हो सकती है, लेकिन इसमें भी दायरा है कि सिर्फ सत्रह साल से इक्कीस साल तक के जवान इसमें भर्ती हो सकते हैं। फिर बाकियों का क्या? सवाल है कि सरकार ये सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए कर रही है या फिर उन्हें सच में देश की कोई फिक्र है।
केंद्र सरकार ने एलान किया है कि अगले डेढ़ वर्ष में दस लाख नौकरियां दी जाएंगी। कोरोना काल में रिक्त पदों को भरने में देरी हुई। हाल में हुई परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हुए थे, इसके लिए विशेष टीम गठित की जानी चाहिए। वहीं रक्षा मंत्रालय ने भी अग्निपथ नामक योजना की घोषणा की है। इस कोशिश में राज्यों को भी शामिल होना चाहिए, जिससे हर हाथ को रोजगार मिल सके। यूपी सरकार ने घोषणा की है कि चालीस हजार यूपी पुलिस कांस्टेबल की भर्ती की जाएगी। इस घोषणा के बाद प्रतियोगी छात्रों में उल्लास है।
देश की सभ्यता, संस्कृति, भाषा, कलाकृति और प्राचीन कौशल की राह चल कर देश को आत्मनिर्भर बनाने का सपना पूरा करने में सरलता पैदा करेगी। अगर हम इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ाएं तो यह पता चलेगा कि स्वदेशी ही हमारे देश की स्वाधीनता संग्राम का मूलमंत्र रहा, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन चलाकर देश को आजाद कराने में मुख्य भूमिका निभाई थी।
इन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन चलाकर न केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा इनकी होली जलाने तक ही सीमित रखा, बल्कि उद्योग, कलाकारी, भाषा, शिक्षा, वेश-भूषा आदि सब पर स्वदेशी का रंग चढ़ा दिया था। अगर महात्मा गांधी ने भारतीयो को स्वदेशी के प्रति जागरूक नही किया होता तो आज शायद भारत आजाद भी नही हुआ होता।
मगर मौजूदा दौर वैश्विक बाजार का है। इस दौर में हम बिल्कुल यह नहीं कह सकते कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम पूरी तरह स्वदेशी आंदोलन चला पाएंगे, क्योंकि हमारे देश के पास अभी भी बहुत-से ऐसे कच्चे माल की व्यवस्था नहीं है जो देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है। सेना के आधुनिक हथियार हों या फिर आधुनिक तकनीक हो, इसके लिए हम अभी भी दूसरे देशों पर निर्भर हैं।
हम उन शहरी मशीनों और उद्योगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते, जो देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए संजीवनी हैं। इसलिए देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश में स्वदेशी और कुटीर उद्योगों के साथ दुनिया के साथ भी हमें अपने उद्योगों, व्यापार को देश की अर्थव्यवस्था के लिए सेतु बना कर रखना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि देश के विकास और विश्वव्यापी समस्याओं के लिए एकजुट होना दुनिया के सभी देशों का जरूरी है।