सम्पादकीय

जान की परवाह नहीं

Gulabi Jagat
9 Sep 2022 5:40 AM GMT
जान की परवाह नहीं
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By NI Editorial
अब ये कहा जा सकता है कि जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान मौत के तांडव से जो समाज स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर नहीं जागा, उसे प्रदूषण के धीमे जहर की क्या फिक्र होगी!
भारत में आम मानस को देखें, तो यही समझ में आता है कि यहां लोगों को दूसरों के जान की तो छोड़िए, खुद अपनी जान की कीमत भी महसूस नहीं होती। वरना, इस देश में उस तरह पर्यावरण मानदंडों की उपेक्षा नहीं होती, जैसा होता अक्सर दिखता है। आम तौर पर लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं है कि खराब हवा किस तरह उनके जीवन काल को कम करती जा रही है। जबकि इस बारे में जानकारियों का अभाव नहीं है। ताजा जानकारियां अगर कोई लेना चाहे, तो दिल्ली स्थित संस्था सेंटर फॉर साइंट एंड एनवायरॉनमेंट (सीएसई) की ताजा रिपोर्ट पर गौर कर सकता है। सीएसई ने उत्तर भारत के शहरों में प्रदूषण पर ये रिपोर्ट जारी की है। उसने अपने शोध के लिए उत्तर भारत के 56 शहरों में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) के 2021 के डेटा का विश्लेषण किया। उसके इस शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं। इसके मुताबिक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत आने वाले और इसके दायरे से बाहर रहने वाले शहरों के बीच पीएम 2.5 की प्रवृत्तियों में नाममात्र का अंतर है। एनसीएपी ने 2024 तक देश में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा में 20 से 30 फीसदी तक की कटौती का लक्ष्य तय किया है।
सीएसई ने है कहा कि एनसीएपी वाले केवल 43 शहरों में 2019-2021 के लिए पीएम 2.5 के पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध हैं, जो प्रगति पर नजर रखने के लिहाज से काफी हैं। सीएसई का कहना है कि देश में कोविड लॉकडाउन के बाद मुंबई में प्रदूषण के स्तर में सबसे तेज वृद्धि हुई है। वहीं चेन्नई में कोविड के बाद प्रदूषण के स्तर में कमी हुई है। दिल्ली में कोविड लॉकडाउन के बाद 13 फीसदी तक प्रदूषण बढ़ा है। लॉक़डाउन के दौरान प्रदषण घटने से वातावरण बेहतर हुआ था। लेकिन आम जिंदगी बहाल होते ही वे तत्व वातावरण में पहले जैसी तेजी से घुल रहे हैं, जिन्हें वैज्ञानिक स्लो प्वॉइजन कहते हैँ। अब ये कहा जा सकता है कि जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान मौत के तांडव से जो समाज स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर नहीं जागा, उसे धीमे जहर की क्या फिक्र होगी!
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