- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- डालर बनाम रुपया

Written by जनसत्ता: रुपए के उल्लेखनीय लचीलेपन के बावजूद इसकी कीमत में तेजी से गिरावट आई है। मगर पिछली बार की तुलना में अपेक्षाकृत यह गिरावट कम रही है। विभिन्न घरेलू और वैश्विक कारकों के कारण अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय रुपए में लगभग सात फीसद की गिरावट आई है, विशेष रूप से, व्यापक चालू खाता घाटा, भू-राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप लगातार जोखिम और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा निरंतर बिकवाली इस गिरावट का कारण है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि डालर दुनिया की सभी मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है। जून 2022 में अमेरिका में मुद्रास्फीति 9.1 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई। इसने अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में उलटफेर को प्रेरित किया। अमेरिका में मुद्रास्फीति में बेरोकटोक वृद्धि के कारण आने वाले कुछ महीनों तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि जारी रखने की उम्मीद है। आज डालर विश्व की अन्य मुद्राओं के मुकाबले पिछले बीस साल के सारे रिकार्ड तोड़ चुका है।
भले ही रुपया डालर के मुकाबले तेजी से गिर गया हो, पर पिछले संकट की तुलना में मूल्यह्रास अपेक्षाकृत कम रहा है जैसे कि 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट जब आया तो रुपया बीस फीसद से अधिक कमजोर हो गया था और 2013 का टेंपर टेंट्रम के दौरान रुपए में ग्यारह फीसद से अधिक की गिरावट आई थी।
2022 में सात फीसद की गिरावट रहने का श्रेय भारत की बदली विदेश नीति को जाता है, क्योंकि अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से सस्ता कच्चा तेल लेते रहना इसका प्रमुख कारण है या रुपए के मूल्य में गिरावट को नियंत्रित करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने के अलावा, आरबीआइ ने हाल ही में भारत में विदेशी निवेश को उदार बनाया और निवेश को अधिक आकर्षक बनाया। अन्य देशों और भारत के बीच रुपए में व्यापार को बढ़ावा देने, नई विदेशी मुद्रा जमा पर बढ़ी ब्याज दरों ने रुपए की गिरावट को नियंत्रित करने में योगदान दिया है।
आजादी के पूर्व देश में जातिवाद ,धार्मिक भेदभाव नहीं था। सभी धर्म के अनुयायी अपने अपने धर्म का पालन करते हुए भाईचारे के साथ रह रहे थे। पर अब राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए खाई चौड़ी करने का काम कर रहे हैं, जिसका आने वाली पीढ़ी को परिणाम भुगतना पड़ेगा। वैचारिक प्रदूषण ज्यादा खतरनाक है, जो कि ज्यादा तेजी से फैल रहा है। देश में हर जगह वैचारिक बारूद के ढेर तैयार हो रहे हैं।
हमारे अध्यात्म, योग तथा ध्यान का लाभ विदेशी लोग ले रहे हैं और हम वैचारिक प्रदूषण से गर्त में जा रहे हैं। अब भी समय है राजनीति के अल्प फायदे को छोड़ कर धर्म, जाति के भेदभाव का त्याग करें। सबको अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए अहिंसा परमो धर्म: के सिद्धांत के साथ भा चारे के साथ जीवनयापन करने की प्रेरणा दें।
राजनीति करें, किंतु वैचारिक प्रदूषण फैला कर नहीं, देश के विकास के मुद्दे पर चर्चा करें। खुशहाली के लिए काम करें। राष्ट्र सर्वोपरि है, यह सिद्धांत हर देशवासी के मन मस्तिष्क में फैलाएं। हम आप आज हैं, कल नहीं रहेंगे, किन्तु देश रहेगा।