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- कुत्ते के पक्ष में
पहले पूरे मोहल्ले में एक कुत्ता था। सीधा-सादा और सरल सा। पास से निकलता तो वह पांवों में लोट जाता और दुम हिलाने लगता। पूरे मोहल्ले का ध्यान वही कुत्ता रखता था। हालांकि था तो वह कुत्ता ही, लेकिन उससे किसी को कोई परेशानी नहीं थी। उसी के भलेपन का फायदा उठाकर पता नहीं कहां से पांच-सात कुत्ते और मेरे मोहल्ले में आ गए हैं। इनमें एक-दो तो एकदम पिल्ले हैं। समझते-पहचानते नहीं, अपना-पराया नहीं देखते और लगते हैं भौंकने। नए कुत्तों का और भी बुरा हाल है, सारे दिन मोहल्ले में इधर से उधर घूमते रहते हैं और भले आदमी की पिण्डली पकड़ने को आतुर रहते हैं। मैं तो इनकी कार्य शैली से सदैव सहमा सा रहता हूं। पता नहीं कब मिजाज बदल लें और काट लें। सही कहूं तो लगता है मोहल्ले में एक यूनियन सी बना ली है। जब भी घर से बाहर निकलता हूं तो चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते घूमते नजर आते हैं। एकदम आवारा और हर ऊंच-नीच से बेखौफ। भार्गव साहब कुत्तों के शौकीन हैं।