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सोशल मीडिया (Social Media) के अस्तित्व में आने के बाद अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के आचरण के विपरीत प्रतिक्रिया भी देखने को मिलने लगी हैं
दिनेश गुप्ता
सोशल मीडिया (Social Media) के अस्तित्व में आने के बाद अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के आचरण के विपरीत प्रतिक्रिया भी देखने को मिलने लगी हैं. धर्म-संप्रदाय से जुड़ी घटनाओं पर अधिकारियों की प्रतिक्रिया का समाज पर असर अलगाव पैदा करने वाला होता है. मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारी नियाज खान (IAS Niyaz Khan) ने द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) पर जो प्रतिक्रिया दी उसका संदेश और मंशा खुद को अल्पसंख्यकों का हितेषी बताने की है. नियाज खान की प्रतिक्रिया सीधे तौर पर राजनीतिक है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है कि गोधरा और भागलपुर कांड पर भी फिल्म बननी चाहिए. धार्मिक भावनाओं से जोड़ने वाली प्रतिक्रिया अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक ही नहीं आदिवासियों से जोड़कर भी की जाती है.
झारखंड में आईएएस अधिकारी वंदना डाडेल की इस तरह की प्रतिक्रिया पर सरकार ने उनके खिलाफ कार्यवाही की थी. नागरिकता कानून से जुड़े मामले में भी मध्यप्रदेश की आईएएस अफसर निधि निवेदिता विवाद में घिर गईं थीं.
सरकार से पूर्व अनुमति के बगैर मीडिया में जाने पर है पाबंदी
अखिल भारतीय सेवा आचरण नियम 1968 के अनुसार सरकार से पूर्व अनुमति के बगैर मीडिया में जाने पर पाबंदी हैं. समय-समय पर इसमें बदलाव भी हुए हैं. आचरण नियमों का भाव नौकरशाह और शासकीय सेवकों में तटस्थता बनाए रखना है. आचरण नियमों के मुताबिक वह अपनी कोई भी प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर व्यक्त नहीं कर सकता. नियमों में समाचार माध्यमों में अपनी राय सरकार की पूर्व अनुमति के बिना प्रकट नहीं की जा सकती. सोशल मीडिया से पहले के दौर में आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसे सरकारी माध्यमों में अधिकारी अनुमति लेकर ही अपनी बात रखने जाते थे.
सामान्यत: कला-साहित्य से जुड़े अधिकारी ही इन माध्यमों में दिखाई पड़ते थे. पहले नौकरशाहों की राजनीतिक टीका-टिप्पणी सालों में कभी सामने आती थी. लेकिन, पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया पर अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी अपनी राजनीतिक मामलों में भी राय देते दिखाई देते हैं. सोशल मीडिया भी आचरण नियमों के दायरे में आता है. भले ही नियमों की भाषा में इसका उल्लेख न हो. सोशल मीडिया सार्वजनिक फोरम ही है. केन्द्र सरकार ने वर्ष 2016 में सोशल मीडिया पर अधिकारियों की उपस्थिति को रोकने के लिए नियमों का प्रारूप भी तैयार किया था. देश के गृह मंत्री अमित शाह ने तो पिछले साल नए आईपीएस अफसरों को सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह दी थी. आचरण नियम अपनी व्यक्तिगत छवि चमकाने की इजाजत भी नहीं देते.
आईएएस नियाज खान चाहते हैं मुस्लिमों के नरसंहार पर फिल्म बने
सोशल मीडिया पर सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए विभागों के नाम से अकाउंट रखा जाता है. जिला स्तर पर तैनात अधिकारी अपने सरकारी अकाउंट का उपयोग भी व्यक्तिगत प्रचार-प्रसार के लिए करते दिखाई देते हैं. उनकी तस्वीरें भी उसी तरह पोस्ट की गई होती हैं, जिस तरह मंत्री, मुख्यमंत्री करते हैं. गरीब के घर खाने खाते हुए. सिंघम के अंदाज में अकाउंट पर उनकी प्रोफाइल पिक्चर होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अधिकारियों को सिंघम जैसी छवि बनाने से बचने की सलाह दी थी. आचरण नियमों से जुड़ा मध्यप्रदेश में ताजा विवाद भी फिल्म से जुड़ा हुआ है.
द कश्मीर फाइल्स की लोकप्रियता और कश्मीरी पंडितों पर घाटी में हुए अत्याचार के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया के बाद मध्यप्रदेश के आईएएस अफसर नियाज खान ने फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को सलाह दी कि उन्हें गोधरा और भागलपुर कांड पर भी फिल्म बनाना चाहिए. नियाज खान ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि वे मुसलमानों के नरसंहार पर एक किताब लिखने की सोच रहे हैं. इस पर द कश्मीर फाइल्स की तरह कोई फिल्म बनेगी तो मुसलमानों का दर्द भी देश के सामने आएगा. विवाद बढ़ा तो नियाज खान ने कहा कि केन्द्र सरकार उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में कर दे, वहां वे कश्मीरी पंडितों को पुन: बसाने के लिए काम करना चाहते हैं. जाहिर है कि नियाज खान को द कश्मीर फाइल्स में दिखाया गया मुस्लिमों का चेहरा पसंद नहीं आया.
अपनी पसंद ना पसंद को जाहिर करते वक्त उन्हें यह ख्याल भी नहीं रहा कि आचरण नियमों के तहत उन्हें राजनीतिक विवाद से जुड़े मामलों में टिप्पणी नहीं करना चाहिए. राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि नियाज खान ने आचरण सीमा की लक्ष्मण रेखा पार की है. राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग खान के खिलाफ कार्यवाही के लिए कार्मिक मंत्रालय को पत्र लिख चुके हैं.
मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक बताने की मुहिम में शामिल हैं और भी चेहरे
नियाज खान खुद लेखक हैं. मुस्लिम वर्ग में उनकी छवि बुद्धिजीवी अधिकारी की है. वे अक्सर विवादों में रहते हैं. धर्म और संप्रदाय आधारित नौकरशाहों की सार्वजनिक टिप्पणी समाज के भीतर असुरक्षा और पक्षपात का भाव पैदा करती है. तीन साल पहले इसी तरह के तेवर कश्मीर में ही आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने दिखाए थे. उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा कि उनका इस्तीफा अति राष्ट्रवाद और बीस करोड़ मुसलमानों को दोयम दर्जे का हो जाने के खिलाफ है. शाह का आरोप था कि घाटी में लगातार हो रही हत्याओं के मामले में केन्द्र सरकार ने गंभीर कदम नहीं उठाए. शाह फैसल ने आरोप लगाने के साथ ही नौकरी भी छोड़ दी थी. एक राजनीतिक दल भी बनाया. बाद में उसे भी छोड़ दिया. नियाज खान और शाह फैसल की भाषा लगभग एक जैसी है. शाह फैसल और नियाज खान भले ही बात अल्पसंख्यक हित की करते दिखाई दे रहे हो लेकिन, महत्वाकांक्षा राजनीतिक ही है.
आदिवासियों का धर्म परिवर्तन भी बना आचरण के उल्लंघन की वजह
आचरण नियमों के उल्लंघन पर आईएएस अधिकारियों पर सामान्यतः गंभीर दंडात्मक कार्यवाही नहीं होती. आईपीएस और आईएफएस अधिकारी भी आचरण नियमों के उल्लंघन पर बच निकलते हैं. मामला जब गर्म होता है तब सरकार एक कारण बताओ नोटिस जारी करती है. मामला ठंडा होने के बाद ठोस कार्यवाही के बगैर फाइल बंद कर दी जाती है
झारखंड की आईएएस अधिकारी वंदना डाडेल ने आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का मामला सरकारी कार्यक्रम में उठने के बाद अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि आदिवासियों के पास स्वेच्छा से, सम्मान से अपना धर्म चुनने का अधिकार नहीं रह गया है? इस पोस्ट के बाद सरकार ने उन्हें एक नोटिस दिया. डाडेला आदिवासी वर्ग से हैं. उन्हें अपनी यह पीड़ा भी सार्वजनिक की थी कि उन्हें आदिवासी होने के कारण बार-बार तबादलों का सामना करना पड़ता है.
आचरण नियम सिर्फ राजनीतिक टीका-टिप्पणी या कार्यक्रम में सहभागिता को रोकने के लिए नहीं बनाए गए. शासकीय सेवक का सामाजिक आचरण भी इसमें शामिल होते है. एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता. पत्नी को घरेलू हिंसा का शिकार बनाना भी आचरण नियमों का उल्लंघन है. मध्यप्रदेश में ही आईपीएस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा को सरकार पत्नी से मारपीट करने के आरोप में निलंबित कर रखा है. वहीं सीएए कानून के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे बीजेपी कार्यकर्ता को थप्पड़ मारने वाली आईएएस अधिकारी निधि निवेदिता लूप लाइन में हैं.
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