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किरण चोपड़ा| अभी कुछ दिन पहले देश में डाक्टर दिवस मनाया गया। जो डाक्टर अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाते हैं वह सचमुच भगवान ही हैं जो मरीजों को नई जिंदगी देते हैं। भाग्यशाली है वह लोग जिन्हें डाक्टरों का सही वक्त पर ट्रीटमेंट मिल जाता है। सुना था डाक्टर भगवान का रूप होते हैं। यह सचमुच कोराेना काल में देख लिया। मेरा यह मानना है कि डाक्टर दिवस को अगर हम ईश्वर के फरिश्ते दिवस कहकर मनाये तो आज के कोरोना काल में इसकी प्रासांगिकता बहुत बढ़ जायेगी। यह बात अलग है कि हमारी मोदी सरकार ने डाक्टरों, नर्सों और मेडिकल कर्मचारियों को वॉरियर मानकर उनका समय-समय पर सम्मान किया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी जी ने डाक्टर दिवस पर डाक्टरों के खुद को जोखिम में डालकर कर्त्तव्यपूर्ण और मानवता पर आधारित ड्यूटी करने के जज्बे को सलाम किया। एक बहुत अच्छी मिसाल जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूला पाऊंगी, मेरी बहन वीणा शर्मा से जुड़ा है जिनके पुत्र संजीव शर्मा लंदन के नोटिंघम में एक प्रतिष्ठित बेरिस्टर है, को कोरोना हो गया। कोरोना जब पिछले साल पूरे चरम पर था तो पूरे ब्रिटेन में दहशत मची हुई थी। वह नोटिंघम अस्पताल में दाखिल हो गये और डाक्टरों ने स्पष्ट कर दिया कि बचने की उम्मीद 50 प्रतिशत है लेकिन हम बचाने के लिए पूरे प्रयास करेंगे। भगवान की कृपा हुई, डाक्टरों की चौबीस घंटे की सेवाओं ने, नर्सों और हैल्थ कर्मियों की पूरी सेवा सुश्रूषा के दम पर वह स्वस्थ हो गये। मैं भी खुश हूं लेकिन दो दिन पहले जिस तरह से संजीव शर्मा ने डाक्टर दिवस को डाक्टरों को समर्पित किया उसकी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती