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- बलि का बकरा बनते...
आदित्य नारायण चोपड़ा: कोरोना की महामारी ने देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मुद्दे पर हर किसी का ध्यान आकर्षित किया है। भविष्य में किसी भी महामारी की चुनौतियों का सामना करने के लिए किस तरह का स्वास्थ्य ढांचा होना चाहिए इस पर बहस भी छिड़ी हुई है। महामारी के बीच पेश किए गए 2020-21 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में भविष्य में स्वास्थ्य आपदा से निपटने के लिए तैयार रहने की रूपरेखा पेश की थी। स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में भी आवंटन में 137 फीसदी की बढ़ौतरी की गई थी। लोगों को गुणवत्ता और सस्ता इलाज मुहैया कराने के लिए सिर्फ निजी क्षेत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, बल्कि सरकार को ही इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी।समस्या यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर धन तो खर्च किया जा रहा है लेकिन हम व्यवस्था के पहलू को नजरंदाज कर रहे हैं। व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिए जाने से अस्पताल लोगों के लिए श्मशान बन रहे हैं। आजकल अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ौतरी हो रही है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की दशा इतनी खराब है कि राज्य सरकारें इन्हें लेकर गम्भीर नहीं। सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था सुधारे बिना कोई भी सरकार कल्याणकारी सरकार नहीं कहला सकती। महाराष्ट्र के अहमदनगर के सरकारी अस्पताल में आग लगने से कोविड-19 संक्रमित 11 रोगियों की मौत हो गई थी। उसके बाद भोपाल के हमीदिया अस्पताल में नवजात शिशु कक्ष में आग लगने से चार बच्चों की मौत हो गई। अहमदनगर स्थित सरकारी अस्पताल में आग ने सरकार, प्रशासन, इंजीनियरिंग और रखरखाव से सम्बद्ध विभागों की पोल खोल दी है। अस्पताल में अग्नि सुरक्षा उपकरण ही नहीं थे। न तो अस्पताल ने अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया था और न ही अस्पताल का वाटर स्प्रिकलर सिस्टम काम कर रहा था। आग शार्टशर्किट से लगी लेकिन जब वहां अग्नि सुरक्षा के उपाय ही नहीं थे तो मरीजों को कैसे बचाया जा सकता था। हैरानी की बात यह है कि आईसीयू में मरीजों की चिकित्सा देखभाल में शामिल डाक्टरों और स्टाफ नर्सों पर लापरवाही का आरोप लगा दिया गया है। मरीजों की मौत के बाद जिला सिविल सर्जन और तीन अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया है और दो नर्सों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। लापरवाही से मौत के मामले में एक महिला डाक्टर अधिकारी और तीन नर्सों को गिरफ्तार किया गया है। डाक्टरों और नर्सों पर प्राधिकारियों द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 304 और 304 ए के तहत आरोप लगाना लोकतांत्रिक देश में पेशेवरों पर सुरक्षा के बारे में गम्भीर सवाल उठाता है। स्पष्ट है कि इन्हें बलि का बकरा बनाया गया। सभी सरकारी संस्थानों में अग्नि, बिजली और पीडब्ल्यूडी जैसे विशेष विभाग मौजूद रहते हैं तो डाक्टरों और नर्सों के खिलाफ कार्रवाई मशीनरी द्वारा जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने के अलावा और कुछ नहीं है। फायर आडिट, रखरखाव और अग्निशमन का तंत्र इन विशेष विभागों को आवंटित जिम्मेदारियां हैं। नियमित अंतराल पर फायर आडिट, इलैक्ट्रिकल आडिट करना व्यवस्था के विशिष्ट विभागों की जिम्मेदारी है। डाक्टर और नर्सें तो मरीजों का उपचार करने आते हैं न कि अग्नि सुरक्षा या बिजली व्यवस्था देखने। अस्पताल ने अग्नि सुरक्षा उपकरणों की मांग की थी लेकिन अग्निशमन प्रणाली स्थापित करने का काम रोक दिया गया था। बिना सोचे-समझे संबंधित हितधारकों के लिए भौतिक बुनियादी ढांचे, सुरक्षा मानदंडों को ऑडिट करने और रोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपकरणों के रखरखाव के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने का समय है। 12 दिन से डाक्टर और नर्सें जेल के भीतर हैं आैर उनके परिवार रिहाई की मांग कर रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर विरोध व्यक्त किया है।संपादकीय :त्रिपुरा में अभिव्यक्ति का अर्थ?शी जिनपिंग का माओ अवतारकरतारपुर साहिब का महत्वमेराडॉक के साथ सफल वेबिनारक्रिप्टो करेंसी पर नियामक तंत्र'महान भारत का इतिहास'जहां तक भोपाल के हमीदिया अस्पताल में अग्निकांड का संबंध है वहां तो देर रात जब आग लगी तो बच्चों को बचाने की बजाय स्टाफ ही भाग निकला। दूसरे रोगियों की तरह नवजात शिशु खुद जान बचाने का प्रयास भी नहीं कर सकते थे, इसीलिए चार को नहीं बचाया जा सका। ऐसे विशेष कक्षों में उन्हीं नवजात शिशुओं को रखा जाता है जिन्हें पैदा होने के साथ ही कोई समस्या होती है। उन्हें विशेष संयंत्रों के सहारे रखा जाता है। ऐसे कक्ष बहुत संवेदनशील माने जाते हैं वहां भी बिजली के मामले में लापरवाही ही बरती गई है। डाक्टर और नर्सें कोई फायर फाइर्ट्स नहीं होते। अस्पतालों में आग की घटनाओं को प्रशासन सामान्य लापरवाही या मानवीय चूक मान कर रफा-दफा कर देता है। सरकारी अस्पतालों में भरोसेमंद बिजली की व्यवस्था तक नहीं है। सरकारी अस्पतालों में बिजली के मिस्त्री पुराने उपकरणों में जुगाड़ करके जैसे-तैसे कामचलाऊ काम करके बिजली का प्रवाह चालू रखते हैं। भ्रष्ट अधिकारी भी फर्जी बिल बनाकर अपनी जेबों में डालते रहते हैं। अस्पताल रोगियों को जीवनदान देने के लिए हैं न कि उनको मौत देने के लिए। कोरोनाकाल में डाक्टरों और नर्सों द्वारा की गई सेवाओं का ऋण उतारने की बजाय अगर सरकारें या प्रशासन डाक्टरों और नर्सों को ही जेलों में डालने लगें तो फिर रोगियों का उपचार करने कौन जाएगा।