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दिल्ली की हवा अभी भी खराब है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दिल्ली की हवा अभी भी खराब है. एयर क्वालिटी इंडेक्स का ग्राफ बता रहा है कि यहां की हवा में पीएम 2.5 का स्तर 384 पर पहुंचा हुआ है. हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. सांस लेना मुश्किल हो रहा है.
अब इसका ठीकरा हम किसके सिर फोड़ेंगे? अब तो दिवाली भी बीत गई. पटाखे भी फोड़े जा चुके हैं. हालांकि लाख हिदायतों और डॉक्टरों की स्वास्थ संबंधी चेतावनियों के बावजूद हम इस दिवाली भी पटाखे फोड़ने से बाज नहीं आए थे. तो फिलहाल वो मौका भी गुजर चुका है. पंजाब-हरियाणा के किसान पराली भी नहीं जला रहे हैं क्योंकि वो सब तो यहां राजधानी में डेरा डाले हुए हैं. तो फिर ये हवा खराब हो कैसे रही है. कौन है सचमुच में इस वायु प्रदूषण का जिम्मेदार?
अपने दिल पर हाथ रखिए और अपने गिरेबान में झांककर देखिए. अगर ईमानदारी से देखेंगे तो पाएंगे कि अपनी हवा को खराब करने के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं. किसी और ने आकर हमारे घर में गंदगी नहीं फैलाई. हमने ही फैलाई और सफाई करने से भी इनकार कर दिया है. हम हर वक्त किसी विलेन की तलाश में रहते हैं, जिसके सिर दोष का ठीकरा फोड़ दें और खुद अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं.
हम जिन गाडि़यों में घूम रहे हैं, जो एयरकंडीशनर और रूम हीटर चला रहे हैं, बिना नियमों की परवाह किए बेतहाशा इंडस्ट्री लगा रहे हैं, संसाधनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी का नतीजा है कि हमारी हवा खराब होती जा रही है. अपने घर में एयर फ्रेशनर मशीन लगाकर हम घर के अंदर की हवा को तो सांस लेने लायक बना ले रहे हैं, लेकिन घर के बाहर की हवा को प्रदूषित कर रहे हैं. ये बिलकुल वैसा ही है कि कोई अपने घर में तो सफाई कर ले, लेकिन सारा कचरा बाहर फेंक दे. लेकिन हवा का तो ऐसा है कि उसे अमीर और गरीब के लिए अलग-अलग बांटा नहीं जा सकता. चाहे आप कितने भी साधन संपन्न क्यों न हों, घर से बाहर निकलने पर आप भी उसी हवा में सांस लेंगे, जिसमें कोई गरीब, साधनहीन व्यक्ति.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 1650 शहरों की हवा की जांच के बाद बताया है कि दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है. किसी और काम में नंबर वन हों चाहे न हों, अपनी हवा को खराब करने में हम जरूर नंबर वन हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल 20 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सांस से जुड़ी क्रॉनिक बीमारियों और अस्थमा से मरने वाले लोगों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है. अकेले दिल्ली में प्रदूषित हवा 22 लाख से ज्यादा लोगों के फेफड़े खराब कर चुकी है.
मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस ने 2018 में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था. इस पेपर के मुताबिक दिल्ली का 41 फीसदी प्रदूषण गाडि़यों से निकलने वाले धुएं के कारण था, 21.5 फीसदी धूल के कारण और 18 फीसदी प्रदूषण यहां की इंडस्ट्रीज के कारण था. उस समय सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के डायरेक्टर ने सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरसर्स पर यह आरोप लगाया था कि वे इस रिपोर्ट के खिलाफ लॉबिइंग की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि यह रिपोर्ट ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए बहुत सुखद नहीं है. और आइरनी देखिए कि जो लोग इस रिपोर्ट को नापसंद कर रहे हैं, सांस तो उन्हें भी इसी हवा में लेनी है. फेफड़े उनके भी कार्बन डाई ऑक्साइड ही सोख रहे हैं, लेकिन बिजनेस और मुनाफे के आगे फेफड़ों की परवाह कौन करे.
हमारे फेफड़े जो सोख रहे हैं, वो हमारा ही बनाया हुआ इनवायरमेंट है. इसके लिए जिम्मेदार और कोई नहीं, हम खुद हैं. जिन लोगों के सिर पर यह दायित्व है कि वो इस देश के सभी नागरिकों के लिए साफ हवा, पानी सुनिश्चित करें, वो दूसरे कामों में व्यस्त हैं. सरकारें चुनाव लड़ने, वोट सेटिंग करने, सांसदों को सेट करने में व्यस्त रहती हैं. व्यवसायी का धर्म सिर्फ और सिर्फ मुनाफा है. ऐसे में किसी को इस बात से सरोकार नहीं है कि हम कैसी हवा में सांस ले रहे हैं. आने वाली पीढि़यों के लिए हम कैसी हवा छोड़कर जाएंगे.
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